अघोरी नाम सुनते ही मन में एक ऐसी तस्वीर सामने आती है, जिससे सोच कर ही डर लग जाता है। लंबे-लंबे बाल, जटाएं और शरीर में राख लिपटा होता है। जो गले में मुंड की माला धारण करते हो।
अघोरी श्मशान में जाकर तंत्र-मंत्र की सिद्धियां करते रहते हैं। इनका स्वरूप डरावना होता है। लेकिन शमशान जैसी जगहों पर सहजता से रहते हैं और तंत्र क्रियाएं सीखते हैं
श्वेताश्वतरोपनिषद में भगवान शिव को अघोरनाथ कहा गया है। भगवान शिव को अघोर पंत का प्रणेता माना गया है।अघोरी शिवजी के इस रूप की उपासना करते हैं। बाबा भैरवनाथ अघोरियों के अराध्य हैं।
शिवजी के अवतार अवधूत भगवान दत्तात्रेय को अघोरशास्त्र का गुरु माना गया है।अघोर संप्रदाय शिव जी केअनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव जी संपूर्ण हैं और समस्त रूपों में विद्यमान हैं।
अघोरियों ने खुद इस बात को माना है कि वे शमशान में अधजले शवों को निकालकर उसका मांस खाते हैं। इसके पीछे माना जाता है कि ऐसा करना अघोरियों की तंत्र क्रिया की शक्ति को प्रबल बनाता है।
अघोरी शिव और शव साधना साधना करते हैं। साधना में शव के मांस और मदिरा का भोग लगाते हैं। एक पैर पर खड़े होकर शिव जी की साधना करते हैं और शमशान में बैठकर हवन करते हैं।
अघोरी शव के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं और शिव की उपासना का तरीका मानते हैं। उनका मानना है शव के साथ शारीरिक क्रिया के दौरान मन भक्ति में लगा रहे तो यह साधना का सबसे ऊंचा स्तर है।
अघोरी इंसानी खोपड़ी रखते हैं। इसका प्रयोग वे भोजन पात्र के रूप में करते हैं। मान्यता है कि एक बार शिवजी ने ब्रह्मा का सिर काट दिया था और सिर लेकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए थे।
अघोरी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते हैं।शव ही नहीं जीवितों के साथ भी अघोरी संबंध बनाते हैं। इतना ही नहीं जब महिला का मासिक चल रहा होता है, तब ये खासतौर से शारीरिक संबंध बनाते हैं।
शरीर पर राख लपेटकर और ढोल नगाड़ों के बीच अघोरी शारीरिक संबंध बनाते हैं। इस क्रिया को साधना का अंग मानते हैं और माना जाता है इससे अघोरियों की शक्ति बढ़ती है।