जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद सुरक्षा बलों और केंद्र सरकार के कोई नई बात नहीं है। लेकिन हाल के दिनों में आतंकवादियों के तौर तरीकों में आया बदलाव कश्मीर घाटी में सक्रिय सुरक्षा एजेंसियों और केंद्र के लिए भी नया है। आतंकी न सिर्फ स्थानीय पुलिसकर्मियों और उनके परिजनों को निशाना बना रहे हैं, बल्कि आतंकी संगठनों में 'दबदबे की जंग' भी शुरू होती दिख रही है। उन्होंने कश्मीर घाटी में सक्रिय दूसरे संगठनों के आतंकियों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है।
 
शनिवार को श्रीनगर के डाउनडाउन इलाके में अंसार गजवत उल हिंद (एजीएच) के आतंकी आसिफ नजीर डार को मार दिया गया। वह 2017 से भारत में आईएस का चेहरा कहे जाने वाले एजीएच का आतंकी था। माना जा रहा है कि उसकी हत्या हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों ने की है। हिजबुल के इस आतंकी को मारने के बाद कई राजनीतिक और रक्षा विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह सुरक्षा बलों के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि आतंकियों में आपस में जंग शुरू हो गई है। लेकिन इस ट्रेंड के कई दूसरे पहलू भी हैं।
 
कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत से ही घाटी में तैनात बाहरी सुरक्षाकर्मी आतंकी संगठनों के निशाने पर रहते थे। यानी आतंकी स्थानीय सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाने से परहेज करते थे। लेकिन हाल के कुछ समय में आतंकियों ने अपने तौर तरीकों में बदलाव किया है। 2016 में हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के खात्मे के बाद से आतंकी संगठन कश्मीरी पुलिसकर्मियों और सुरक्षा बलों के जवानों को भी निशाना बनाने लगे हैं।
 
आतंकियों की ओर से जम्मू-कश्मीर पुलिस के कर्मचारियों को चेतावनी दी जा रही है कि आतंकवाद रोधी ऑपरेशन का हिस्सा न बनें। स्थानीय पुलिस के जवानों को डराने में नाकाम रहने के बाद आतंकियों ने नई साजिश के तहत पुलिसकर्मियों के परिजनों का अपहरण करना शुरू कर दिया है। हाल ही में 'माय नेशन' को एक हिजबुल आतंकी का एक वीडियो मिला था, जिसमें वह जम्मू-कश्मीर पुलिस के जावनों को ऑपरेशन ऑलआउट से हटने अथवा परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी दे रहा था।
 
कश्मीर में शुरू हुए आतंकवाद के नए ट्रेंड में आतंकी स्थानीय कश्मीरियों को भी निशाना बना रहे हैं। दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में शनिवार को आतंकियों ने ब्यूटी पार्लर चलाने वाली एक युवती को भी निशाना बनाया। आतंकियों को संदेह था कि वह युवती सुरक्षा एजेंसियों के लिए मुखबिरी करती है।
 
जम्मू-कश्मीर में खुफिया टीम के हिस्से के तौर पर काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, '11 पुलिसकर्मियों के परिजनों के बदले आतंकी रियाज नायकू के पिता को रिहा करने के बाद आतंकी संगठनों को कश्मीर में मजबूती मिली है। वे अपने दबदबे को फिर हासिल करना चाहते हैं, यही कारण हैं कि कश्मीर में अपने संगठन का दबदबा कायम करने के लिए आतंकी संगठनों में आपस में जंग शुरू हो गई है।'
 
कश्मीर घाटी में इस बदलते ट्रेंड का विश्लेषण करते समय राज्य के 1989 से चले आ रहे तीन दशक के खूंरेजी वाले इतिहास पर नजर डालना भी काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। 'माय नेशन' के  पास उपलब्ध दो सितंबर, 2018 तक के आंकड़ों के मुताबिक तीन दशक में आतंकवाद की 47234 घटनाएं हुए हैं। इनमे्ं 14846 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इसके अलावा 6424 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए हैं। पिछले तीस साल से जारी आतंकवाद के दौरान सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में 44772 आतंकवादियों को मार गिराया है।
 
