मुंबई-- मुंबई के भायंदर के केशव सृष्टि में तीन दिन तक चली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में राम मंदिर और शबरीमाला मंदिर सहित विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों विचार किया गया।

आरएसएस के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने बैठक के बाद पत्रकारों को बताया कि, राम मंदिर का मुद्दा करोड़ों हिंदुओं की भवना से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा है और इस पर न्यायालय को शीघ्र विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमने राम मंदिर को लेकेर 30 वर्षों से आंदोलन चला रहे है, लेकिन अब ये मुद्दा न्यायालय में होने की वजह से इस पर आंदोलन की ज़रुरत नहीं है।

हिंदू समाज की अपेक्षा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने और इससे जुड़ी सभी बाधाएं दूर हों। लेकिन ये प्रतीक्षा अब लंबी हो चुकी है। 2010 में उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को लेकर फैसला दिया इसके बाद 2011 से ये मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। 

उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी लेकिन बाद में फिर इसे अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया ये न्यायालय का अपना अधिकार है लेकिन न्यायालय के इस जवाब से हिंदू समाज अपने आपको अपमानित महसूस कर रहा है और ये बात समस्त हिंदू समाज के लिए आश्चर्यजनक और वेदनाजनक है। सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए। न्यायालय को भी समाज की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

राम मंदिर के मुद्दे पर कानून व अध्यादेश के विकल्प पर भैयाजी ने कहा कि ये सरकार का अधिकार है कि वह इस पर कब विचार करे। उन्होंने कहा कि नरसिंह राव की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र दिया था कि अगर उस स्थान की खुदाई में मंदिर होने के प्रमाण मिलेंगे तो सरकार वहां मंदिर बनाएगी। अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय में पुरातत्व विभाग द्वारा दिए गए प्रमाणों से ये सिध्द हो चुका है कि वहां मंदिर का अस्तित्व रहा है, तो फिर वहां मंदिर बनाने को लेकर किसी को कोई कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
 

उन्होंने कहा कि राम मंदिर को लेकर हम सरकार पर कोई दबाव नहीं डाल रहे हैं बल्कि आपसी सहमति से इसका हल निकालने की बात कर रहे हैं कोई भी सरकार सहमति और कानून दोनों के संतुलन से चलती है। 

उन्होंने कहा कि देश की जनता इस सरकार को बहुमत दिया है इसके बाद भी सरकार कानून के सम्मान में मंदिर को लेकर कानून नहीं बना रही। जिस तरह से सरकार कानून का सम्मान कर रही है उसी तरह न्यायालय भी इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझे और इस पर विचार करे।

उन्होंने शबरीमाला को लेकर उन्होंने कहा कि ये मुद्दा महिलाओं के मंदिर में प्रवेश देना होता तो हम उसका समर्थन करते है। हिंदू समाज में कोई भी पूजा पति और पत्नी के बगैर पूरी नहीं होती। हिंदू परंपरा में स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं होता है।

लेकिन मंदिरों के अपने नियम होते हैं, कोई भी समाज मात्र अधिकारों पर नहीं बल्कि परंपराओं और मान्यताओँ पर चलता है। मंदिर में महिलाओं को प्रवेश मिले लेकिन अगर इसमें मंदिर की व्यवस्था से जुड़े लोगों से चर्चा किए बगैर कोई निर्णय लिया जाता है तो ये उचित नहीं। ऐसे निर्णय देते वक्त न्यायालय ने इन विषयों से जुडे सभी घटकों में एकमत करने का प्रयास करना चाहिए।