भारतीय राजनीति में एक अटल पहचान बना चुके पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन में एक बार ऐसा भी पल आया। जब जिस लखनऊ को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। उसी लखनऊ के नगर निगम ने उनका नाम वोटर लिस्ट के काट दिया। हालांकि तकनीकी तौर पर नगर निगम का कहना था कि वह यहां नहीं रहते हैं। लेकिन अटल के नाम काटे जाने का लखनऊ के पार्षदों ने जबरदस्त विरोध किया था।

भारतीय राजनीति में पहचना बन चुके अटल बिहारी वाजपेयी वैसे तो मध्य प्रदेश के रहने वाले थे। लेकिन उन्होंने उत्तर प्रदेश खासतौर से लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बनाया। लखनऊ का शायद ही कोई मोहल्ला हो, जहां अटल ने भाजपा के लिए प्रचार न किया हो। अटल लखनऊ की गली गली से वाकिफ थे। लेकिन उनके जीवन में ऐसा भी दौर आया जब उनकी व्यस्तता इतनी बढ़ गयी कि वह लखनऊ न आ पाये। जिसके कारण उनका लखनऊ की वोटर लिस्ट से नाम काट दिया।

इसके लिए नगर निगम के तर्क थे कि अटल ने सन् 2000 के बाद वोट नहीं डाला। निगम का कहना था कि मतदाता पुनरीक्षण अभियान के तहत उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। उनका वोटर क्रमांक 1054 था और उन्होंने आखिरी बार नगर निगम के चुनाव में वर्ष 2000 में वोट डाला था। उन्होंने वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद कोई वोट नहीं डाला है। वाजपेयी 1999 से 2004 तक आखिरी बार सांसद रहे थे। अटल पांच बार लखनऊ से लोकसभा के सांसद बने और उसके बाद उन्होंने अपने करीबी लालजी टंडन को लखनऊ से सांसद बनाया।

अटल बाबू बनारसी दास वार्ड के वोटर थे। वोटर लिस्ट में उनका पता बासमंडी स्थित मकान नंबर 92/98-1 था। बहरहाल तीन मंजिल का मकान राजेंद्र स्मृति भवन अब किसान संघ का कार्यालय है। नगर निगम का कहना था कि पिछले कई वर्षों से पूर्व पीएम राजधानी में निवास नहीं कर रहे हैं। इसलिए उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। हालांकि उस वक्त वाजपेयी लुटियंस जोन स्थित 6-ए कृष्ण मेनन मार्ग पर रहते थे।

अटल चुनावों के दौरान अकसर लखनऊ आते थे और सब धर्म के लोगों से वोट देने को कहते थे। इसका नतीजा ये रहा कि लखनऊ की जनता ने उन्हें हमेशा से ही भारी मतों से जिताया। चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक कोई व्यक्ति अपने पते पर छह महीने से ज्यादा नहीं रहता है तो उसका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया जाता है।