ये भी हो सकता है कि अगर ये दोनों नेता किसी अपने खास समर्थक को इस पद पर नियुक्त कर राष्ट्रीय राजनीति में अपना हाथ आजमाए। इसके अलावा ये नेता आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कोई बड़ी सौदेबाजी कर सकते हैं। यानी जो सीएम बनेगा वह लोकसभा चुनाव में सीट के लिए ज्यादा दावेदारी नहीं करेगा और जो उप मुख्यमंत्री बनेगा उसके समर्थकों को लोकसभा सीट में ज्यादा सीटें मिलेंगी।
तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव में मिली जीत से कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है। लेकिन इस आत्मविश्वास में नेताओं की महत्वाकांक्षा से कांग्रेस आलाकमान की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। हालांकि अभी तक कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसी के नाम पर अपनी मुहर नहीं लगाई है। लेकिन कांग्रेस आलाकमान इन नेताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा के फार्मूले को लागू कर सकता है। यानी राज्य में मुख्यमंत्री के साथ उपमुख्यमंत्री के पद के जरिए सभी को साथ लेने का फैसला। अगर ऐसा होता है तो इस फार्मूले को तीन राज्यों में लागू किया जा सकता है।
हालांकि कांग्रेस में सीएम के नाम को लेकर पिछले दो दिन से माथापच्ची चल रही है। लेकिन किसी भी नेता का नाम सीएम के लिए तय नहीं हो पाया है। कांग्रेस ने राज्यों में चुनाव के दौरान बड़े नेताओं को अलग अलग जिम्मेदारी दी। जिसके कारण उसकी मुश्किलें बढ़ गयी हैं, क्योंकि हर नेता अपने दावे कर रहा है और विधायकों के समर्थन का दावा कर रहा है। बहरहाल कांग्रेस इन राज्यों में भाजपा का फार्मूला लागू कर सकती है। जिस तरह से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चुनाव केशव प्रसाद मोर्या के नेतृत्व में लड़ा, लेकिन बाद में सीएम के पद पर योगी आदित्यनाथ को नियुक्त किया। पार्टी ने उसके बाद मौर्या का नाराजगी को दूर करने के लिए उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया।
कुछ इस तरह के फार्मूले को लेकर कांग्रेस में चर्चा चल रही है। इससे कांग्रेस को फायदा ही होगा, क्योंकि अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वह नेताओं को एकजुट रखने में कामयाब हो सकती है। हालांकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को ये फार्मूला लागू करने मे कोई दिक्कत नहीं है। यहां पर सीएम और डिप्टी सीएम को लेकर ज्यादा नेताओं को ज्यादा दिक्कत नहीं है। लेकिन राजस्थान और मध्य प्रदेश में इस फार्मूले पर नेताओं को दिक्कत है। राजस्थान में गहलोत दो बार सीएम रह चुके हैं। लिहाजा उप मुख्यमंत्री के पद पर अपनी रजामंदी नहीं देंगे, जबकि सचिव पायलट सीएम के पद से किसी कम पद पर आने के लिए तैयार नहीं हैं। क्योंकि वह वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष हैं। जबकि यही हालात मध्य प्रदेश में है। यहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उपमुख्यमंत्री के लिए तैयार नहीं है।
ये भी हो सकता है कि अगर ये दोनों नेता किसी अपने खास समर्थक को इस पद पर नियुक्त कर राष्ट्रीय राजनीति में अपना हाथ आजमाए। इसके अलावा ये नेता आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कोई बड़ी सौदेबाजी कर सकते हैं। यानी जो सीएम बनेगा वह लोकसभा चुनाव में सीट के लिए ज्यादा दावेदारी नहीं करेगा और जो उप मुख्यमंत्री बनेगा उसके समर्थकों को लोकसभा सीट में ज्यादा सीटें मिलेंगी। हालांकि अभी तक कांग्रेस आलाकमान इस बारे में फैसला नहीं कर पाया है। लेकिन माना जा रहा है कि आज शाम तक वह फैसला ले सकता है। आज कांग्रेस नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट राहुल गांधी के आवास पर अलग अलग मुलाकात की। इस बैठक में राहुल गांधी के साथ ही प्रियंका गांधी भी बैठक में मौजूद थी।
कमलनाथ, अशोक गहलोत, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट गुरुवार को ही दिल्ली पहुंच गए। बैठक में सबसे पहले राजस्थान के पर्यवेक्षक केसी वेणुगोपाल और अविनाश पांडे ने राहुल को अपनी रिपोर्ट सौंपी। उधर कांग्रेस को राजस्थान में समर्थन दे रहे एक निर्दलीय विधायक महादेव सिंह खंडेला और राजकुमार गौर ने अशोक गहलोत को सीएम बनाने की मांग कर दी। जिससे सचिन पायलट की दावेदारी कम हो गयी है।
Last Updated Dec 13, 2018, 3:31 PM IST