राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के सर्वमान्य समाधान के लिए इसे मध्यस्थता के लिए सौंपने के बारे में उच्चतम न्यायालय अपना आदेश सुनाएगा। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों को सुना था। पीठ ने कहा था कि इस भूमि विवाद को मध्यस्थता के लिए सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में बाद में आदेश दिया जाएगा।
नई दिल्ली।
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के सर्वमान्य समाधान के लिए इसे मध्यस्थता के लिए सौंपने के बारे में उच्चतम न्यायालय अपना आदेश सुनाएगा। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों को सुना था। पीठ ने कहा था कि इस भूमि विवाद को मध्यस्थता के लिए सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में बाद में आदेश दिया जाएगा।
असल में बुधवार को कोर्ट में निर्मोही अखाड़ा के अलावा अन्य हिन्दू संगठनों ने इस विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने के शीर्ष अदालत के सुझाव का विरोध किया था जबकि मुस्लिम संगठनों ने इस विचार का समर्थन किया था। शीर्ष अदालत ने विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने आज तक के लिए अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षकार मध्यस्थता के लिए पैनल के नाम सुझाए। ताकि आगे इस बार जिरह हो सके। हालांकि हिंदू महासभा ने साफ कहा कि इस मामले में मध्यस्थता नहीं हो सकती है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस धनंजय वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस मामले की सुनवाई के दौरान हिन्दू संगठन की ओर से पेश हरि शंकर जैन ने कहा गया कि आप पहले पब्लिक नोटिस जारी कीजिए, उसके बाद ही मध्यस्थता पर कोई आदेश दीजिए। वहीं हिन्दू पक्षकार ने मध्यस्थता का विरोध किया। हिन्दू पक्षकार की दलील है कि अयोध्या मामला धार्मिक और आस्था से जुड़ा मामला है, यह केवल संपत्ति विवाद नहीं हैं।
हिन्दू पक्षकार की ओर से यह भी कहा गया कि मध्यस्थता से कोई फायदा नहीं होगा, कोई तैयार भी नहीं होगा। जिसके बाद जस्टिस बोबडे ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अभी से यह मान लेना कि फायदा नहीं होगा ठीक नहीं है। यह दिमाग, दिल और रिश्तों को सुधारने का प्रयास है। हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं। हम जानते हैं कि इसका क्या इम्पैक्ट होगा। यह मत सोचो कि तुम्हारे हमसे ज्यादा भरोसा है कानून प्रक्रिया पर। जस्टिस बोबडे ने यह भी कहा कि हम इतिहास भी जानते हैं। हम आपको बताना चाह रहे हैं कि बाबर ने जो किया उस पर हमारा कंट्रोल नहीं था। उसने जो किया उसे कोई बदल नहीं सकता। हमारी चिंता केवल विवाद को सुलझाने की है। इसे हम जरूर सुलझा सकते हैं।
वहीं जस्टिस बोबडे ने यह भी कहा कि जब अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता चल रही हो तो इसके बारे में खबरें न लिखी जाए और न ही दिखाई जाए। हम मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगा रहे है, परंतु मध्यस्थता का मकसद किसी भी सूरत में प्रभावित नहीं होना चाहिए। जिसके बाद जस्टिस चंद्रचुड़ ने कहा कि ये विवाद दो समुदाय का है, सबको इसके लिए तैयार करना आसान काम नहीं है। हम उन्हें मध्यस्थता रेसोलुशन में कैसे बाध्य कर सकते हैं? ये बेहतर होगा कि आपसी बातचीत से मसल हल हो पर कैसे? ये अहम सवाल हैं। करोड़ों लोगों को मध्यस्थता के लिए बाँधना आसान नहीं है।
Last Updated Mar 8, 2019, 10:25 AM IST