पहले मंदिर में जाते थे। तब बहुत आनंद आता था कि कब दर्शन कर लिया पता ही नहीं चलता था। अब भी मंदिर जाता हूॅं। पर वह भाव नहीं आता। न ही प्रेम और न ही आनंद का।
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प्रेमानंद महाराज का जवाब
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि इसके दो कारण हो सकते हैं कि यदि कोई संत वैष्णव अपराध बन गया तो यह बात हो सकती है।
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निंदा या अवहेलना नहीं
वह कहते हैं कि अगर कहीं ऐसी बात है कि किसी का दोष दर्शन, निंदा या अवहेलना की है।
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इत्र की दुकान का उदाहरण
उन्होंने दूसरा कारण बताते हुए कहा कि जैसे यदि हम किसी इत्र की दुकान में पहली बार जाते हैं तो खुशबू आती है यदि वहीं ज्यादा समय देने लगते हैं तो इत्र की खुशबू आनी बंद हो जाती है।
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पॉवरफुल खुशबू की जरूरत
वह कहते हैं कि अब उससे पावरफुल और खुशबू आए तो समझ में आएगा। या तो भजन में कोई अपराध बन गया कि आनंद सूक्ष्म रूप में परिवर्तित हो गया।
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खुराक बढ़ गई तो उसका लें आनंद
वह कहते हैं कि कभी चार माला में आनंद आने लगता है और एक समय आता है कि चार माला में बहुत आनंद नहीं आता। अब 40 माला की जरूरत है। अब खुराक बढ़ गई है तो उसका आंनद लें।