केरल के विश्वप्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर  के देवासम बोर्ड ने अदालत में अपना पहले का स्टैण्ड बदल लिया है। पहले बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का विरोध किया था, जिसमें मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश की मंजूरी दी गई थी। 

देवासम बोर्ड ने कहा कि वह अदालती फैसले में छिपी लिंग आधारित भेदभाव को खत्म करने की मंशा का सम्मान करते हैं। जो कि हमारे समाज का वास्तविक मूल्यों में से एक है। 

इससे पहले  एक याचिकाकर्ता ने अदालती कार्यवाही के लाइव टेलीकास्ट की अनुमति मांगी थी। जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। 

इन सभी 54 पुनर्विचार याचिकाओं के लिए एडवोकेट के.पराशरन ने बहस की शुरुआत की थी। 

हालांकि केरल में सत्तासीन वामपंथी सरकार ने इन पुनर्विचार याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि अदालत के पुराने फैसले पर दोबारा विचार की जरूरत नहीं है। 

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 28 सितंबर को 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी। 

इन पुनर्विचार याचिकाओं का विरोध करते हुए केरल सरकार ने अदालत में कहा कि सबरीमाला मंदिर में रजस्वलाओं का प्रवेश रोकने की प्रथा हिन्दू धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है। 

अदालत के पुराने फैसले पर दाखिल की गई सभी 54 पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई कर रही है। जिसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। 

नैयर सर्विस सोसाइटी की ओर से कोर्ट में पेश हुए के पराशरन ने कहा कि सितंबर महीने में दिए गए फैसले में कुछ खामियां हैं। 

इससे पहले अदालत ने सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को लिंग आधारित भेदभाव बताते हुए निरस्त कर दिया था। जिसके बाद 54 पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल करके अदालत से इस फैसले पर फिर से विचार करने की अनुमति मांगी गई है।