इसलिए वह पिछले तीन दशकों से भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेडे हुए है। इसके बारे में पाक में कहा जाता है बिना युद्ध किए हजार  घाव देने का युद्ध । इसे कम तीव्रता वाला युद्ध भी कहते हैं जिसमें भारत को कम लागत में ज्यादा नुक्सान पहुंचाया जा सकता है। 

इसके लिए पाकिस्तान ने राज्य द्वारा प्रायोजित आतंकवादियों की  अलग फौज तैयार की हुई है। भारत के कई शहर ,हजारों नागरिक पाकिस्तान के इस आतंकवादियों द्वारा लड़े जानेवाले छद्म युद्ध के शिकार हो चुके हैं। इसके तहत राजधानी दिल्ली में संसद पर हमला हुआ , आर्थिक राजधानी मुंबई भी आतंकी हमले का निशाना बना है। 

इस युद्ध का नवीनतम उदाहरण है पुलवामा में हुआ पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैशे मोहम्मद  का आतंकी हमला जिसमें 40 सैनिक मारे गए । पाकिस्तान की इस कायराना कोशिश के खिलाफ सारे देश में एक गुस्सा था।मोदी ने इस गुस्से को अभिव्यक्ति देते हुए बालाकोट सहित तीन जगहों पर हवाई हमले करके जवाब दिया जिसमें कम से कम तीन सौ लोग मारे गए। मगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। इसके बाद उसके आतंकवादियों ने जम्मू में फिर से हमला किया। 

इसलिए केवल जवाबी हमले करने से बात नहीं बनेगी । हमें भी पाकिस्तान के खिलाफ लगातार आक्रामक छद्मयुद्ध की नीति बनानी होगी। जिससे पाकिस्तान को ऐसा भारी नुक्सान हो कि जिससे उसे लगे कि उसे छद्मयुद्ध की भी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

मुझे तो लगता है कि पाकिस्तानी छद्मयुद्ध का जवाब तो केवल छद्मयुद्ध है। हमें भी पाकिस्तान की छद्मयुद्ध  या कोवर्ट आपरेशन की नीति को अपना लेना चाहिए। जिसमें आप दुश्मन पर हमला कर सके । उसकी जिम्मेदारी से पल्ला भी झाड सकें। हमला करनेवालों को सजा भी दे सकें। जब तक हम यह क्षमता पैदा नहीं करेंगे तब तक आतंकवाद जारी रहेगा। मोदी सरकार से पहले  भारत पर एक के बाद  एक पाकिस्तान के आतंकी हमले होते रहे मगर भारत कभी उसका जवाब नहीं दे पाया। 

हम केवल पाकिस्तान को धमकियां देकर चुप हो जाते थे। कारण हमने अपने पैरों पर कुल्हाडी मार ली थी। पाकिस्तानी खुपिया एजंसी  आईएसआई ने इस देश में न जाने कितने आतंकी हमले करवाए। न जाने कितने आतंकवादी भारत में आतंकवादी करतूतें करके पाकिस्तान में शरण लेते हैं। पठानकोट और उरी के हमलों का सूत्रधार ,मुंबई बमकांड का सूत्रधार दाऊद इब्रहिम या 26नंवबर के हमले का मास्टर माइंड सईद हाफिज पाकिस्तान में हैं। लेकिन भारत जैसा महाशक्ति बनने का सपना देखनेवाला देश उनका बाल भी बांका नही कर पाया।  

हम इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद जैसा आपरेशन कर दाऊद,अजहर या हापिज सईद  जैसे आतंकी को पकड़ नहीं पाए। जैसे अमेरिका ने ओसामा को एबटाबाद में घेरकर मारा वैसा दुस्साहस नहीं कर पाए। कभी कभी तो लगता है सीआईए, मोस्साद, या एमआई 16 जैसे दुस्साहसी अभियान आपरेशन भारत के बस की बात नहीं । 

