राज्य में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राज्य में संगठन की कमान अपने हाथ में रखना चाहती है। लिहाजा अब वसुंधरा प्रदेश की अध्यक्ष बनाना चाहती है। हालांकि राज्य के ज्यादातर नेता वसुंधरा को पार्टी अध्यक्ष का पद देने के लिए तैयार नहीं हैं। क्योंकि इन नेताओं के कहना है कि उनके कारण ही राज्य में पार्टी की दुर्गति हुई है।

राज्य में भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी है। चुनाव के बाद कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाई है। इस चुनाव में भाजपा 73 सीटें मिली जबकि 99 सीटें हासिल कर कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाई है। अब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राज्य में संगठन की कमान अपने हाथ में रखने के लिए पार्टी नेताओं पर दबाव बनाए हुए हैं। वसुंधरा राजे प्रदेश अध्यक्ष का पद चाहती हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पार्टी को जातीय समीकरण के साथ-साथ वसुंधरा राजे को भी नाराज नहीं करना है।

विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटा पाया था और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भी अपने पसंद का नियुक्त नहीं कर पाई थी। दिल्ली से राजपूत नेता गजेंद्र शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा रहा था लेकिन वसुंधरा के अड़ने के बाद पार्टी को मदद लाल सैनी को अध्यक्ष बनाना पड़ा। सैनी को वसुंधरा का करीबी नेता बताया जाता है। हालांकि अब पार्टी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। इस हिसाब से प्रदेशों के संगठनों को भी पुनगर्ठित करने की कवायद शुरू हो गई है। राजस्थान में 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 25 में से सभी 25 लोकसभा सीटें जीती है।

लेकिन वसुंधरा सरकार के दौरान राज्य में हुए उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। इसलिए पार्टी के सामने चुनौती है, फिर से 25 सीटें जीती जाएं। पार्टी चाहकर भी वसुंधरा को किनारे नहीं कर सकती, क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। पार्टी ने उन्हें विपक्ष का नेता बनाए जाने का प्रस्ताव दिया लेकिन वह इस बार तैयार नहीं हैं। वह चाहती हैं कि प्रदेश अध्यक्ष बनकर वह संगठन चलाएं, जबकि पार्टी किसी जाट नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती हैं।

2008 में वसुंधरा विपक्ष की नेता थीं, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अनबन होने के कारण उन्हें नेता प्रतिपक्ष पद छोड़ने को कहा गया, लेकिन वसुंधरा ने अध्यक्ष और पार्टी के संसदीय दल के निर्णय को नहीं माना। नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने व्यक्तिगत प्रयास से वसुंधरा से इस्तीफा दिलवाया और शर्त के मुताबित कुछ महीने वाद फिर से बनवा दिया। विधानसभा में पार्टी का नेता विपक्ष के नाम के तौर पर गुलाब चंद कटारिया और राजेंद्र राठौड़ का नाम चल रहा है।