नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं। पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर नीतीश कुमार नाराज दिखें। क्योंकि पूर्ण बहुमत का जनादेश पाकर बीजेपी ने जेडीयू के मात्र एक ही सांसद को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए हामी भरी थी। इस बात को लेकर नीतीश बेहद नाराज हुए लेकिन उन्होंने सार्वजनिक रुप से अपनी नाराजगी जाहिर करने से परहेज किया। नीतीश ने बयान दिया था कि वह एनडीए का हिस्सा बने रहेंगे, केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह ना मिलने को लेकर उनके मन में कोई मालिन्य नहीं है। 
लेकिन यहां फिर से ‘पेट में दांत’ वाली कहावत सामने आ जाती है। हमेशा की तरह नीतीश कुमार की कथनी और करनी में एक बार फिर से फर्क दिखाई दे रहा है। वह एनडीए में बने रहकर उससे पीछा छुड़ाने के रास्ते तलाश रहे हैं। देखिए पांच अहम सबूत कि कैसे नीतीश बीजेपी के पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। 
  
1.    नीतीश के विश्वासी और जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर बनाएंगे बीजेपी विरोधी ममता के लिए रणनीति

आज की तारीख में बीजेपी की सबसे बड़ी विरोधी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। दोनों की राजनीतिक दुश्मनी इतने आगे तक पहुंच गई है कि इसमें कई लोगों की हत्या तक हो चुकी है। 
ममता खुलेआम पीएम नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को अपशब्द बोलती हैं और मारने पीटने की धमकी देती हैं।  लेकिन उन्हीं ममता बनर्जी के लिए अब नीतीश के विश्वस्त सहयोगी और उनकी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर चुनावी रणनीति तैयार करेंगे। 

क्या प्रशांत किशोर के लिए बिना नीतीश कुमार की मर्जी के ऐसा कदम उठाना  संभव है? 

खुद जेडीयू के प्रवक्ता अजय आलोक ने इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि ‘इस तरह की कोई भी बात बिना राष्ट्रीय अध्यक्ष की इजाजत के यह संभव नहीं है’। 

ऐसे में क्या माना जाए? नीतीश कुमार जिस एनडीए गठबंधन का हिस्सा होने की दुहाई देते हैं उसके सबसे बड़े दुश्मन टीएमसी को मजबूत बनाने के ले अपने अपने रणनीतिकार प्रशांत किशोर को भेज रहे हैं। 

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क्या यह नीतीश के ‘पेट में दांत’ होने का सबूत नहीं है?


2.    पड़ोसी राज्य झारखंड में बीजेपी को कमजोर करने की साजिश 

बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड में इसी साल यानी 2019 के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। वहां पर फिलहाल बीजेपी के सरकार है। जिसके पास राज्य विधानसभा की 81 में से 43 सीटें हैं। जबकि जेडीयू का वहां कोई अस्तित्व नहीं है। 

लेकिन हाल ही में झारखंड जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने जमशेदपुर में ऐलान किया कि वह झारखंड की सभी विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे और प्रदेश में अपनी पार्टी की सरकार भी बनाएगी। 

यहां पर सोचने वाली बात यह है कि जिस पार्टी के पास झारखंड में एक भी विधानसभा सीट नहीं है वह सारी सीटों पर लड़कर सरकार बनाने का दावा कर रही है। 

दरअसल ऐसा करके जेडीयू ने बीजेपी के साथ अंदरुनी दुश्मनी का सबूत दिया है। क्योंकि अगर जेडीयू झारखंड की सभी सीटों पर चुनाव लड़ती है तो इससे बीजेपी के ही वोट बंटेंगे। जिससे वह यहां कमजोर पड़ जाएगी। 

झारखंड में बीजेपी को कमजोर करने की नीतीश की साजिश पूरी खबर पढ़िए यहां  

तो क्या यह माना जाए कि नीतीश बीजेपी के साथ बने रहकर उसे कमजोर करने की रणनीति में जुटे हुए हैं। यह उनके ‘पेट में दांत’ होने का दूसरा बड़ा सबूत है। 

