केरल में ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा मुद्दा बने सबरीमला प्रकरण पर भाजपा के नए ईसाई चेहरे टॉम वडक्कन ने खुलकर अपनी बात रखी है। सबरीमला की परंपरा पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के मामले में वडक्कन ने परंपरा का समर्थन किया है। एक कदम आगे जाते हुए वडक्कन ने कहा, जब राज्य और अदालतें किसी धार्मिक आस्था में हस्तक्षेप करती हैं, ‘उन्हें चुनौती दी जा सकती है।’ वडक्कन ने कहा उन्हें विश्वास है कि चर्च भी सबरीमला की परंपरा के हक में है। इस रोक के चलते सबरीमला की परंपरा के समर्थक अय्यपा के भक्तों की पुलिस से भिड़ंत भी हुई।

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वडक्कन ने कहा, ‘जब तक हिंदू, क्रिश्चियन, मुस्लिम समुदाय की परंपरा चलती रहती है संविधान उनकी रक्षा करता है। लेकिन अगर आप ऐसी स्थिति पैदा करते हैं कि उनकी आस्था, मत को खतरा पैदा हो, तो कभी-कभार राज्य अथवा कोर्ट के हस्तक्षेप को लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं। मुझे लगता है कि वहां ऐसी ही कुछ हो रहा है।’

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दो दशकों से कांग्रेस का हिस्सा रहे वडक्कन ने अपनी पुरानी पार्टी पर हमला बोलते हुए कहा कि इस मुद्दे पर कांग्रेस की राज्य ईकाई का रुख अलग जबकि केंद्रीय ईकाई का रुख अलग था। केवल भाजपा ऐसी पार्टी थी जो सबरीमला के अनुयायियों के साथ अकेले खड़ी थी। वडक्कन ने कहा, ‘यह मुद्दा आस्था का है। चर्च ने भी यह कहा है कि जब आस्था की बात हो तो की समझौता नहीं होना चाहिए। उन्हें अपनी मान्यतों के अनुसार इजाजत मिलनी चाहिए।’

सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल की आयु वाली महिलाओं का  प्रवेश वर्जित था। 28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 से इस परंपरा पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब 17 अक्टूबर, 2018 को सबरीमला का पंबा और निलक्कल बेस खुला तो वहां भगवान अयप्पा के भक्तों का जोरदार विरोध देखने को मिला। राज्य में कई जगह हिंसा की घटनाएं भी सामने आईं। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी अयप्पा के भक्तों ने इस फैसले के खिलाफ विरोध जताया। खास बात यह है कि विरोध करने वालों में महिलाएं काफी मुखर थीं। 26 दिसंबर, 2018 को केरल में विरोधस्वरूप लोगों ने अयप्पा ज्योति जलाई। बताया जाता है कि इस आयोजन में लाखों लोगों ने हिस्सा लिया।