यूजीसी के नए नियमों के मुताबिक जिन जगहों पर 14 से कम पद निकाले जाएंगे वहां 13 प्वाइंट रोस्टर लागू हो रहा था। इसके अलावा जहां इससे अधिक सीटें होंगी वहां 200 प्वाइंट रोस्टर लागू किया जा रहा था। 

13 प्वाइंट रोस्टर में दरअसल यह स्पष्ट बताया गया था कि नियुक्तियों में किस वर्ग के लिए कौन सी व्यवस्था रहेगी। 

13 प्वाइंट रोस्टर के प्रावधानों के मुताबिक पहला, दूसरा और तीसरा पद अनारक्षित होगा। जबकि चौथा पद ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए होगा। इसके बाद फिर से पांचवां और छठा पद अनारक्षित रहेगा। इसके बाद 7वां पद अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए होगा। जबकि 8वां पद ओबीसी के लिए होगा। जिसके बाद 9वां, 10वां, 11वां पद अनारक्षित रहेगा। जबकि 12वां पद ओबीसी उम्मीदवारों के लिए होगा। जिसके बाद 13वां पद फिर से अनारक्षित श्रेणी में रहेगा। जबकि 14वां पद अनुसूचित जनजाति के लिए होगा। 

13 प्वाइंट रोस्टर के मुताबिक अगर किसी विश्वविद्यालय में चार पदों के लिए वेकैंसी निकलती है तब जाकर ओबीसी उम्मीदवार को मौका मिलेगा। यदि सात पदों की वेकेंसी निकलने पर अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को मौका मिलेगा और 14 पदों की वेकेन्सी निकलने पर अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार को मौका मिलेगा। 

इस प्रावधान का दलित और ओबीसी संगठन के लोग इस आधार पर विरोध कर रहे थे कि आमतौर पर यूनिवर्सिटी के किसी एक विभाग में चार पांच से अधिक सीटें नहीं होती है। इसलिए 13 प्वाइंट रोस्टर के मुताबिक यदि चला गया तो ओबीसी और दलित उम्मीदवारों का नंबर ही नहीं आएगा। 

दलित और ओबीसी संगठनों के लोग पुरानी 200 प्वाइंट रोस्टर की व्यवस्था के पक्ष में थे। जिसके मुताबिक एक से लेकर 200 नंबर तक आरक्षण कैसे लागू होगा इसका ब्योरा होता है। इसके तहत 49.5 प्रतिशत आरक्षण लागू होता था और बाकी की सीट अनारक्षित होती थी।  

पहले यूनिवर्सिटी को एक इकाई माना जाता था और इसी आधार पर आरक्षण लागू होता था। लेकिन बाद में यूजीसी ने नए नियम के मुताबिक आरक्षण को अलग अलग विभागों के हिसाब से लागू कर दिया। 

यूजीसी के इस नियम पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुहर लगा दी थी। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई। जिसने भी 13 प्वाइंट रोस्टर को सही करार दिया। 

अब मोदी सरकार ने अध्यादेश लाकर दलित और ओबीसी संगठनों की मांग पूरी करते हुए 13 प्वाइंट रोस्टर को रद्द कर दिया है और पुरानी 200 प्वाइंट रोस्टर को बनाए रखा है। 

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