अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से कहा कि मैं प्रशांत भूषण के आरोप से मैं आहत हूँ। मैं प्रशांत भूषण के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं चाहता। लेकिन कोर्ट को यह तय करना चाहिए कि लंबित मामलों को लेकर किसी वकील को किस तरह की टिप्पणी करनी चाहिए और  क्या नहीं? 

जिसपर जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि हम कोर्ट की कार्यवाही की मीडिया रिपोर्टिंग के खिलाफ नहीं हैं लेकिन कोर्ट में लंबित मामले से जुड़े वकील को मीडिया में बयान देने या टीवी डिबेट में भाग लेने से बचना चाहिए। पिछली सुनवाई के दौरान नागेश्वर राव की सीबीआई के अंतरिम निदेशक के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लंबे समय तक किसी को सीबीआई का अंतरिम निदेशक के पद पर नहीं रखा जा सकता है। 

कोर्ट ने यह भी कहा था कि हम जानते है कि सीबीआई ढंग से काम नही कर रही है। कोर्ट ने कहा था जितना जल्दी हो सीबीआई निदेशक नियुक्त करें। जिसके बाद सरकार ने अगले ही दिन सीबीआई निदेशक नियुक्त कर दिया था। 

मामले की सुनवाई के दौरान कॉमन कॉज के वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि नागेश्वर राव ने सीबीआई का अंतरिम निदेशक रहते हुए सीबीआई में 40 तबादले किए। जिसपर सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने सेलेक्शन कमेटी से नागेश्वर राव को अंतरिम सीबीआई निदेशक बनाने को लेकर अनुमति ले ली थी। इसलिये अथॉरिटी को लेकर कोई सवाल नही पैदा होता है।

 जिसके बाद कोर्ट ने कहा था कि हम आलोक वर्मा को वापस पद पर बहाल करने के बाद उनके द्वारा लिए गए फैसलों पर भी गौर करेंगे। 

सीबीआई के अंतरिम निदेशक एम. नागेश्वर राव के खिलाफ दायर याचिका पर जस्टिस एन वी रमन्ना, जस्टिस एके सीकरी और मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने खुद को अलग कर लिया था। गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में सरकार पारदर्शिता का पालन नही कर रही है। 

याचिका में कहा गया है कि नागेश्वर राव की नियुक्ति उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर नही की गई है, जैसा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत अनिवार्य है। 10 जनवरी 2019 के आदेश में कहा गया है कि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने नागेश्वर राव को पहले की व्यवस्था के मुताबिक नियुक्त करने की मंजूरी दी है। 

हालांकि पहले की व्यवस्था यानी 23 अक्टूबर 2018 के आदेश ने उन्हें अंतरिम सीबीआई निदेशक बनाया था और 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा मामले में इस आदेश को रद्द कर दिया था। हालांकि सरकार ने खारिज किए गए आदेश पर सीबीआई के नागेश्वर राव को एक बार फिर अंतरिम निदेशक नियुक्त कर दिया। याचिका में कहा गया है कि सरकार उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों के सीबीआई निदेशक का प्रभार नही दे सकती। इसलिए सरकार द्वारा उन्हें सीबीआई निदेशक का पदभार देने का आदेश गैर कानूनी है और डीएसपीई की धारा 4a के तहत नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ है।

 याचिका में राव की नियुक्ति को रद्द करने की मांग के अलावा सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की मांग की गई है।