3.    बिहार के कैबिनेट विस्तार में बीजेपी को स्थान नहीं 

30 मई को केन्द्रीय मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह से लौटने के बाद नीतीश कुमार ने बिहार में अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। उन्होंने जेडीयू के 8 विधायकों को मंत्री बनाया।

इसमें मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी जेडीयू के 8 विधायकों को मंत्री बनाया। इनके नाम थे नरेंद्र नारायण यादव, श्याम रजक, अशोक चौधरी, बीमा भारती, संजय झा, रामसेवक सिंह, नीरज कुमार और लक्ष्मेश्वर राय।

लेकिन खास बात रही कि इसमें से बीजेपी का कोई भी विधायक शामिल नहीं है। ना ही इसमें बिहार से एनडीए सहयोगी रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी का कोई विधायक शामिल था। 

243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में जेडीयू के पास 71 सीटें हैं, जबकि बीजेपी के पास 53 सीटें हैं। दोनों ही पार्टियां राज्य में मिलकर सरकार चला रही हैं। 

लेकिन नीतीश कुमार ने बीजेपी को अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी।  यह नीतीश कुमार और बीजेपी के खराब होते रिश्तों का एक बड़ा सबूत है। 

4.    एक दूसरे की इफ्तार पार्टी से बनाई दूरी 

ईद के मौके पर बीजेपी और जेडीयू दोनों ने अलग अलग इफ्तार पार्टी दी। लेकिन दोनों एक दूसरे की पार्टी में शामिल नहीं हुए। 2 जून यानी रविवार को दोनों ही पार्टियों के बड़े नेता एक साथ राजधानी पटना में मौजूद थे लेकिन उन्होंने एक दूसरे का चेहरा तक देखना पसंद नहीं किया। 

बीजेपी का कोई बड़ा नेता नीतीश की इफ्तार पार्टी में नहीं पहुंचा। उधर बीजेपी की इफ्तार पार्टी में कोई भी जेडीयू नेता नहीं पहुंचा।

यह बताता है कि नीतीश और बीजेपी के रिश्तों मे किस कदर तल्खी आ चुकी है। 

5.    बीजेपी विरोधी नेताओं से पींगे बढ़ा रहे हैं नीतीश 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है वह उनकी ताजा गतिविधियों को देखकर समझ में आ जाता है। इन दिनों बीजेपी विरोधी नेताओं से उनकी खूब बन रही है। 
इसकी पहली झलक दिखी इफ्तार पार्टी के ही दौरान। नीतीश की इफ्तार पार्टी में राजद नेता और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी तो दिखीं ही, ‘हम’ के मुखिया जीतनराम मांझी भी दिखे। 
इसके बाद 5 जून को राबड़ी देवी ने बकायदा नीतीश कुमार को फिर से राजद के साथ महागठबंधन में शामिल होने का न्योता भी दिया। 

राबड़ी ने दिया नीतीश को न्योता पूरी खबर यहां पढ़ें

राबड़ी देवी से पहले राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी नीतीश कुमार को अपने साथ आने का न्योता दिया है। 

रघुवंश भी नीतीश के सामने फेंक चुके हैं चारा 

बीजेपी विरोधी खेमें के साथ नीतीश कुमार के बढ़ते रिश्तों को देखते हुए उनकी आगे की रणनीति का अंदाजा लगाना कोई मुश्किल नहीं है। 

दरअसल नीतीश कुमार जिस तरह के बीजेपी के खिलाफ साजिशों का जाल बुन रहे हैं। उसपर नजर तो पूरे देश की है। जाहिर सी बात है बीजेपी के नेता भी नीतीश के मंसूबों से वाकिफ होंगे। लेकिन नीतीश कुमार अपनी बयानबाजियों में खुलकर ऐसा कोई संकेत नहीं दे रहे हैं जिससे यह स्पष्ट मतलब निकाला जाए कि वह बीजेपी के पीछा छुड़ाना चाहते हैं। 

राजनीति के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार के इसी अंदाज की वजह से शायद अनुभवी राजनेता और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि ‘नीतीश कुमार के पेट में दांत है’।