ये हम सभी लोग बेहतर जानते है कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी ने किस तरह के उन पर हुए व्यक्तिगत हमलों को अपने फायदे में बदल देते हैं। उन्होंने अपने ऊपर हुए हमलों को गुजरात की अस्मिता और सम्मान से जोड़ा और अपनी भावनाओं और विचारों के जरिए कांग्रेस द्वारा उनके खिलाफ आरोपों की बिछाई गयी बारूदी सुरंगों को पार करते हुए उस पर अपने कदम बढ़ाए।  

इसके बाद प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी का कैववास और बड़ा हो गया और पिछले सत्रह सालों में उसी रास्ते चलते हुए कांग्रेस बार बार हारी और उसने कुछ नहीं सिखा। उसी व्यक्ति से जिसे कांग्रेस ने कई तरह के गंभीर आरोपों के जरिए खत्म करने कोशिश की थी।

राष्ट्रीयता का विरोध

एक राष्ट्रीय पार्टी की बजाय कांग्रेस पार्टी, विश्वविद्यालय और कॉलेज के दिनों में विरोधियों द्वारा किए जाने वाले बर्ताव की तरह अपना व्यवहार कर रही है, जैसा कि आमतौर पर वामदल करते हैं। कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान में जाकर नरेन्द्र मोदी को समाप्त करने की बात करते हैं औऱ जबकि राहुल गांधी के करीबी नवजोत सिंह सिद्धू पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तानी भाषा बोलते हैं। वहीं राहुल गांधी डोकलाम के बाद चीनी रूख की तरह अपना मत रखते हैं।

यही नहीं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय(जेएनयू) में अलगाववादियों को समर्थन करते हैं। क्योंकि उन्हें मोदी का विरोध करना है और इसके जरिए वह देश को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। इस समय पूरे देश में नई राष्ट्रीयता की भावना जग रही है और कांग्रेस अपने संरक्षणवादियों के जरिए गंदे शब्दों का प्रयोग कर देशभक्ति के विरोध में आवाज उठाने की मांग कर रही है। जबकि कांग्रेस के इस रवैये से नाराज जनता मोदी के साथ है।

हिंदू विरोधी का रूख अपनाना

मोदी विरोध के लिए कांग्रेस ने हिंदू विरोध की छवि बना ली है। सेकुलरिज्म को आगे बढ़ाने का कार्यक्रम उसने 2014 के बाद भी रखा। अपने अधिकारिक सोशल मीडिया से गाय को लेकर की जा रही हिंसा को उसने गलत तरीके से उछाला और उसे असहिष्णुता का मुद्दा बनाया। कांग्रेस हिंदूओं की छवि को धूमिल करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है और इसके जरिए हिंदूओं को नाराज कर रही है। शबरीमाला को लेकर ये कांग्रेस को दोहरा चेहरा दिखता है। वहीं कपिल सिब्बल कोर्ट में चुनाव तक अयोध्या मामले को रोकने की मांग करते हैं और राहुल गांधी मसूद अजहर को अजहर जी के नाम से संबोधित करते हैं। यही नहीं राहुल गांधी का शिवभक्त होने का दावा करते हैं और मंदिरों में जाना केवल उनके दिखावे को दिखाता है।

सेना का मजाक बनाना

राहुल गांधी के करीबी सैम पित्रोदा कांग्रेस के नेताओं द्वारा आंतकवादी के खिलाफ भारत द्वारा उठाए गए कदमों पर सवाल उठाते हैं। इस सूची में वह नए हैं। वहीं राहुल गांधी सर्जिकल स्ट्राइक पर मजाक बनाते हुए सवाल उठाते हैं। चुनावी फायदे के लिए वह नकारात्मकता फैलाते हैं और बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाते। ये वैसे ही जैसे आप ऊपर की तरफ कांच उठाएं और एक्जास्ट को अंदर की तरफ लाएं।