यह भले ही आज की हकीकत हो लेकिन बहुत से जानकारों का कहना है कि कभी हमारे देश में रॉ जैसी खुफिया एजंसी थी जो ऐसे अभियान करने में सक्षम थी। वह भारतीय खुफिया एजंसियों का स्वर्णयुग था। कई दशकों की मेहनत से सरकार ने रॉ को खड़ा किया था जिसने कभी कहूटा, सिक्किम, बांगलादेश, श्रीलंका जैसे कोवर्ट आपेरशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था लेकिन लेकिन इस कई दशकों की मेहनत को बाद के मोरारजी और गुजराल जैसे प्रधानमंत्रियों  ने चौपट कर दिया । जिसका नतीजा हम आजतक भुगत रहे हैं।उर्दू का एक शेर है न – लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई।

कुछ अर्से पहले तत्कालीन  रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने एक बार फिर इस पुराने घाव को कुरेद दिया।एक बार फिर पुरानी बहस को छेड़ दियाकि कैसे हमारे राजनेताओं ने हमारी एजंसी रॉ जैसी खुफिया एजेंसी को बधिया बना दिया। रक्षा मंत्री परिकर ने कहा कि पाकिस्तान में खुफिया नेटवर्क यानी डीप एसेट तैयार करने में 20 से 30 साल लग जाते हैं। कुछ ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं जिन्होंने इस तरह के डीप एसेट को खतरे में डाल दिया था ।
  
वर्ष 1997-98 में हुए एक फैसले से खुफिया एजेंसी रॉ और आईबी के अधिकारियों में आज भी नाराजगी है। खुफिया विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढाने के पक्षधर इंद्रकुमार गुजराल ने  रॉ के पाकिस्तान में कोवर्ट आपरेशन बंद करावा दिए। इसका खामियाजा पाकिस्तान में रॉ के मजबूत नेटवर्क को भुगतना पड़ा।

भारत ने पाकिस्तान में जो खुफिया तंत्र का जाल बिछाया वह एक झटके में खत्म हो गया। वैसे कुछ खुफिया अफसर मानते हैं कि रॉ की दो बार हत्या हुई एक मोरारजी देसाई के समय दूसरा गुजराल के समय। भारतीय खुफिया एजेंसी के पूर्व अधिकारी आर.के. यादव ने  एक इंटरव्यू में कहा था -  मैं देखता हूं कि पाकिस्तान में रॉ के जो ऑपरेशन उस वक्त चल रहे थे उन्होंने सब बंद करवा दिया जिससे देश को बहुत बड़ा धक्का लगा। इन ऑपरेशन को बंद नहीं करनी चाहिए था ।

गुजराल ने अपने ग्यारह महीने के कार्यकाल में रॉ के पाकिस्तान स्पेशल ऑपरेशन डेस्क को निष्क्रिय कर दिया था। इसकी वजह से वहां से खुफिया इनपुट आना लगभग बंद हो गए। इतना ही नहीं वहां चल रहे रॉ और आईबी के कई ऑपरेशन अचानक दिशाहीन हो गए। सूत्रों के मुताबिक इस गफलत में अपने कई एजेंट पहचान में आ गए और उनकी हत्या कर दी गई।

तब खुफिया हल्कों में पाकिस्तान में रॉ के  अप्रत्यक्ष आपरेशन बंद कराने के फैसले  पर खुफिया हल्कों में काफी बहस होती रही। कई अफसरों ने गुजराल को समझाने की भी कोशिश की कि कोवर्ट आपरेशन का  आधार और  क्षमता  तैयार होने में लंबा समय लगता है कई बार बीस तीस साल लग जाते हैं। अभी यदि कोवर्ट आपरेशन रोक दिए जाए तो यदि भविष्य में कभी सरकार ने कोवर्ट आपरेशन फिर चलाने का फैसला किया तो हमारे पास प्रशिक्षित और अनुभवी लोग नहीं होंगे। 

