पटना। तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री और कई बार केन्द्र सरकार में किंग मेकर बनने वाले राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव उनकी विरासत को संभालने विफल साबित हो रहे हैं। पार्टी में लगातार बगावत हो रही है और दिग्गज नेता पार्टी का दामन थाम रहे हैं। वहीं राजद के सहयोगी दल भी उसका साथ छोड़ रहे हैं। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव से पहले राजद में और बगावत होगी और पार्टी कमजोर होगी। अगर ऐसा ही रहा तो चुनाव में पार्टी कमजोर होगी। पार्टी में इसका सबसे बड़ा कारण तेजस्वी यादव को माना जा रहा है जो पार्टी के बड़े  फैसलों को खुद ले रहे हैं और लालू के सहयोगियों को दरकिनार कर रहे हैं।

माना जा रहा कि राजद में बगावत लालू प्रसाद और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की राजनीति में पीढ़ी का अंतर है और यही अंतर पार्टी में होने वाली बगावत में डाल रहा है। राजद में तेजस्वी पुरानी पीढ़ी के दरकिनार कर अपनी टीम को बनाना चाहते हैं और इसलिए कभी लालू के साथ साये की तरह साथ रहने वाले वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद ने पार्टी के पद से इस्तीफा दे दिया है और वहीं शिवानंद तिवारी भी पार्टी से नाराज चल रहे हैं।  

जबकि इन्हें पार्टी का मजबूत स्तंभ माना जाता था। लिहाजा नए नेतृत्व के साथ खुद ये नेता असहज महसूस करने लगे हैं। विधानसभा चुनाव करीब है और राजद को भगदड़ मची हुई है। राज्य में पांच विधान पार्षदों के पाला बदल लिया है और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह के इस्तीफे से संकेत साफ है कि तेजस्वी सभी को एक साथ लेकर चलने में विफल हुए हैं। पार्टी के विधान पार्षदों के टूटने से बहुत पहले ही विधानसभा तीन विधायकों ने भी खुलेआम बगावत कर रखी है और पार्टी अभी तक इनके खिलाफ कोई कार्यवाही तक नहीं कर सकी है। पार्टी के विधायक प्रेमा चौधरी, सरफराज फातमी व महेश्वर यादव नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है और पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बना कर रखी है।

माना जा रहा है कि देर सवेर ये नेता पार्टी को अलविदा कहेंगे। जानकारों का कहना है कि चुनावी साल में राजद की कलह बढ़ेगी और इसका फायदा विपक्षी दलों को होगा। जानकारी के मुताबिक विधान पार्षदों के टूटने से महज पांच दिन पहले राजद ने प्रत्याशी तय को लेकर संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई थी। लेकिन इस बैठक में लालू के करीबियों ने आने की जरूरत नहीं समझी थी। क्योंकि पार्टी नेतृत्व उनकी सलाह को तवज्जो नहीं देता है। लिहाजा नेता बैठख में नहीं पहुंचे।