इन फैसलों पर राजनीतिक विरोध मोदी को पहले कार्यकाल में एक सश्क्त भारत के निर्माण की नींव रखने से नहीं रोक सकी। स्वाभाविक है कि अब जब दूसरे कार्यकाल के लिए उन्हें एक मजबूत मैनडेट मिला है तो वह सशक्त भारत की अपनी परिकल्पना को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
जब कोई बाध्यता मौजूद न हो तब सुलभ की जगह कठिन फैसला लेना ही नेतृत्व के आत्मविश्वास को दर्शाता है।
नरेन्द्र मोदी का पहला कार्यकाल ऐसे फैसलों से भरा है। वन रैंक वन पेंशन, नोटबंदी, गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स, नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स, ट्रिपल तलाक बिल, इत्यादि। यह सभी फैसले राजनीति में भूचाल साबित हुए।
इन फैसलों पर राजनीतिक विरोध मोदी को पहले कार्यकाल में एक सश्क्त भारत के निर्माण की नींव रखने से नहीं रोक सकी। स्वाभाविक है कि अब जब दूसरे कार्यकाल के लिए उन्हें एक मजबूत मैनडेट मिला है तो वह सशक्त भारत की अपनी परिकल्पना को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ले रहे हैं। ऐसे में जानिए पांच कठिन फैसले जिसे वह 6 महीने से लेकर एक साल के भीतर ले सकते हैं।
जनसंख्या नियंत्रण- 2 संतान नीति
देश की जनसंख्या 134 करोड़ का आंकड़ा छू रही है और प्रजनन दर 2.33 जन्म प्रति महिला के उच्च स्तर पर है। अमेरिका में प्रजनन दर 1.80 है तो चीन में मौजूदा प्रजनन दर 1.62 है। लिहाजा, इस रफ्तार से आगे बढ़ते हुए 2024 तक भारत पड़ोसी देश चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। इस स्थिति में भारत के सामने इस जनसंख्या के लिए स्वास्थ और संसाधन जुटाने की कड़ी चुनौती रहेगी।
इसे चुनौती को देखते हुए कयास लगाया जा रहा है कि मोदी सरकार बहुत जल्द देश में दो संतान नीति को लागू कर सकती है। अभी तक चीन, हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर, वियतनामम, यूके और ईरान इस नीति पर सफलतापूर्वक अमल कर चुकी है।
चीन में एक संतान नीति 1979 में लागू हुई थी। फिर अक्टूबर 2015 में चीन सरकार ने वापस दो संतान नीति का रुख करने का फैसला किया जिससे वृद्ध होती जनसंख्या की समस्या से बच सके।
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वहीं ब्रिटिश हुकूमत के समय हॉन्ग कॉन्ग में भी 70 के दशक में बस दो संतान पर्याप्त है का नारा दिया गया और सफलतापूर्वक जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाया गया। सिंगापुर के ली कुआन यू ने दो संतान नीति लागू की और वियतनाम में भी पिछले 50 वर्षों से एक या दो संतान नीति चल रही है।
बाय बाय 35A, हेलो कश्मीरी पंडित
मोदी सरकार अपने कार्यकाल में सबसे पहले कश्मीर के लिए संविधान के विशेष प्रावधान अनुच्छेद 35A को खत्म करने की पहल कर सकती है। इस प्रावधान के चलते देश के अन्य हिस्सों जहां लोग कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते वहीं कश्मीरी महिलाओं और श्रमिकों को इस प्रावधान का खामियाजा उठाना पड़ता है।
संभावना है कि इस प्रस्ताव को हटाने की पहल मोंदी सरकार ऑर्डिनेंस के जरिए कर सकती है। हालांकि राष्ट्रपति आदेश से भी इस प्रस्ताव को हटाया जा सकता है। खासबात है कि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति के आदेश के तहत इस प्रावधान को संविधान में शामिल करने की पहल की थी।
वहीं मोदी सरकार अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीरी पंडितों को घाटी में एक बार फिर से बसाने के काम को तेज कर सकती है। ये दोनों मुद्दे कश्मीर घाटी के लिए किसी राजनीतिक विस्फोट से कम नहीं होंगे।
शिक्षा में सुधारों को आगे बढ़ाया जाएगा
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की सबसे बड़ी विफलताओं में पांच साल तक नई शिक्षा नीति को न ला पाने की रही है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी शिक्षा के क्षेत्र में इस अहम सुधार के लिए लोकसभा में एक मजबूत संख्या का इंतजार कर रहे थे। खासबात है कि भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से जर्जर शिक्षा व्यवस्था और इतिहास के साथ हुए खिलवाड़ के खिलाफ आवाज उठाती रही है और मौजूदा कार्यकाल में इस दिशा में बड़े सुधार करने के लिए पर्याप्त संसाधन केन्द्र सरकार के पास मौजूद है।
बढ़ेगा एनआरसी नागरिकता बिल का दायरा
जनसंख्या वृद्धि में जारी असंगति के खिलाफ मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल के दौरान नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन का अहम मुद्दा उठाया। जहां पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने एनआरसी का प्रावधान असम राज्य के लिए किया अब नए कार्यकाल के दौरान इसके दायरे में सभी एनडीए शासित राज्यों को लाने का काम किया जाएगा। एनडीए राज्यों के साथ-साथ मोदी सरकार के सामने इन प्रावधानों को पश्चिम बंगाल में भी लागू करने की बड़ी चुनौती है। लिहाजा, राज्य में आगामी चुनावों के बाद यदि ममता बनर्जी को सत्ता से दूर रखने में सफलता मिली तो मोदी सरकार के लिए यह काम आसान हो जाएगा।
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इसके अलावा मोदी सरकार के इस कार्यकाल के दौरान नागरिकता संशोधन बिल को जल्द से जल्द पास कराने और लागू कराने को प्राथमिकता दी जाएगी। इस बिल के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, इसाई और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है।
रोजगार के लिए बनेगा नैशनल एक्सचेंज
पहले कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार की नई नौकरी सृजन करने की विफलता के लिए सबसे ज्यादा आलोचना हुई थी। इस कार्यकाल के दौरान विपक्ष ने रोजगार के आंकड़ों से तिल का ताड़ बनाकर केन्द्र सरकार पर लगातार हमला करने का काम किया था। लिहाजा, विपक्ष के इस रुख को देखते हुए इस कार्यकाल के दौरान केन्द्र सरकार की कवायद राष्ट्रीय स्तर पर एक रोजगार एक्सचेंज जैसा प्लैटफॉर्म खड़ा करने की होगी। इस प्लैटफ़ॉर्म पर सरकारी और निजी क्षेत्रों के रोजगार आंकड़ों के साथ-साथ दोनों की क्षेत्रों से आने वाली नई रिक्तियों को पेश किया जाएगा।
इन पांच प्राथमिकताओं के अलावा भी मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआत में कई अहम फैसले ले सकती है।
Last Updated May 30, 2019, 2:14 PM IST