पोखरण: नाग मिसाइल 'निशाना लगाओ और भूल जाओ' की तकनीक पर काम करती है। एक बार दाग दिए जाने के बाद यह दुश्मन के टैंक को तबाह करके ही रुकती है। इसे फायर करने के बाद फिर से गाइड करने की जरुरत नहीं पड़ती है। 

डीआरडीओ ने स्वदेशी रूप से विकसित तीसरी पीढ़ी के एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) नाग के सफल परीक्षण का सिलसिला खत्म कर लिया है।  पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में भारतीय सेना द्वारा 7-18 जुलाई 2019 तक सफलतापूर्वक समर ट्रायल का सिलसिला चला। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सफल परीक्षण के लिए डीआरडीओ और भारतीय सेना का बधाई दी।  

इस साल के आखिर तक नाग मिसाइल का उत्पादन शुरु कर दिया जाएगा। इसके बाद भारतीय सेना को इससे लैस कर दिया जाएगा। एक आकलन के मुताबिक भारतीय सेना 8 हजार नाग मिसाइल खरीद सकती है। शुरुआती दौर में ही 500 नाग मिसाइलों का ऑर्डर दिया जाने वाला है। इस मिसाइल का निर्माण भारत की सरकारी कंपनी भारत डायनामिक्स लिमिटेड (हैदराबाद) करेगी। 

पिछले साल यानी साल 2018 की सर्दियों के मौसम में इसका विंटर यूजर ट्रायल किया गया था। इसके बाद अब समर ट्रायल करके यह जांच लिया गया कि यह मिसाइल किसी भी मौसम में दुश्मन के टैंक पर सटीक निशाना लगा सकती है। 

नाग मिसाइल का कम से कम 500 मीटर और ज्यादा से ज्यादा 4 किलोमीटर की दूरी से फायर किया जा सकता है। इससे पहले साल 2017 और 2018 में नाग मिसाइल के दो सफल परीक्षण किए जा चुके हैं। यह दोनों टेस्ट भी पोखरण में फायरिंग रेंज में ही पूरे किए गए। 

डीआरडीओ ने जानकारी दी है कि कि थर्मल इमेज के जरिये यह मिसाइल अचूक निशाना साधती है और दुश्मन के टैंक का पीछा करते हुए उसे तबाह कर देती है। नाग मिसाइल वजन में इतनी हल्की है कि इसे इधर उधर आसानी से ले जाकर उपयोग में ले सकते हैं । इसे किसी ऊंची पहाड़ी पर या दूसरी किसी जगह पर मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल के जरिए ले जाना काफी आसान है। इसका कुल वजन मात्र 42 किलो है।

नाग मिसाइल बनाने में अब तक 350 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुका है।  इसकी खासियत है कि यह दिन और रात दोनों समय दुश्मन पर वार कर सकती है। इस मिसाइल को 10 साल तक बिना किसी रख रखाव के इस्तेमाल किया जा सकता है। ये 230 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से अपने लक्ष्य पर निशाना साधती है। इस पर 8 किलोग्राम विस्फोटक पेलोड लगाया जा सकता है।