फास्टफूड मैगी का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। आज सुप्रीम कोर्ट में इसपर सुनवाई हुई। जिसमें मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले की ओर से पेश वकील ने कहा कि इसमें 'निर्धारित सीमा' के भीतर ही सीसा था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने सवाल किया कि आखिर वह ऐसा नूडल क्यों खाएं, जिसमें किसी भी स्तर पर सीसा पाया जाता हो।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तीन साल बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में लंबित नेस्ले के मैगी मामले में कार्यवाही की अनुमति दे दी। जस्टिस डीवाय चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली बेंच ने आयोग से कहा कि वह मैगी के नमूनों के बारे में मैसूर स्थित केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएफटीआरआई) की रिपोर्ट पर विचार करे।
इस मामले में सरकार ने अनुचित व्यापारिक व्यवहार के लिए नेस्ले इंडिया से 640 करोड़ रुपए हर्जाना मांगा था। सीएफटीआरआई ने मैगी के नमूनों की जांच की थी। इससे पहले शीर्ष अदालत ने नेस्ले की चुनौती पर एनसीडीआरसी की ओर से की जा रही सुनवाई पर रोक लगा दी थी।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 2015 में नेस्ले इंडिया के खिलाफ एनसीडीआरसी में शिकायत दर्ज कराई थी। मंत्रालय ने यह शिकायत तीन दशक पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत दर्ज कराई थी।
2015 में ही भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई) ने मैगी नूडल्स के नमूनों में तय मानक से अधिक लेड पाए जाने पर इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्राधिकरण का कहना था कि यह इंसान के लिए असुरक्षित और घातक है।
इस मामले में नेस्ले इंडिया ने अक्टूबर 2015 में आपत्ति दर्ज कराई थी। एनसीडीआरसी से कहा गया था कि सरकार के इस अभियोग में कुछ भी नया नहीं है। इन आरोपों को 13 अगस्त 2015 के आदेश में बॉम्बे हाईकोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। इस आदेश में हाईकोर्ट ने मैगी नूडल्स पर लगाए गए देशव्यापी प्रतिबंध को गलत ठहराया था।
Last Updated Jan 3, 2019, 3:32 PM IST