कर्म और धर्म में क्या अंतर? प्रेमानंद महाराज ने बताया
utility-news Nov 13 2024
Author: Rajkumar Upadhyaya Image Credits:Facebook
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कर्म वही जो धर्म से युक्त हो
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि कर्म वही जो धर्म से युक्त हो। यदि वह धर्म से युक्त न हो तो वह कुकर्म है। वह कर्म नहीं कहा जा सकता।
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मंदिर जाना, पूजा करना भी धर्म का एक अंग
वह कहते हैं कि आरती कर देना, मंदिर जाना, पूजा पाठ करना। यह भी उसका एक अंग है।
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जीवन के सभी आचरण धर्मयुक्त होने चाहिए
उन्होंने कहा कि आपका उठने से लेकर सोने तक, जीवन से लेकर मरण तक, आपके जितने आचरण हैं। वह सब धर्मयुक्त होने चाहिए। धर्म का मतलब पूरा जीवन है।
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शरण में आदमी को बचाना चाहिए
उनका कहना है कि एक आदमी आपके पास दौड़कर आता है और कहता है कि हमें बचा लीजिए। वह आपके शरण में आ गया।
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यदि उसे मारने वाले को सौंप दिया तो यह हत्या हो गई
वह कहते हैं कि यदि हम उस शख्स को बचाने की जितनी कैपेसिटी रखते हैं। उतनी कोशिश करते हैं तो धर्म है पर यदि हंस कर उसी के हाथ में दे दिया, जो मारने आ रहा है तो यह हत्या हो गई।
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दूसरों की रक्षा को बॉडी को कष्ट तो भगवान की प्राप्ति
उन्होंने कहा कि दूसरे की रक्षा के लिए यदि हमारे शरीर को भी कष्ट हो जाता है तो सीधे भगवान की प्राप्ति हो जाती है।