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जैनुल देश का पहला रियूजेबल रॉकेट बना रहे हैं। जिसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
इससे राकेट लॉन्चिंग के खर्चे में कमी आएगी। अभी एक रॉकेट का खर्चा 100 करोड़ के आसपास आता है। नई तकनीक से इसकी लागत 20 करोड़ तक होगी।
कुशीनगर के रहने वाले जैनुल आब्दीन पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम से प्रभावित थे। उनकी रूचि तारों-सितारों में गहरी हो गई।
जैनुल 10वीं कक्षा से ही रॉकेट बनाने के बारे में जानकारी करने लगें। रिसर्च शुरु कर दिया।
जैनुल ने 12वीं कक्षा पास करने के साथ तय कर लिया कि वह अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में ही काम करेंगे।
उसी दरम्यान साल 2020 में केंद्र सरकार ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर को काम की मंजूरी दी तो उनके लिए रास्ते खुल गए।
इसरो ने 2020 में 'अनलाकिंग इंडियाज पोटेंशियल इन स्पेस सेक्टर' विषय पर वेबिनार आयोजित किया। उसमें जैनुल ने वैज्ञानिकों से अपना प्लान शेयर किया।
इसरो के वैज्ञानिकों ने जैनुल के प्लान को सराहा। ग्रेजुएशन के दौरान ही मात्र 19 साल की उम्र में उन्होंने 'एब्योम स्पेसटेक और डिफेंस' कम्पनी बनाई।