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प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि कर्म फल ही जीव को जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसाता है। मानव जीवन परम सुख प्राप्ति के लिए मिला है। कर्म से हम किसी न किसी तुच्छ फल की कामना करते हैं।
वह कहते हैं कि कर्म फल से हम भगवत प्राप्ति तो नहीं चाहते हैं। काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ पर विजय प्राप्त करना नहीं चाहते।
वह कहते हैं कि बहुत पढे लिखे लोग घूम रहे हैं, नौकरी नही मिलती है। किसान बहुत मेहनत करता है पर फसल चौपट हो जाती है। कर्म फल की वजह से बहुत सी समस्याए हैं।
प्रेमानंद जी कहते हैं कि भगवान ने कहा कि 'कर्मण्येवाधिकारिस्ते मां फलेषु कदाचन' यानी तुम कर्म करने पर अधिकार रखो। फल पर नहीं। फल पर अधिकार रखोगे तो जन्म-मृत्यु चक्र में फंस जाओगे।
सुख की आशा में पाप कर्म हो जाते हैं। धर्म पूर्वक कमाने में जल्दी सुख नहीं मिलता। इसलिए हिंसा, चोरी को तैयार हो जाते हैं। यह कर्म ही तो हैं। फल आकांक्षा में बहुत दोष है।
उन्होंने कहा कि सब कर्म करते हुए हम कर्म बंधन से नहीं बंधेगे, यदि हम सब कर्म भगवान को समर्पित कर दें, लेकिन वह धर्म पूवर्क कर्म हो। पाप कर्म भगवान को समर्पित नहीं किए जाते।