जम्मू कश्मीर में आतंक के बदले ट्रेंड को समझने के लिए 'माय नेशन' ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी कुलदीप खुड्डा से बात की। उन्होंने 2007 से 2012 तक जम्मू-कश्मीर पुलिस की कमान संभाली थी। कुलदीप खुड्डा के कार्यकाल में सुरक्षाबलों ने 5 वर्ष में 1500 से अधिक आतंकियों को मार गिराया, जिनमें कई बड़े कमांडर भी थे। हालांकि कुलदीप खुड्डा आतंकियों में 'आपसी जंग' की थ्योरी से इत्तेफाक नहीं रखते।

माय नेशनः आप इस बदलते ट्रेंड को किस तरह देखते हैं ?
 
कुलदीप खुड्डा: आतंक का यह ट्रेंड बिल्कुल भी नया नहीं है और इसके लिए हमें खुश होने या अपनी सिक्योरिटी फोर्सेज की सतर्कता में कमी करने की कोई जरूरत नहीं है। जम्मू-कश्मीर में आतंक फैलाने वालों का सोचा समझा प्लान है। इसके तहत वे उन लोगों को निशाना बनाते हैं जो पुलिस या बाकी सिक्योरिटी फोर्स के प्रति कहीं ना कहीं, किसी प्रकार की नरमी दिखाते हैं। जहां तक घाटी की बात है, यह कभी भी नया नहीं रहा, क्योंकि आतंकियों ने शुरू से ही उन स्थानीय लोगों और ओवर ग्राउंड वर्कर्स को निशाना बनाया, जो सुरक्षाबलों के साथ दिखे। 1990 की शुरुआत में हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक को भी इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि आतंकी संगठनों को ऐसा लगा कि वह नई दिल्ली के साथ मिलकर कश्मीर में शांति बहाली की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं।

माय नेशनः क्या इसका मतलब यह है कि आतंकी शांतिप्रिय कश्मीरियों को निशाना बना रहे हैं ?
 
कुलदीप खुड्डा: निश्चित तौर पर यही सच्चाई है। अगर हम इसे आतंकियों की आपसी लड़ाई समझें और यह मान लें कि इससे जम्मू-कश्मीर में आतंक का खुद-ब-खुद सफाया हो जाएगा तो यह हमारी गलतफहमी है। आतंकी एक दूसरे को तब निशाना बनाते हैं, जब उन्हें लगता है कि कोई आतंकी सुरक्षाबलों का साथ दे रहा है। केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर के लिए एक कड़ी रणनीति अपनानी होगी। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद 2012 के बाद फिर से अपनी चरम सीमा पर पहुंचा है। बुरहान वानी और उसके जैसे बाकी आतंकी कमांडरों का इतना बड़ा कद बन जाना कश्मीर में पॉलिसी की नाकामी को दर्शाता है। अगर हम कहेंगे कि कश्मीर में सब नॉर्मल है तो इसका मतलब एक ही है कि हम कश्मीर में नॉर्मल की नई परिभाषा लिख रहे है।
 
माय नेशनः क्या आपको लगता है कि इस्लामिक के जम्मू-कश्मीर में बढ़ते कद से लश्कर-ए-तय्यबा और हिजबुल मुजाहिदीन कहीं ना कहीं अपने आपको खतरा महसूस कर रहे हैं, इसलिए वे आईएस के आतंकियों को निशाना बना रहे हैं ?
 
कुलदीप खुड्डा: नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। बात चाहे लश्कर की हो, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन की या फिर आईएस की, यह सारे आतंकवादी संगठन है। लश्कर, जैश और हिजबुल जहां पाकिस्तान की शह पर आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं वही आईएस का मकसद जम्मू-कश्मीर को इस्लामिक स्टेट बनाना है। इनकी विचारधारा में जरूर मतभेद हो सकते हैं लेकिन इनका मकसद कश्मीरी युवाओं को बरगला कर उनकी धार्मिक भावनाओं से खेलना है।
 
माय नेशनः हमारे पास मौजूद हिजबुल मुजाहिदीन के एक मैसेज में कहा गया है कि आईएस के साथ वैचारिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन फिर भी हम उनके साथ हैं?
 
