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रुमा देवी का जन्म 1989 में राजस्थान में बाड़मेर में रावतसर गांव में अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था।
जब रूमा 4 साल की थीं तो उनकी मां का देहांत हो गया, पिता ने दूसरी शादी कर ली और रूमा का बचपन दादी के साथ गुजरा।
रूमा जब आठवीं क्लास में थी तो आर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई बंद कर दी गयी।
गांव के हिसाब से शादी जल्दी होती थी लिहाजा साल 2006 में जब रूमा सिर्फ 17 साल की थी उनकी शादी कर दी गयी।
साल 2008 में रूमा ने बेटे को जन्म दिया, बच्चा बीमार हुआ पैसे की तंगी की वजह से बच्चे का इलाज न हो सका और बच्चे की मौत हो गयी।
बच्चे की मौत के बाद रूमा ने तय कर लिया था की वो काम करेंगी, दादी ने उनको कशीदाकारी सिखाई थी जो उनके काम आया।
रूमा एक एनजीओ दीप देवल से जुड़ गई, यहां उनकी कशीदाकारी से लोग इतने ज़्यादा इंप्रेस हुए की साल 2010 में उन्हें एनजीओ का अध्यक्ष बना दिया गया।
रूमा का हौसला बढ़ गया, उन्होंने एनजीओ से ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जोड़ने की कोशिश किया. आज 75 गांव की कम से कम 30000 महिलाएं एनजीओ से जुड़ चुकी हैं।
एनजीओ द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प के उत्पाद को रूमा ने एग्जीबिशन में लगाना शुरू किया, जहां से उनके उत्पाद को प्रसिद्धि मिलना शुरू हो गई।
2015 में रूमा को राजस्थान हेरिटेज वीक मे जाने का मौका मिला,उनके बनाए कपड़े पहनकर इंटरनेशनल फैशन डिजाइनर अब्राहम एंड ठाकुरज के मॉडल्स ने रैम्प वाक किया, रूमा भी रैंप वॉक पर उतरी।
रूमा के संघर्ष को देखकर हावर्ड यूनिवर्सिटी में उन्हें बोलने के लिए बुलाया गया। रूमा ने वहां स्पीच दिया साल 2018 में उन्हें राष्ट्रपति ने नारी शक्ति अवार्ड से सम्मानित किया।