Banaras Hindu University: शहरों में कचरों के पहाड़ खड़े होते जा रहे हैं। निस्तारण के लिए सरकार की तरफ से तमाम प्रयास भी किए जा रहे हैं। अब आईआईटी बीएचयू के इंजीनियरों ने एक नई राह दिखाई है। रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग ने एलेक्ट्रोजन बैक्टीरिया की मदद से कचरा निपटान का रास्ता खोज निकाला है। इससे बिजली और हाइड्रोजन गैस भी बनाई जा सकती है। 

एक किलोग्राम कचरे से 400 वॉट बिजली 

आपको जानकर हैरानी होगी कि एक किलोग्राम कचरे में यदि बैक्टीरिया का यूज करके 400 वॉट यानी करीबन 0.4 किलोवाट बिजली प्रति घंटा जेनरेट की जा सकती है। प्रो. आरएस सिंह के अनुसार, लैब में इलेक्ट्रोजन बैक्टीरिया कचरे को बिजली में बदलने में सक्षम है। वैज्ञानिकों को सीवर से बिजली उत्पादन में सक्सेस मिली है। भगवानपुर एसटीपी में सीवर से इलेक्ट्रोजन बैक्टीरिया की मदद से पॉवर का प्रोडक्शन किया गया।

बिजली स्टोर करने को माइक्रोबियल फ्यूल सेल माडल तैयार

प्रो. आरएस सिंह का कहना है कि कचरे से जेनरेट की गई बिजली को स्टोर करने के लिए  माइक्रोबियल फ्यूल सेल (एमएफसी) का माडल भी तैयार है। सेल में यूज होने वाले प्रोटान एक्सचेंज मेंब्रेन पर 50 फीसदी का व्यय आता है। संस्थान के मटेरियल साइंस विभाग के डा. चंदन उपाध्याय की मदद से उसका भी एक सरल रास्ता निकला है। सस्ता मेंब्रेन डेवलप करने में सफलता मिली है, जो सिर्फ 300 रुपये में तैयार हो जाता है। बाजार से 17 गुना कम कीमत है। आने वाले समय में माइक्रोबियल फ्यूल सेल का सामान्य बैट्री में यूज किया जा सकता है। यह कहीं भी लगाया जा सकता है। यहां तक कि घर में ही कचरे का यूज कर पॉवर प्राप्त किया जा सकता है। दिसंबर 2023 में अमेरिका के जर्नल इन्वायरमेंट साइंस में यह शोध प्रकाशित भी हुआ है।

माइक्रोबियल फ्यूल सेल का दुष्प्रभाव नहीं

माइक्रोबियल फ्यूल सेल का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। यह नेचर बेस्ड प्रॉसेस है। इसे एनोरोबिक रिएक्शन भी कहा जाता है। इलेक्ट्रान को सर्किट में फ्लो कराया जाता है और बिजली बनाई जाती है। विभाग की लैब में कचरे से जेनरेट बिजली से बल्ब भी जलाया गया। बड़े स्तर पर प्रोडक्शन कर अन्य घरेलू उपकरण भी चलाए जा सकते हैं। कुएं में डंप कचरे से निकली गैस को प्यूरीफायर के जरिए शुद्ध किया जाता है और उसे टरबाईन में घुमाकर बिजली पैदा की जाती है। उससे जो बिजली पैदा होती है। जरूरत के मुताबिक, उसे वॉट में बदल दिया जाता है।

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