झूठा हलफनामा देने वालों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हलफनामे में दर्ज जानकारी का मतदान पर सीधा असर नहीं होता है।
यह याचिका बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी। यह याचिका चुनाव सुधार को लेकर दायर की गई।
याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग के सामने झूठा हलफनामा देने को करप्ट प्रैक्टिस मानने और ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार घोषित करने की मांग की गई है। यही नहीं हलफनामें गलत जानकारी देने वाले लोगों को दो साल कैद की भी मांग की गई ।
दाखिल अर्जी में चुनाव आयोग की सिफारिश और लॉ कमीशन ऑफ इंडिया की 244 वीं रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 125 ए में बदलाव किया जाए और कैंडिडेट द्वारा झूठा हलफनामा देने के मामले में कम से कम दो साल कैद की सजा का प्रावधान किया जाए।
याचिका में लॉ मिनिस्ट्री और चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाया गया है और अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि लॉ कमिशन ने 24 फरवरी 2014 को 244 वीं रिपोर्ट में कहा था कि चुनाव आयोग के सामने झूठा हलफनामा देने के मामले में दो साल कैद की सजा का प्रावधान किया जाए और इसके लिए जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 125 में बदलाव किया जाए।
मौजूदा समय में इस कानूनी प्रावधान में छह महीने कैद या जुर्माने का प्रावधान है। याचिकाकर्ता ने कहा कि लॉ कमीशन की सिफारिश के बावजूद सरकार ने कोई कदम नही उठाया। मौजूदा समय में साल 2000 के बाद से कई चुनाव में कई कैंडिडेट ने झूठे हलफनामे दिए हैं और इस तरह ये लोकतांत्रिक अवधारणा के खिलाफ है साथ ही स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है।
Last Updated Feb 15, 2019, 7:18 PM IST