इसके अलावा 1977-79 के बीच मोरारजी देसाई ने रॉ के एक ऑपरेशन कहूटा को रोक ऐतिहासिक गलती की थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के एटमी कार्यक्रम के खिलाफ इस ऑपरेशन की इजाजत दी थी। 

आपरेशन कहूटा रॉ द्वारा पाकिस्तान में किया गया बहुत महत्वाकांक्षी और साहसिक कोवर्ट आपरेशन था। कहूटा भारत के एटमी कार्यक्रम को दिया गया पाकिस्तान का जवाब था। दरअसल जुल्फिकार अली भुट्टो इसके लिए लंबे समय से कोशिश में थे। वे कहते थे हम एटम बम बनाएंगे भले ही हमारे लोगों को घास की रोटी खानी पड़े और वैज्ञानिक एक्यू खान के नेतृत्व में इस्लामी बम का जन्म हुआ।

रॉ ने पाकिस्तान के एटमी रहस्य का कैसे पता लगाया इसकी कहानी बहुत दिलचस्प और रोमांचक है।रॉ के एजंटों में उस सैलून से कुछ बाल हासिल किए थे जहां पाक वैज्ञानिक बाल कटवाने जाता था। उन बालों का वैज्ञानिकों द्वारा विश्लेषण किए जाने के बाद रॉ को पता चला कि पाकिस्तान के वैज्ञानिको ने एटम बम के लिए जरूरी एनरिच्ड यूरेनियम बनाने में सफलता हासिल कर ली है। 

इसके बाद रॉ ने काहूटा संयंत्र में अपने एजंटों की घुसपैठ कराने में कामयाब हो गया।1978 में रॉ के  एक पाकिस्तानी एजंट ने केवल 10000 डालर में काहूटा संयंत्र का ब्लू प्रिंट आफर किया था। लेकिन तब के प्रोटोकाल के मुताबिक रॉ को किसी भी ऑपरेशन के लिए प्रधानमंत्री की अनुमति लेना जरूरी था। 

लेकिन तब इंदिरा गांधी की जगह मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन चुके थे। उन्हें रॉ से चिढ़ थी इसलिए उन्होंने रॉ का प्रस्ताव ठुकरा दिया। मोरारजी ने इससे भी बडी गलती यह की कि जनरल जिया को बता दिया कि भारत पाकिस्तान के एटमी कार्यक्रम के बारे में जानता है।

उसके बाद जिया उल हक ने रॉ के हर एजेंट के ढूंढ ढूंढकर खत्म किया और  उसके बाद हम पाकिस्तानी एटमी कार्यक्रम की खोज खबर नहीं रख पाए। आप के मन में सवाल उठेगा यह हुआ कैसे। 1977 में इतिहास चक्र ने पलटा खाया।भारत में इंदिरा गांधी की जगह जनता पार्टी के मोराररजी देसाई प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान में भुट्टों का तख्ता पलटकर जनरल जिया उल हक शासक बने और मोरारजी से निऱाश रॉ के संस्थापक रामनाथ काव ने इस्तीफा दे दिया।

मोरारजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद रॉ के बजट में भारी कटौती कर दी गई। मोरारजी रॉ को हिकारत की नजर से देखते थे। उनका मानना था कि रॉ कुछ नहीं एक और पुलिस बल है। तब काव ने यह कहकर इस्तीफा दे दिया कि ऐसी खुफिया एजेंसी के लिए काम करना बेकार है जिसपर प्रधानमंत्री का ही विश्वास नहीं हो।

रमन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि जनरल जिया अक्सर मोरारजी से यूं ही दोस्ताना बातचीत करते थे। उन्हें मोरारजी के मूत्र चिकित्सा के प्रति प्रेम का पता इससिए वे अक्सर मोरारजी से पूछते थे कि मूत्र सुबह पीना चाहिए या दिन में किसी भी समय। कितना पीना चाहिए आदि ।.मोरारजी जिया की इन बातों पर फिदा हो जाते थे।