कुलदीप खुड्डा: आतंकी संगठन कभी भी एक दूसरे को निशाना नहीं बनाएंगे। उनके वैचारिक मतभेद यह हैं कि जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान अधिकृत राज्य बनाया जाए या फिर इस्लामिक राज्य। अगर हम इसे उनकी आंतरिक लड़ाई समझते रहेंगे तो यह हमारी एक बहुत बड़ी भूल होगी।
 
माय नेशनः आईएस जम्मू-कश्मीर में खुद को क्यों नहीं बढ़ा पाई जिस तरह जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर ने किया ?
 
कुलदीप खुड्डा: आईएस जम्मू-कश्मीर में अपने आप को बढ़ाने में जुटा है। जाकिर मूसा लगातार सीरिया और इराक में बैठे अपने आकाओं के साथ कश्मीर में आतंक बढ़ाने के लिए रणनीति बना रहा है। एकमात्र कारण जिसकी वजह से आईएस कश्मीर में अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर पाया, वह यह है कि सीरिया और इराक दोनों जगह आईएस को मुंह की खानी पड़ी है। हमें यह देखा है कि आतंकियों के जनाजे में किस तरह उन्हें आईएस के झंडों से लपेटा जाता है। अगर हम घाटी में आईएस के होने से इनकार करेंगे तो हम खुद को उसी कबूतर की तरह मान रहे हैं, जो बिल्ली को देखकर अपनी आंखें बंद कर लेता है और यह समझता है कि सब सामान्य है।
 
माय नेशनः  क्या आपको लगता है कि आईएस, हिजबुल, जैश और लश्कर के एक साथ मिलने से कश्मीर में हालात और खराब होंगे?
 
कुलदीप खुड्डा: पिछले 5 साल में घाटी में बदले हालात इसी की तरफ इशारा करते हैं। कई बार हम यह बात करते हैं कि घाटी में कितने आतंकी मार गिराए लेकिन हम यह नहीं बताते हैं कि कितने सुरक्षाकर्मी अपनी जान गंवा बैठे। 2012 में कश्मीर घाटी में मात्र 17 सुरक्षाकर्मियों ने शहादत दी थी लेकिन अगर इस साल की बात करें तो सितंबर तक यह आंकड़ा चौगुना हो चुका है। 67 सुरक्षाकर्मियों की शहादत हुई है। यह दर्शाता है कि घाटी में हालात सुरक्षा बलों के लिए कितने मुश्किल हो चुके हैं।

माय नेशनः  क्या आपको लगता है कि अब सरकार को पत्थरबाजों के मददगारों और आतंकियों के प्रति एक कड़ी रणनीति अपनानी होगी ?

कुलदीप खुड्डा: सबसे पहले हमें चीजों को समझने की जरूरत है। हम चीजों को उस तरह दिखाते हैं जिस तरह दिखाना चाहते हैं। यह वही हिसाब है कि हम अपने आपको यह समझा रहे हैं कि घाटी में सब कुछ सामान्य है, लेकिन ऐसा नहीं है। आतंकवाद कश्मीर समस्या का एक अंश है। कश्मीर में और भी कई मसले हैं। कट्टरता कश्मीर समस्या का एक बड़ा अंग है और घाटी में देश के विभिन्न कोनों से आए मौलवियों द्वारा चलाए गए मदरसों को भी केंद्र सरकार को देखना होगा। अगर हम कश्मीर समस्या को आतंकियों के मारे जाने तक ही सीमित कर देंगे, इसका मतलब यह होगा कि हम सिर्फ अपने आप को खुश करना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर का आतंकवाद पंजाब के आतंकवाद की तरह नहीं है। पंजाब का आतंकवाद वहां का स्थानीय युवा चला रहा था लेकिन कश्मीर में विदेशी आतंकी भी हैं। पंजाब का युवा कट्टरता से दूर था, जो कश्मीर में नहीं है। विदेशों से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पैसे का आना और बाकी देशों के कश्मीर मसले को हल करने के लिए दिए जाने वाले बयान कश्मीर को एक अलग मुद्दा बनाते हैं।