आज यानी 17 सितंबर को हैदराबाद लिबरेशन डे है। तेलंगाना में हर कोई इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाता है लेकिन लगता है कि वे इस दिन के खूनी इतिहास को भूल गए हैं। भारत के बंटवारे के दौरान लगभग पाँच लाख लोगों की मृत्यु हुई और ये ज्यादातर सीमावर्ती क्षेत्रों में हुई। आजादी के ठीक एक साल बाद भारत के बीच में भी अभूतपूर्व रक्तपात हुआ। सन् 1948 के सितंबर और अक्टूबर के महीनों में  भारत के भीतर ही हजारों लोगों की निर्मम हत्या की गई। जबकि देश आजाद हो चुका था।

सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ,  तब उस वक्त लगभग सभी रियासतें भारत में शामिल होने के लिए तैयार हो गई थी। लेकिन इसमें  हैदराबाद के निज़ाम ने अपने को भारत में शामिल नहीं किया। निजाम का कहना था कि वह ब्रिटिश ताज के तहत रहेगा या फिर पूर्ण स्वतंत्रता के तहत एक प्रभुत्व का दर्जा वाले देश के तौर पर रहना पसंद करेगा। कई इतिहासकारों को लगता है कि वह भारत के हिंदू बहुसंख्यकों के बीच एक स्वतंत्र मुस्लिम नेतृत्व वाले भाग के तौर पर भारत का हिस्सा बनाना चाहते थे।

 

ऐसा माना जा रहा था हैदराबाद को पाकिस्तान की तरफ से मदद दी जा रही थी और इसे भारत सरकार अच्छी तरह से समझ नहीं पा रही थी।  लेकिन वास्तव में गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल इस बात को समझ रहे थे और उन्होंने स्वतंत्र हैदराबाद की अवधारणा को "भारत के दिल में एक अल्सर के रूप में वर्णित किया था।  जिसे ऑपरेशन के जरिए ही  हटाया जा सकता था। इसके बाद भारत और हैदराबाद के बीच बातचीत हुई और यह निर्णय लिया गया कि हैदराबाद को भारत में मिला दिया जाना चाहिए।

इस ऑपरेशन को "ऑपरेशन पोलो" कहा जाता था और इसे कई बार "ऑपरेशन कैटरपिलर" भी कहा जाता है। असल में उस वक्त निजाम के सैनिक और उनके समर्थक हैदराबाद रियासत में कई हिंदू गांवों पर हमला कर रहे थे और वहां उन्हें मारा जा रहा था और धर्मांतरण किया जा रहा था। इसके बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा हस्तक्षेप किया गया ताकि वहां पर अल्पसंख्यकों को निजाम की सेना से बचाया जा सके। इसके बाद दोनों पक्षों पर अकथनीय विनाश हुआ।

निजाम द्वारा भारत में विलय के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद पांच दिन तक युद्ध चला जो 13 सितंबर से शुरू हुआ और 18 सितंबर को खत्म हुआ। इसके बाद 36 हजार भारतीय सैनिक ने हैदराबाद में प्रवेश किया और एक शक्तिशाली राज्य को अपने कब्जे में ले लिया था और इसके बाद हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया। इस युद्ध में भारत की तरफ से 32 लोग मारे गए थे और 97 घायल हुए थे। जबकि हैदराबाद की तरफ से 490 लोगों की मौत हुई और 122 लोग घायल हुए।

इसके बाद भारत सरकार ने एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया जिसमें पंडित सुंदरलाल, काज़ी अब्दुल गफ़्फ़ार और मौलाना मिस्री शामिल थे। जो रिपोर्ट इस समिति ने सौंपी वह चौंकाने वाली थी क्योंकि हैदराबाद रियासत में 27000 से 40000 लोगों की मौत हिंसा से हुई थी। ये हिंसा वहां पर निजाम की सेना और समर्थकों द्वारा की गई थी। हालांकि भारत में विलय से पहले हैदराबाद के निज़ाम ने यूएन में एक अपील दायर की थी लेकिन जिसे बाद में उन्होंने खुद वापस ले लिया था।

अंत में हैदराबाद भारत में एकीकृत हो गया और तत्कालीन आंध्र प्रदेश का हिस्सा बना। पूर्व की सरकारों ने सुंदरलाल की रिपोर्ट को कई सालों तक गुप्त रखा था, हालांकि अब इसे नेहरू मेमोरियल संग्रहालय में पढ़ा जा सकता है। अंत में यहां ये समझने की जरूरत है कि यदि हैदराबाद का निज़ाम भारत का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो जाता तो इस विलय के लिए कई निर्दोष लोगों की बलि रोकी जा सकती थी।

Abhinav Khare

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