चाय वाला और चौकीदार से नफरत

कांग्रेस अभी भी उसी रास्ते पर चल रही है। जिस रास्ते पर चल कर उसे 2014 में जबरदस्त नुकसान हुआ था क्योंकि मणिशंकर अय्यर ने चायवाला का उपहास उठाया था और उसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा था। अब कांग्रेस वही गलती 2019 में भी कर रही है। जबकि चौकीदार हैसटैग ट्रेंड कर रहा है। मोदी ने इस पूरे मूवमेंट को एक तरह से अपने कब्जे में ले लिया है और उन्होंने पीड़ित कार्ड खेलकर इस पूरी मुहिम को अपने से जोड़ रहे हैं। क्योंकि देश की हर बिल्डिंग में चौकीदार हैं और कई लोगों की ये नौकरी है।

वंशवाद का बचाव

मोदी ने भारत में चले आ रहे वंशवाद के इतिहास को बदल दिया है जबकि कांग्रेस अभी तक गांधी-नेहरू के परिवार का बचाव कर रही है और उसका संरक्षण कर रही है। गोवा से कांग्रेस के नेता जो डिसूजा ने कहा कि सरदार बल्लभ भाई पटेल देश के विभाजन के लिए दोषी थे। जबकि मोदी विरोध के कारण कांग्रेस ने स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का मजाक बनाया। बगैर ये दिमाग लगाए की सरदार पटेल कांग्रेस के बड़े नेता थे।

राफेल मामला

राहुल गांधी अभी भी मोदी सरकार के दौरान हुई राफेल डील के मुद्दे पर गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। जबकि सीएजी और सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी घोटाले को खारिज किया है। वह इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं कि आज ये मुद्दा जनता के बीच बेरोजगारी और कृषि संकट से ज्यादा अहम नहीं है। आज जनता ये मान रही है कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार नहीं है जबकि राहुल गांधी उस का राग अलाप रहे हैं। जबकि राफेल के मुद्दे को उठाने के साथ ही यूपीए सरकार के दौरान हुए बोफोर्स, अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले का ध्यान इस मामले पर घुमा दिया।

गठबंधन बनाने में विफल

कांग्रेस के नीतिकर्ता सच्चाई को मानते से रोकते हैं। उन्हें लगता है कि वह अन्य दलों से वह मजबूत है जबकि जहां पर वह चुनाव से पहले गठबंधन कर रही है। वहां पर सहयोगी दल उसे कम सीट दे रहे हैं।  क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में उसने 44 सीटें जीती इस कारण वह कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के पक्ष में नहीं हैं और कोई भी उसे बड़ा या केन्द्रीय दल होने का अनुचित लाभ नहीं लेना देना चाहता। असल में महागठबंधन को बनाने का विचार मोदी को हराना था और ये केवल बिहार में सफल हुआ है। जबकि अन्य राज्यों में गठबंधन नहीं बन पाया। कांग्रेस अपने संगठन को मजबूत करने के लिए कार्य नहीं कर रही है जबकि वह अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दलों की दया पर निर्भर है। वहीं दूसरी तरफ भाजपा अध्यक्ष भाजपा संगठन को मजबूत करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं जबकि राहुल गांधी गठबंधन बनाकर शार्टकट रास्ता अपना रहें हैं।

अपनी उपलब्धियों को अस्वीकार करना

आज कांग्रेस अपने उदारीकरण की उपलब्धियों का श्रेय नहीं ले रही है क्योंकि वो कार्य पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने किए थे, जिन्हें कांग्रेस ने अपने इतिहास से हटा दिया है और तिरस्कृत किया। क्योंकि वह गांधी वंश के नहीं थे, जबकि उन्होंने एक युगांतकारी दौर की शुरूआत की। यही नहीं मनमोहन सिंह के दौर में, जिसमें कांग्रेस ने वामदलों के साथ मिलकर सरकार चलाई उसमें यूएस न्यूक्लियर डील और जीएसटी को भी कम आंका। आज खासतौर से मध्यम वर्ग भाषाई तौर भेदभाव नहीं करती और अभी तक राहुल के मस्तिष्क में अपने लक्षित दर्शकों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। क्योंकि अभी तक मोदी के जाल में फंसी कांग्रेस इसे 2002 से पहचान करने में विफल रही है।