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करीब 62 साल पहले मार्च 1959 में दक्षिणी मुंबई की 7 महिलाओं ने परिवार के खर्च में हाथ बंटाने के लिए बिजनेस शुरु किया।
महिलाओं में कुकिंग का गुण था तो पापड़ बनाना शुरु कर दिया। यह काम इज्जत देने वाला साबित हुआ।
जसवंती जमनादास पोपट और अन्य महिलाओं के सामने दिक्कत पैसे की आई तो सोशल वर्कर छगनलाल पारेख ने 80 रुपये उधार दिए।
पापड़ का नाम लिज्जत रखा, क्योंकि गुजराती भाषा में इसका मतलब स्वादिष्ट होता है और शुरुआती दिनों में गुजराती महिलाएं ही काम कर रही थीं।
महिलाओं ने शुरुआत में पापड़ के चार पैकेट बेचें, उनका स्वाद इतना अच्छा लगा कि डिमांड आने लगी।
यह बिजनेस धीरे धीरे कोऑपरेटिव सिस्टम में तब्दील हो गया। 18 साल से ज्यादा उम्र की महिलाएं जुड़ीं।
आज लिज्जत पापड़ के कोऑपरेटिव सिस्टम में 45 हजार से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं। जिन्हें लिज्जत सिस्टर्स के नाम से जाना जाता है।
साल 1962 में संस्था ‘श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़’ के नाम से रजिस्टर्ड हो गई।
रिपोर्ट्स के अनुसार, मौजूदा समय में लिज्जत पापड़ का टर्नओवर 1600 करोड़ है और 25 देशों में निर्यात किया जाता है।