Pride of India
विवेकानंद रॉक मेमोरियल कन्याकुमारी के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी होगी की वर्ष 1892 में विवेकानंद बनने से पहले नरेंद्र दत्त ने इस शिला पर 3 दिन और 3 रात का ध्यान लगाया था।
दिसंबर 1892 में जब स्वामी विवेकानंद 4 साल के भारत भ्रमण के बाद कन्याकुमारी पहुंचे तो उन्हें ये पता चला कि समुद्र तट स्थित में पानी में एक शिला है, जिसका आध्यात्मिक महत्व है।
उन्हें बताया गया कि इस शिला पर देवी कन्या कुमारी ने भगवान शिव के लिए तपस्या की थी तो उन्होंने निश्चय कर लिया कि वो भी देवी 'कन्याकुमारी का स्मरण वहीं ध्यान लगाएंगे।
इस शिला पर पहुंचने से पहले स्वामी विवेकानंद, स्वामी विवेकानंद नहीं थे। वो नरेंद्रनाथ दत्त थे, जिनका जन्म कलकत्ता में हुआ था, कन्याकुमारी पहुंचकर उन्होंने कड़ी तपस्या की।
इस ध्यान से जो ज्ञान मिला, उसी ने उन्हें विवेकानंद बनाया। 1893 में शिकागो विश्व धर्मसंसद में उन्होंने जो ज्ञान दिया, उसने भारत व हिन्दूधर्म के प्रति दुनिया का नजरिया बदल दिया।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मुझे गर्व है, मैं उस हिन्दू धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता-सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया।
उन्होंने कहा था कि आराधना के रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन लक्ष्य सिर्फ ईश्वर को पाना ही होता है। उनके इस भाषण के बाद शिकागो की धर्म संसद में 2 मिनट तक तालियां बजती रही थीं।
बड़ी बात ये है कि इस भाषण की प्रेरणा और ज्ञान उसी ध्यान से निकला था, जो उन्होंने कन्याकुमारी में किया था। स्वामी विवेकानंद जी ने 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को यहां तप किया था।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी यहां 2 घंटे तक ध्यान लगाया था। मान्यताओं के मुताबिक इसका एक और बड़ा महत्व ये है कि इस शिला के कण-कण में शिव- पार्वती की शक्ति बसी है।