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कलबुर्गी, कर्नाटक के रहने वाले दत्तू अग्रवाल 3 साल की उम्र में ही एक भयानक बीमारी की चपेट में आकर ब्लाइंडनेस के शिकार हो गए थे।
दत्तू अग्रवाल को पैरेंट्स ने कई अस्पतालों में दिखाया। पर हर जगह से डॉक्टर्स ने उन्हें जवाब दे दिया। कोई फायदा नहीं हुआ।
दत्तू अग्रवाल की अब ब्लाइंडनेस की दुनिया में भटकना नियति बन गई थी। पर वह परिस्थितियों के आगे झुके नहीं।
दत्तू अग्रवाल ने नेत्रहीन लड़कों के स्कूल से हॉयर सेकेंडरी तक पढ़ाई की और फिर ग्रेजुएशन करने कॉलेज गए
दत्तू अग्रवाल ने गुलबर्गा यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
दत्तू अग्रवाल को पता था कि हम शिक्षा के जरिए ही जीवन में कुछ हासिल कर सकते हैं।
दत्तू अग्रवाल साल 1985 में एक गवर्नमेंट कॉलेज में लेक्चरर के पद पर नियुक्त हुए।
दत्तू अग्रवाल ने जूनियर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के लेक्चरर के रूप में 32 साल तक नौकरी की।
दत्तू अग्रवाल की मां ने ही उन्हें पढ़ा लिखाकर पैरों पर खड़ा किया था। उनकी सोशल वर्क में भी रूचि थी।
दत्तू अग्रवाल सोचते थे कि नेत्रहीन लड़के तो किसी तरह पढ़ लेते हैं पर नेत्रहीन लड़कियों का सशक्तिकरण कैसे किया जाए?
मां से इंस्पायर होकर दत्तू अग्रवाल ने नेत्रहीन लड़कियों के लिए कलबुर्गी शहर में 2007 में माथोश्री अंबुबाई रेजिडेंशियल आवासीय विद्यालय की नींव रखी।
दत्तू अग्रवाल के रेजिडेंशियल विद्यालय में 6-18 आयु वर्ग की नेत्रहीन लड़कियों को मुफ्त शिक्षा, प्रशिक्षण के साथ-साथ छात्रावास की सुविधा भी दी जाती है।
दत्तू अग्रवाल के रेजिडेंशियल स्कूल में 75 से अधिक लड़कियां एजूकेशन ले रही हैं।