आईपीसी की धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले के बाद सामने आया पहला मामला। शीर्ष अदालत ने धारा 377 को आपराधिक श्रेणी से बाहर कर दिया था।
अपनी तरह के पहले मामले में दिल्ली पुलिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रमुख कॉलेज के छात्र की शिकायत पर एक अन्य छात्र के खिलाफ छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज की है। यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईपीसी की धारा 377 को आपराधिक श्रेणी के बाहर करने के बाद दर्ज किया गया पहला मामला है। पश्चिम दिल्ली पुलिस के मुताबिक, राजौरी गार्डन पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 354ए के तहत डीयू के एक कॉलेज के दूसरे साल के एक छात्र के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है।
खास बात यह है कि पीड़ित ने आईपीसी की धारा 354ए के कुछ सब सेक्शन की संवैधानिक वैधता को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। पीड़ित की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में अपने नाम को लेकर एक रिट पिटीशन भी दाखिल की गई है। इसमें उसने अपील की है कि पुलिस उसके महिला नाम को ही इस्तेमाल करे। पीड़ित चाहता है कि सभी कानूनी दस्तावेज में उसके महिला नाम को इस्तेमाल किया जाए न कि उस नाम को जिससे सभी उसे पहचानते हैं।
पीड़ित ने आईपीसी की धारा 354ए के तीन सब सेक्शन की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रखी है। वहीं नाम बदलने को लेकर दायर याचिका में कोर्ट पहले ही यह आदेश दे चुका है कि हर जगह याचिकाकर्ता का महिला नाम ही इस्तेमाल किया जाए। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को भी इस संबंध में आदेश दिया है। अदालत ने रिट पिटीशन के शीर्षक में दिए गए याचिकाकर्ता के नाम को भी बदल दिया है।
पुलिस को इस मामले में उपयुक्त धाराएं लगाने में दिक्कत हो रही थी। वह कानूनी सहयोगियों की टीम के सलाह ले रही है। बहरहाल, कोर्ट ने साफ कर दिया है कि धारा 354ए लैंगिक तौर पर तटस्थ है। इसे पुरुष, महिला अथवा उभयलिंगी (थर्ड जेंडर) किसी की शिकायत पर लगाया जा सकता है।
इस घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए डीसीपी पश्चिम मोनिका भारद्वाज ने मामले से जुड़ा कोई भी ब्यौरा देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, 'आईपीसी की धाराओं के तहत आरोपी छात्र के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। मामले की जांच जारी है।'
पीड़ित पूजा (परिवर्तित नाम) ने अपनी शिकायत में कहा है, 'जब मैं 12 साल का था, मैंने यह महसूस किया कि ज्यादातर समय मैं एक महिला की तरह व्यवहार करता हूं। मुझे यह अहसास होने कि मुझे लड़कियों की तरह व्यवहार करना पसंद है। मैं एक लड़की की तरह रहना चाहता था। एक महिला की तरह व्यवहार करना चाहता था।'
कॉलेज में वह एक लड़के से मिला जिसे यह पता लग गया कि वह पूजा नहीं एक लड़का है। इसके बाद आरोपी लड़के ने पीड़ित को छेड़ना और उसके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। पीड़ित छात्र ने कॉलेज की अनुशासन समिति के समक्ष भी इसकी शिकायत दर्ज कराई। लेकिन वह समिति द्वारा की गई कार्रवाई से सहमत नहीं है। बाद में पीड़ित ने आरोपी छात्र के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी।
'सुप्रीम कोर्ट का फैसला देता है पीड़ित को मजबूती'
सूत्रों का कहना है कि पीड़ित ने पुलिस से कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसे यह शक्ति देता है कि जैसा है, दुनिया का सामना कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अपराधमुक्त बना दिया है। यह फैसला उसे सेक्शन 354ए की संवैधानिक वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती देने के लिए प्रेरित करता है। पीड़ित ने अपने मामले को कॉलेज की समिति और कोर्ट में बड़े-जोर शोर से रखा है।
धारा 377 पर क्या है शीर्ष अदालत का आदेश
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने छह सितंबर को सर्वसम्मति से दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। यह धारा अप्राकृतिक शारीरिक संबंधों को आपराधिक बनाने से जुड़ी थी।
Last Updated Dec 18, 2018, 7:17 PM IST