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भारतीय PM और नागरिकों पर मालदीव के मंत्रियों की विवादित टिप्पणी ने दोनों देशों के रिश्तों को और खराब कर दिया है बात इतनी बिगड़ गई कि भारत में मालदीव बॉयकॉट का ट्रेंड चल गया है।
कॉविड-19 हो, सैन्य सुरक्षा या फिर सुनामी भारत ने दोस्त की तरह मालदीव की मदद की है लेकिन मालदीव ने हमेशा भारत की इस दोस्ती का फायदा उठाते हुए उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है।
वक्त ऐसा था जब मालदीव में तख्तापलट हुआ। दुनिया के देशों ने मदद करने के लिए मना कर दिया था मंत्री बंधक बना लिए गए थे राष्ट्रपति सेफ हाउस में थे उस वक्त भारत ने मालदीव की मदद की थी।
1965 को आजाद हुआ मालदीव में1968 में इब्राहिम नासिर पहले राष्ट्रपति चुने गए। इसके बाद 1975 में दोबारा चुनाव हुए और अर्थव्यवस्था पर गंभीर संकट खड़ा हो गया।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि देश में हालात इतने खराब हो गए थे कि वहां के राष्ट्रपति 1978 में मिलियन डॉलर्स लेकर सिंगापुर भाग निकले इसके बाद मोमून अब्दुल गयूम को नया राष्ट्रपति बनाया गया।
मोमून अब्दुल गयूम ने मालदीव को आर्थिक संकट से निकलने में अहम नीतियां अपनाई। यही वजह रहे कि वह 1978 से 2008 तक मालदीप के राष्ट्रपति रहे
मालदीव धीरे-धीरे फल फूल रहा था लेकिन गयूम की नीतियों से कुछ लोग खुश नहीं थे 1988 में यहां पर बड़ा विद्रोह हुआ जब तत्कालीन राष्ट्रपति भारत की यात्रा पर आने वाले थे।
मालदीव के कारोबारी अब्दुल्ला लूथूकी उसके साथी अ हम स्माइल ने श्रीलंका के चरमपंथी संगठन प्लोट की मदद से राजधानी माले पर कब्जा कर लिया था।
लड़ाकों ने मालदीव के कई मंत्रियों को अगवा कर लिया था इसके बाद मालदीव भारत से मदद मांगी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पड़ोसी देश की मदद के लिए ऑपरेशन कैक्टस शुरू किया था।
6 पैरा के 150 कमांडो से भरे विमान रवाना किए गए। भारतीय जवानों ने शौर्य का परिचय देते हुए मालदीव की सरकार गिराने वाले विद्रोह को नाकाम कर उन्हें सरेंडर पर मजबूर कर दिया था।