'नए इंडिया' में दो बालिगों के बीच समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में दो बालिगों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली 158 साल पुरानी धारा 377 को खत्म कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने निजी पसंद को सम्मान देने की बात कही है। 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, 'व्यक्तिगत पसंद को इजाजत होनी चाहिए। सबके लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने की जरूरत है। समाज को पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए।' उन्होंने कहा, हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए। संवैधानिक पीठ ने अपने आदेश में कहा, हमें पुरानी धारणाओं को बदलने की जरूरत है। नैतिकता की आड़ में किसी के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। सामाजिक नैतिकता संवैधानिक नैतिकता से ऊपर नहीं है। सामाजिक नैतिकता मौलिक आधार को नहीं पलट सकती। यौन व्‍यवहार सामान्‍य है, उस पर रोक नहीं लगा सकते। 

ब्रिटिश काल से चली आ रही धारा-377 आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को आपराधिक कृत्य मानने से जुड़ी थी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविल्कर, डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने 10 जुलाई को मामले की सुनवाई शुरू की थी और 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा था कि वे धारा-377 को पूरी तरह से खारिज नहीं करने जा रहे हैं बल्कि यह देख रहे हैं कि अगर दो बालिग समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध होगा या नहीं। 

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए इसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को इसके विरोध में कई याचिकाएं मिलीं। सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में अलग-अलग करीब 30 याचिकाएं दर्ज की गई थीं। 

फैसले के बाद आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा कि, ''सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की तरह हम भी इस को अपराध नहीं मानते। समलैंगिक विवाह और संबंध प्रकृति से सुसंगत एवं नैसर्गिक नहीं है, इसलिए हम इस प्रकार के संबंधों का समर्थन नहीं करते। परंपरा से भारत का समाज भी इस प्रकार के सम्बंधों को मान्यता नहीं देता। मनुष्य सामान्यतः अनुभवों से सीखता है इसलिए इस विषय को सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर ही संभालने  की आवश्यकता है।''

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का देवबंदी उलेमाओं ने विरोध किया है। उलेमाओं ने कहा, ''शरीयत में इस तरह की चीजें हराम हैं। उलेमाओं ने कहा कि हमारी शरीयत इन चीजों को हराम व नाजायज़ कहती है। ये फैसला फितरत के खिलाफ अम्ल है, कोई भी सही इंसान इसको कभी बर्दाश्त नही करेगा।  देवबन्दी उलेमा मुफ़्ती असद कासमी ने कहा, ''सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है उसे इस्लाम में हराम कहा गया है। शरीयत में इनकी बिल्कुल भी इजाजत नहीं है।''

समलैंगिक संबंधों को लेकर क्या था नियम?

भारत में अभी तक समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा गया था। हालांकि निजता के अधिकार पर सुनवाई करते हुए साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन यानी यौन व्यवहार सीधे तौर पर निजता के अधिकार से जुड़ा है। इसके आधार पर भेदभाव करना किसी व्यक्ति विशेष की गरिमा को ठेस पहुंचाना है। इसी फैसले के बाद एलजीबीटी समुदाय ने नए सिरे से सुप्रीम कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़ी। 

दुनिया के दूसरे हिस्सों में क्या है स्थिति?

संयुक्त राष्ट्र के एक मानवाधिकार अभियान 'फ्री एंड इक्वल कैंपेन' के अनुसार दुनियाभर के 76 देशों में समलैंगिकता को लेकर भेदभावपूर्ण कानून हैं। इनमें से ज्यादातर अफ्रीकी और मुस्लिम देश हैं। पिछले कुछ समय में समलैंगिकता को लेकर स्वीकार्यता बढ़ी है। फिलहाल करीब 25 देशों में समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता मिल चुकी है।

कहां-कहां है मान्यता -

बेल्जियम, कनाडा, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड, पुर्तगाल, अर्जेंटीना, डेनमार्क, उरुग्वे, न्यूजीलैंड, फ्रांस, ब्राजील, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, लग्जमबर्ग, फिनलैंड, आयरलैंड, ग्रीनलैंड, कोलंबिया, जर्मनी, माल्टा भी समलैंगिक शादियों को मान्यता दे चुका है। 

कई देशों में है मौत की सजा का प्रावधान

कई देशों में समलैंगिक संबंधों के लिए मौत की सजा का भी प्रावधान है। अरब देशों में समलैंगिक संबंधों के दोषियों के लिए बेहद कठोर दंड का प्रावधान हैं। सूडान, ईरान, सऊदी अरब, यमन में समलैंगिक संबंधों के लिए मौत की सजा दी जाती है। सोमालिया और नाइजीरिया में भी कई जगह ऐसे संबंधों के बदले मौत की सजा मिलती है। दुनिया में कुल 13 देश ऐसे हैं जहां मौत की सजा देने का प्रावधान हैं। अफगानिस्तान,पाकिस्तान, कतर में भी मौत की सजा का प्रावधान है। हालांकि इन देशों में इसे लागू नहीं किया जाता। इंडोनेशिया सहित कुछ देशों में समलैंगिक संबंधों पर कोड़े मारने की सजा दी जाती है। कई देशों में इसके लिए जेल में डाल दिया जाता है।