मैराथन धावक बनने के बारे उन्होंने कहा- इसके लिए मेरे दोस्तों और परिवार ने मेरा बहुत समर्थन किया। मेरी पहली मैराथन 5 किमी थी।
करियर डेस्क. कहते हैं जिनकी उम्मीदों में हौसला होता है वो कभी भी हार नहीं मानते हैं। हैदराबाद के रहने वाले प्रसन्ना कुमार (Prasanna Kumar) ने ऐसा ही कर दिखाया है। दरअसल, 2013 में एक दुखद दुर्घटना ( physical disability ) में अपना पैर खोने के बावजूद 28 वर्षीय प्रसन्ना कुमार ने हार नहीं मानी औऱ अपनी शारीरिक अक्षमता को बाधा नहीं बनने दिया। उन्होंने मैराथन (Marathon Runner ) में हिस्सा लेने के लिए खुद से लड़ाई लड़ी और सफलता भी हासिल की। प्रसन्ना कुमार अब मैराथन में सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा कर दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं।
न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, "मैंने 2013 में अपना पैर खो दिया था। मेरे साथ एक दुखद दुर्घटना हुई थी जिसमें बचने की केवल 80 प्रतिशत संभावना थी। उन्होंने कहा कि मेरा एक पैर कृत्रिम है। प्रसन्ना ने दुर्घटना के बाद के दिनों को याद करते हुए कहा कि यह बहुत कठिन था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह एक पेशेवर वेडिंग फोटोग्राफर और एक वीडियो एडिटर हैं।
परिवार और दोस्तों ने किया सपोर्ट
मैराथन धावक बनने के बारे उन्होंने कहा- इसके लिए मेरे दोस्तों और परिवार ने मेरा बहुत समर्थन किया। मेरी पहली मैराथन 5 किमी थी। दर्शकों और प्रतिभागियों द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया जा रहा था। मैं इतना खुश था कि मैंने इसे पूरा किया। उन्होंने बताया कि यह मैराथन एक घंटे में 5 किमी की थी। उन्होंने कहा कि इसके बाद मैंने 10 किमी की मैराथन का फैसला किया। मैं खुद को चुनौती देना चाहता था।
20 मिनट में पूरी की मैराथन
उन्होंने बताया कि मैंने ऑटोमोबाइल कंपनी द्वारा ब्लेड पर दौड़ना शुरू किया। मैंने 25 मिनट में 10 किमी मैराथन पूरी की। मैंने बहुत अभ्यास किया और आज में लोगों के लिए प्ररेणा बन गया। प्रसन्ना ने कहा कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौतीपूर्ण मैराथन 21 किलोमीटर बेंगलुरु में थी।