जयपुर। राजस्थान कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। राजनैतिक तौर पर राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मजबूत हो गए हैं। लिहाजा खुद फैसले लेकर उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। हालांकि दोनों में किसी भी तरह की जुबानी जंग नहीं हो रही है। लेकिन इन दोनों के खेमों के मंत्री सीएम और संगठन के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।

फिलहाल राज्य कांग्रेस के सामने स्थानीय निकाय में बेहतर प्रदर्शन करना है। इसके लिए राज्य की गहलोत सरकार ने अपना ही फैसला बदल दिया है। जिसके तहत अब मेयर और स्थानीय निकाय प्रमुख को चुने गए पार्षद ही चुनेंगे। जबकि पहले गहलोत सरकार ने सीधे तौर पर चुनाव के जरिए इनकी नियुक्ति कराने का फैसला किया था। लेकिन राज्य में सरकार के खिलाफ माहौल देखते हुए और 370 के बाद पूरे देश में बदली स्थिति के कारण गहलोत सरकार को अपना पिछला आदेश वापस लेना पड़ा है।

हालांकि भाजपा ने इसे मुद्दा बना लिया है। अशोक गहलोत की रणनीति के मुताबिक चुने गए पार्षदों को मैनेज करना आसान है। जिसके चलते राज्य में राज्य निकायों में कांग्रेस के अध्यक्ष बन सकते हैं। हालांकि अब इसका विरोध राज्य के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट गुट के मंत्री ही कर रहे हैं। हालांकि संगठन भी अशोक गहलोत सरकार के इस फैसले के खिलाफ है। क्योंकि संगठन को लग रहा है। इससे राज्य की जनता में गलत संदेश जा रहा है। सचिन पायलट गहलोत के इस फैसले पर पहले ही नाराजगी जता चुके हैं और अब उनके खेमे के मंत्री इस मामले में खुलकर सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं।

पायलट गहलोत से इस बात को भी लेकर नाराज हैं कि इस फैसले पर न तो कैबिनेट से पूछा गया और न ही संगठन से। उन्होंने कहा कि चुनाव सीधे होने चाहिए थे, जो पार्षद का चुनाव नहीं लड़ पा रहा है उसे मेयर बनाने का मौका देने से लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा। यही नहीं पायलट खेमे के दो मंत्री रमेश चंद मीना और प्रताप सिंह खाचरियावास गहलोत के इस फार्मूले को पार्षदों के अधिकार के साथ अन्याय बता चुके हैं। गौरतलब है कि राज्य में गहलोत और पायलट की लड़ाई जगजाहिर है।