मुंबई। महाराष्ट्र में शिवसेना  के नेता राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिल चुके हैं। शिवसेना को मिल समय शाम साढ़े सात बजे खत्म हो गया है। वहीं शिवसेना ने सरकार बनाने के लिए राज्यपाल से 48 घंटे का समय मांगा था। लेकिन उन्होंने कोई आश्वासन नहीं दिया है। अभी तक शिवसेना के पास अपने 56 विधायकों के साथ कुछ निर्दलीय विधायकों का ही समर्थन है। क्योंकि न तो एनसीपी ने और न ही कांग्रेस ने राज्यपाल को अपने समर्थन की चिट्ठी सौंपी है। लेकिन राज्य में दो अलग अलग धुरियों के हो रहे मिलने को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं। लोग यही पूछ रहे हैं कि ये रिश्ता क्या कहलाता है।

असल में शिवसेना पूरे देश में कट्टर हिंदुत्व की राजनीति का चेहरा माना जाता है। जबकि कांग्रेस खुद को सेक्युलर साबित करती है। शिवसेना का प्रभाव केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित है। क्योंकि इससे बाहर न तो शिवसेना का राजनैतिक आधार है और न ही वोट बैंक। महाराष्ट्र में भी शिवसेना हिंदूओं की पार्टी मानी जाती है। लेकिन मौजूदा राजनीति में दोनों दल अपने अपने चेहरे को बदल रहे हैं। जिसको सवाल उठाने लाजमी है। लेकिन इसे राजनीति के ही रंग कहेंगे। जो कभी भी बदल सकते हैं।

लिहाजा महाराष्ट्र में अपनी तीन दशक की दोस्ती सत्ता के लिए शिवसेना तोड़ चुकी है और वह सेक्युलर कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश कर रही है। हालांकि इसका भविष्य में शिवसेना को या फिर क्या फायदा या नुकसान होगा। ये तो भविष्य बताएगा। लेकिन मौजूदा दौर में भगवामय अब सेक्युलर हो रही है। जिस कांग्रेस से शिवसेना ने हमेशा से ही परहेज किया। उसकी कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने फोन पर बात की और सरकार बनाने को समर्थन मांगा। हालांकि शिवसेना को न तो एनसीपी और न ही कांग्रेस बिन शर्त समर्थन दे रहे हैं। एनसीपी तो पहले ही साफ कर चुकी है कि राज्य में सरकार बनाने के लिए एनसीपी को सशर्त समर्थन दिया जाएगा।

हालांकि अभी तक शिवसेना को कांग्रेस की तऱफ से समर्थन का पत्र नहीं मिला है। क्योंकि कांग्रेस अभी तक इस बारे में कोई फैसला नहीं कर सकी है। लिहाजा माना जा रहा है कि कांग्रेस मंगलवार तक इस बारे में फैसला करेगी। हालांकि कांग्रेस का एक धड़ा भविष्य में होने वाले नफा नुकसान के बारे में आंकलन कर रहा है। क्योंकि महाराष्ट्र का नुकसान कांग्रेस को अन्य राज्यों में उठाना पड़ सकता है।

लिहाजा कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस एनसीपी और महाराष्ट्र के विकास के नाम पर इन दोनों दलों की सरकार को बाहर से समर्थन दे। हालांकि कांग्रेस हमेशा से ही शिवसेना और भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी कहती आई है। लिहाजा अचानक उसे समर्थन देने से पार्टी की इमेज खराब हो सकती है। खासतौर से अल्पसंख्यकों में। वहीं पार्टी को इसका नुकसान दूसरे राज्यों में होने वाले चुनाव में भी उठाना पड़ सकती है।

शिवसेना ने उठाया था सोनिया का विदेशी मूल का मुद्दा

कभी शिवसेना ने कांग्रेस  अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा जोर शोर से उठाया था। जिसका सोनिया गांधी को राजनैतिक तौर से नुकसान हुआ था। इसकी मुद्दे के कारण वह देश की पीएम नहीं बन सकी। इसकी टीस अभी तक सोनिया के दिल में है। 

कांग्रेस में समर्थन को लेकर दो धड़े

हालांकि शिवसेना को समर्थन देने से पहले ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले संजय निरुपम ने भी सवाल उठाए हैं। हालांकि पार्टी के नेताओं ने निरुपम के बयान को कोई तवज्जो नहीं दी है। निरुपम पार्टी से नाराज चल रहे हैं। लिहाजा पार्टी में एक तबका विपक्ष में बैठने की वकालत कर रहा है। लेकिन पांच साल सत्ता से दूर रह चुके कांग्रेस के ज्यादातर नेता सरकार का समर्थन करने को बेताब दिख रहे हैं।