नई दिल्ली। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी कैबिनेट से हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया है। जबकि केन्द्र में अकाली दल भाजपा का सबसे करीबी सहयोगी माना जाता है।  राज्य में भाजपा और अकाली दल दोनों मिलकर चुनाव लड़ते हैं और पिछली सरकार में अकाली दल केन्द्र में भाजपा सरकार का सहयोगी थी।  लेकिन हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद केन्द्र की मोदी सरकार को झटका लगा है।  हालांकि ये दांव  दबाव का माना जा रहा है। क्योंकि डेढ़ साल बाद पंजाब में चुनाव होने हैं और इन्हीं समीकरणों को देखते हुए कौर ने दांव चला है।

असल में शिरोमणि अकाली दल की नेता और केंद्रीय खाद्य और प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ने पद दे दिया है। केन्द्र सरकार द्वारा कृषि संबंधी विधेयकों के विरोध में कौर ने इस्तीफा दिया है। माना जा रहा है कि राज्य किसानों के बीच अपनी खिसकती जमीन तलाशने की कोशिश इस इस्तीफे के जरिए की गई है। राज्य में कांग्रेस की सरकार है  और राज्य में अकाली दल का वजूद खतरे में है। लिहाजा किसानों के बीच इस मुद्दे के जरिए पकड़ बनाने के लिए कौर ने इस्तीफे के सियासी दांव चला रहा है। इसके साथ ही राज्य में चुनाव के लिए भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश है। अकाली प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने हरसिमरत कौर के इस्तीफे के जरिए ये दर्शाने की कोशिश की है कि पार्टी किसानों के लिए एक बड़ा बलिदान दे सकती है। वहीं केन्द्र में अकाली दल की तरफ से मोदी सरकार में कौर एकमात्र कैबिनेट मंत्री थीं। हालांकि पिछले दिनों भी अकाली दल ने केन्द्र में कोटा बढ़ाने के लिए दबाव बनाया था।

लेकिन मोदी सरकार ने इसे कोई तवज्जो नहीं दी। वहीं अकाली दल का भाजपा  के साथ सबसे पुराना रिश्ता है। राज्य में में अकाली दल का राजनीतिक प्रभाव  भाजपा की तुलना में ज्यादा है और उसकी सियासत किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी रहती है। लिहाजा किसानों को लुभाने के लिए इस्तीफे का दांव चला गया है। वहीं केन्द्र सरकार के विधेयक का पंजाब और हरियाणा के किसानों में जबरदस्त गुस्सा है। कृषि विधायकों को लेकर किसान संगठनों का कहना है कि किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ही आमदनी का एकमात्र जरिया है। वहीं केन्द्र सरकार के इस अध्यादेश से वो खत्म हो जाएगा। किसानों का कहना है कि केन्द्र सरकार मौजूदा मंडी व्यवस्था को खत्म कर देगी।

वहीं राज्य में कैप्टन अमरिंदर सिंह कृषि से जुड़े अध्यादेशों के खिलाफ 28 अगस्त को विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर चुके हैं। इसके जरिए वह किसानों का हमदर्द बनाने की कोशिश कर चुके हैं। लिहाजा अकाली दल को लग रहा है कि कांग्रेस के फैसले के बाद किसानों का रूझान कांग्रेस की तरफ हो जाएगा। जिसका नुकसान उसे आने वाले विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। राज्य में कांग्रेस की विरोधी अकाली दल की नजर 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर है।