ऐसे ही किसी भावुक क्षण में उन्होंने जिया को बता दिया कि भारत कहूटा के बारे में सब जानता है। इसके लिए जिया हमेशा मोरारजी के कृतत्ज्ञ रहे और उन्होंने मोरारजी को निशाने पाकिस्तान दिया। मगर जिया ने रॉ के एजेंटों को चुन चुन कर खत्म किया।


इंदिरा गांधी सरकार ने 1968 में रॉ का गठन किया. जाने-माने खुफिया अधिकारी आर.एन.कॉव को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। कॉव के जमाने में रॉ ने कई उल्लेखनीय काम किए। दुनिया में इसकी तुलना केजीबी, सीआईए और मोसाद जैसे खुफिया संगठनों में की जाने लगी। लेकिन 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने रॉ को लगभग ठप कर दिया। विदेशों में इसके दफ्तर बंद कर दिए गये, बजट भी बहुत कम कर दिया गया।

 ऐसा इसलिए क्योंकि देसाई रॉ को इंदिरा गांधी का वफादार संगठन मानते थे।लेकिन बाद की सरकारों ने इसे अपनी प्राथमिकता से निकाल दिया। जयपुर बम धमाकों के वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार एम.के. नारायण ने भी यह स्वीकारोति की थी कि पूरा खुफिया तंत्र विफल हो गया है। 


इसलिए जब पाकिस्तानी हमले हुए तब यह महसूस किया गया कि रॉ जैसी मजबूत खुफिया एजेंसी की सख्त जरूरत है जो पाक को उसकी भाषा में जवाब दे सके।  लेकिन मोरारजी और गुजराल जैसे प्रधानमंत्रियों के रॉ के बारे में लिए गलत फैसलों के कारण पाकिस्तान में रॉ का पाकिस्तान में बिछाया हुआ जाल नेस्तनाबूद हो चुका था।

उससे भी दुर्भाग्य की बात यह है कि हम पाकिस्तान के आतंकी हमले सहते  रहे पर किसी प्रधानमंत्री को रॉ के कोवर्ट आपरेशनों को पाकिस्तान में मजबूत करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। पर अब जमाना बदल गया है । यह मोदी का जमाना है।

 मैंने पढ़ा था -5 सितंबर 1972 को जर्मनी में ओलंपिक खेलों के दौरान फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के आतंकवादियों ने इजरायल के 11 खिलाड़ियों को पराए मुल्क में मार डाला। पूरा देश इस घटना से गुस्से में था लोग दुखी थे। लेकिन इजराइल की दादी मां गोल्डा मेयर ने छाती नहीं पीटी वो बूढ़ी औरत रोई नहीं बल्कि उसने ऐसा कुछ किया कि फिलस्तीनी आतंकी तो क्या दुनिया भर के आतंकवादी दहल गए।

गोल्डा मेयर के आदेश पर इजरायली सेना ने अपने खिलाड़ियों की हत्या के महज 48 घण्टे में सीरिया और लेबनान में घुसकर फलस्तीन के 10 कैम्पों पर एयर स्ट्राइक कर 200 आतंकियों मौत के घाट उतार दिया। इजरायल की सबसे खूंखार खुफिया एजेंसी मोसाद  ने अगले 7 साल तक दुनियां भर में खोज खोज कर अपने खिलाड़ियों के हत्याकांड से जुड़े सभी 35 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। 

मोसाद टारगेट को मारने से पहले बुके भेजती थी। जिसमें लिखा होता था " ये याद दिलाने के लिए कि हम न तो भूलते हैं न ही माफ करते हैं"। उसके बाद आतंकवादी के जिस्म में गिनकर 11 गोली दाग दी जाती थीं। 11 गोलियां इसलिए कि आतंकियों ने इजरायल के 11 खिलाड़ी मारे थे।

क्या कभी हमारे हाथ भी  कभी अजहर,दाऊद और हाफिज सईद के गिरेबां तक पहुंचेंगे ? हो सकता है। मोदी है तो उम्मीद है।