ये आम मध्यमवर्गीय लोग हैं। सुबह होती है दफ्तर भागने की जद्दोजहद के साथ तो शाम इंतजार कर रहे बच्चों को चंद मिनटों तक गले लगाने की ख्वाहिश में ऑफिस से घर को भागते हुए। दुनिया इसी में सिमटी रहती है। तिनका-तिनका जोड़ सालों की मेहनत के बाद ये आशियाना बनाते हैं। उसमें भी छल हो तो भला ये कहां जाएं।