कारोबारी जिग्नेश शाह पर NSEL के ज़रिए निवेशकों के 5,000 करोड़ रु. ठग लेने का आरोप है। इसकी वसूली के लिए सरकार ने NSEL का विलय जिग्नेश की दूसरी कंपनी FTIL के साथ करने का आदेश दिया था। अब FTIL को 63 मून टेक्नोलॉजी  लिमिटेड के नाम से जाना जाता है।

पूर्व की FTIL द्वारा संचालित NSEL को 2013 में एक बड़े पेमेंट डीफॉल्ट के बाद ताला लगा दिया गया था। इसके साथ ही NSEL को फॉर्वर्ड मार्केट कमीशन ने किसी अन्य कंपनी के साथ करार करने पर भी पाबंदी लगा दी थी और NSEL का मर्जर सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) के साथ कर दिया गया था।

हालांकि NSEL घोटाले के बाद केन्द्र सरकार के कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय ने कंपनी एक्ट के सेक्शन 396 के तहत दोनों NSEL और FTIL के मर्जर का अंतिम फैसला दिया था। वहीं मंत्रालय ने घोटाले में शामिल रही NSEL के मर्जर का अंतिम फैसला फरवरी 2016 में दे दिया था।

कारोबारी जिग्नेश शाह की मूल कंपनी FTIL में 99 फीसदी की हिस्सेदारी थी और यह कंपनी ही घोटालेबाज कंपनी NSEL को प्रमोट कर रही थी। गौरतलब है कि यह पहला मामला है कि किसी घोटालेबाज कंपनी से पैसे रिकवरी करने के लिए मंत्रालय ने दो निजी कंपनियों के मर्जर का आदेश दिया था। यदि यह मर्जर हो जाता तो NSEL के घोटाले की रकम को FTIL से वसूला जा सकता था।

केन्द्र सरकार के मर्जर के फैसले को सबसे पहले जिग्नेश शाह ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन दिसंबर 2017 में शाह को राहत नहीं मिली। इसके बाद शाह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

जस्टिस रोहिंटन फाली नारिमन और जस्टिस विनीत सरन की बेंच ने कहा कि उन्होंने जिग्नेश शाह की अपील को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने कहा कि दोनों कंपनियों का विलय पब्लिक इंटरेस्ट में नहीं है।