मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में नया मोड़ आ गया है। जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस नरीमन ने आंतरिक जांच कमेटी से आपत्ति जताई है कि शिकायकर्ता महिला की सुनवाई किए बिना मामले में कोई फैसला देना सही नही है। 

दोनों जजों ने इस मामले में गठित जस्टिस एस. ए बोबडे, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की आंतरिक समिति से मुलाकात कर कहा है कि एक तरफा सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट की छवि खराब होगी। इन दोनों जजो ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला की मांग के मुताबिक उसे वकील के जरिए अपनी बात रखने की अनुमति दी जाए। वहीं इस मामले में निष्पक्षता के लिए किसी न्यायविद को अमाइकस क्यूरी बनाया जाए।

गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश पर लगे यौन उत्पीड़न की जांच के लिए आंतरिक कमेटी का गठन किया गया है जिसमें दूसरे नंबर के जज जस्टिस एस. ए बोबडे की अध्यक्षता में बनी तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई है। इस कमेटी में जस्टिस बोबडे के अलावे जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी शामिल है। 

इससे पहले मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी महिला ने कहा था कि वह मामले की जांच करने वाली शीर्ष अदालत की आंतरिक कमेटी के सामने पेश नही होगी। महिला ने दावा किया था कि उन्हें सुनवाई के दौरान वकील रखने या किसी कानूनी सहयोग की अनुमति नही दी गई है जिसके चलते सुनवाई के दौरान बहुत घबराहट का माहौल रहता है। 

यह दावा करते हुए शिकायतकर्ता ने कमेटी के सामने पेश नहीं होने की बात कही थी। शिकायतकर्ता की इसी मांग को अब सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने आंतरिक जांच कमेटी के सामने उठाया है और कहा है कि महिला की मांग पर ध्यान दिया जाए, क्योंकि उनकी गैर मौजूदगी में सुनवाई करना ठीक नही है। 

गौरतलब है कि यह शिकायतकर्ता महिला सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों को एक शपथ-पत्र भेजा था। जिसके बाद इस मामले की जांच के लिए आंतरिक कमेटी का गठन किया गया था।