आरएलएसपी के मुखिया बिहार के स्वघोषित ओबीसी मतों के ठेकेदार उपेन्द्र कुशवाहा ने एनडीए में वापसी के सारे रास्ते बंद कर लिए हैं। उन्होंने मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री के अपने पद और लोकसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि कुशवाहा के एनडीए छोड़ने के कुछ समय के बाद बिहार में पार्टी के विधायकों ने बगावत कर दी है। बिहार में पार्टी के दो विधायक हैं।

माय नेशन से बात करते हुए आरएसएसपी के सूत्रों ने यह सनसनीखेज जानकारी दी कि वह 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी नुकसान पहुंचाएंगे। जहां ओबीसी मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है। 

आरएसएसपी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पहले ही बोल दिया है कि 2019 के चुनाव के दौरान कुशवाहा से यूपी में प्रचार जरुर कराया जाए। 

कुशवाहा की पार्टी ने यूपी में प्रचार के लिए पहले से ही तैयारी कर रखी हैं। जिसमें इस बात को मुख्य रुप से मुद्दा बनाया जाएगा कि कैसे एक पिछड़ी जाति के नेता को एनडीए सरकार में मंत्री रहते हुए नजरअंदाज किया गया। 

माय नेशन को मिली दूसरी एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक आरएलएसपी को महागठबंधन की ओर से नौ सीटों का प्रस्ताव दिया गया है। जिसमें से छह सीटों पर सीधा आरएलएसपी के उम्मीदवार लड़ेंगे। 

जबकि बाकी की तीन सीटों पर नीतीश कुमार के दोस्त से दुश्मन बने शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। यादव जल्दी ही आरएलएसपी में अपनी पार्टी के विलय की घोषणा कर सकते हैं। 

पार्टी नेता शिवराज सिंह ने माय नेशन में यह बात साफ कर दी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी महागठबंधन का हिस्सा बनेगी। उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा वोटबैंक रामविलास पासवान के वोट बैंक के बराबर है। हमारा एनडीए को त्यागना उनसे ओबीसी वोट बैंक को दूर कर देगा। न केवल बिहार में बल्कि उन राज्यों में भी जहां ओबीसी वोट बैंक भारी संख्या में है।’

उपेन्द्र कुशवाहा कोयरी समुदाय से आते हैं, जिसकी संख्या बिहार में लगभग छह फीसदी है। इस समुदाय के संख्या बल के आधार पर ही उपेन्द्र कुशवाहा कांग्रेस के सामने मोलभाव कर रहे हैं। 

लेकिन 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के समय कुशवाहा का यह संख्या बल कोई खास कमाल नहीं कर पाया था। जबकि बीजेपी ने उन्हें 23 सीटें चुनाव लड़ने के लिए दी थीं। लेकिन वह इसमें से मात्र दो ही सीटें जीत पाए। जबकि एक साल पहले ही 2014 के लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी ने एनडीए में रहते हुए खुद को मिली तीन में से सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसलिए बीजेपी ने यह नतीजा निकाला कि लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी को मिली जीत मोदी लहर का नतीजा थीं। 

इसके अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उपेन्द्र कुशवाहा की अदावत भी उनके एनडीए से हुए अलगाव के लिए जिम्मेदार है। कुशवाहा खुद को बड़े ओबीसी चेहरे के रुप में प्रस्तुत करते हैं और नीतीश कुमार की ओबीसी राजनीति को हमेंशा नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। कुशवाहा को जवाब देने के लिए ही नीतीश कुमार ने अक्टूबर में कोयरी-कुर्मी जातियों की रैली का आयोजन किया था। 

उपेन्द्र कुशवाहा कोयरी समुदाय से आते हैं जबकि नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से। हालांकि पहले इन दोनों समुदायों को हमेशा से एक माना जाता था। यह दोनों जातियां लव-कुश के नाम से हमेशा नीतीश कुमार के पीछे मजबूती से खड़ी रहीं हैं।

इस बीच माय नेशन ने बिहार मे जमीनी स्तर के कई कोयरी समुदाय के नेताओं से बात की। जिन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें वर्तमान घटनाक्रम से दुख हुआ है और उनकी सहानुभूति कुशवाहा के साथ है। 

राजनीतिक विश्लेषक बिहार में हो रहे इन बदलावों पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। फिलहाल कागज पर तो वोट बैंक के आंकड़े कुशवाहा के पक्ष मे नजर आ रहे हैं। 
लेकिन जल्दबाजी में यह कहना गलत होगा कि जातियों का यह आंकड़ा वोट बैंक में भी बदल जाएगा। क्योंकि 2015 के आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि कुशवाहा के अपने समुदाय ने उनका साथ नहीं दिया था। 

फिर भी बिहार की राजनीति के ट्रेंड को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भले ही बिहार में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव में कुशवाहा एनडीए को नुकसान पहुंचाने में सफल हो जाएं। लेकिन 2019 के आम चुनाव में वह काफी कमजोर दिख रहे हैं।