हाल ही में कृष्णा नागर (Krishna Nagar) ने टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics 2020) SH6 पुरुष एकल स्पर्धा में हांगकांग के चू मान काई को हराकर गोल्ड मेडल जीता है। आइए आज हम आपको बताते हैं इस एथलीट की सक्सेस स्टोरी के बारे में...
स्पोर्ट्स डेस्क : अंग्रेजी में एक कहावत है 'your actions speak louder than words' यानी 'करनी कथनी से ताकतवर होती है।' यह बात टोक्यो पैरालंपिक में गोल्ड जीतने वाले कृष्णा नागर (Krishna Nagar) पर बिल्कुल सूट करती है, क्योंकि जब उन्हें उनकी हाइट को लेकर ताने मारे जाते थे, तो उन्होंने उस वक्त कुछ नहीं कहा। लेकिन अपनी इसी कमजोरी को उन्होंने अपनी ताकत बनाया और आज पूरी दुनिया में उनके नाम का परचम लहराया जा रहा है। हाल ही में उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics 2020) SH6 पुरुष एकल स्पर्धा में हांगकांग के चू मान काई को हराकर गोल्ड मेडल जीता है। आइए आज हम आपको बताते हैं इस एथलीट की सक्सेस स्टोरी के बारे में...
कृष्णा नागर का जन्म 12 जनवरी 1999 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था। जब वह 2 साल के थे, तो उन्हें पता चला कि वह बौने हैं। दरअसल, उनकी हड्डी के विकास में कुछ समस्या थी, जिसके चलते उनकी ऊंचाई दूसरों की तरह नहीं बढ़ सकती है। वह आम लड़कों तुलना में काफी छोटे है और उनकी हाइट 4 फीट 2 इंच है।
हाइट कम होने की वजह से लोग कृष्णा को ताने देने लगे थे। स्कूल में बच्चे उनके बौनेपन को लेकर मजाक बनाया करते थे। जिसके कारण कृष्णा ने घर से बाहर निकलना भी बंद कर दिया था।
इस दौरान कृष्णा का परिवार उनकी ढ़ाल बनकर खड़ा रहा और उन्हें कभी भी किसी से कम महसूस नहीं होने दिया। वह लगातार उन्हें खेलने के लिए मोटिवेट करते रहे। ताकि वह खुद को सब बच्चों की तरह ही समझ सके।
लोगों के तानों के बारे में कृष्णा कहते हैं कि ऐसे लोग थे जिन्होंने कहा कि मैं जीवन में कुछ नहीं कर पाऊंगा। मैं भी इससे प्रभावित था और मैंने अपनी लंबाई बढ़ाने के लिए तरह-तरह की एक्सरसाइज की और तरह-तरह के खेल खेले, लेकिन वास्तव में कुछ भी मदद नहीं मिली।
बचपन में कृष्णा क्रिकेटर बनना चाहते थे। लेकिन लंबाई कम होने की वजह से बैटिंग के दौरान हर बॉल बाउंस होकर उनके सिर के ऊपर से निकल जाती थी। इसके बाद कृष्णा ने क्रिकेट छोड़ वॉलीबॉल खेलना शुरू किया। इसमें वे काफी अच्छे डिफेंडर बन गए, लेकिन लंबाई की वजह से उसने वॉलीबॉल भी छोड़ना पड़ा।
2017 में जयपुर के एक स्टेडियम में उन्होंने अपने पिता के कहने पर बैडमिंटन खेलना शुरू किया। और तभी उन्हें पैरा-बैडमिंटन के बारे में पता चला। इसके बाद उन्होंने इसी फील्ड में करियर बनने का फैसला किया और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उनकी प्रैक्टिस मिस ना हो, इसके लिए उनके पिता सुनील नागर हर दिन सुबह कृष्णा को बाइक से 13 किलोमीटर दूर स्टेडियम छोड़ते थे। जहां वह दिनभर प्रैक्टिस करते और शाम होने के बाद बस में बैठ से घर आते थे।
3 साल की इसी मेहनत का फल उन्हें टोक्यो पैरालंपिक में मिला और उन्होंने SH6 फाइनल में हांगकांग के चु मान केइ को 21-17, 16-21, 21-17 से हरा कर भारत को टोक्यो पैरालंपिक का चौथा गोल्ड मेडल जितवाया है।
इससे पहले कृष्णा 2018 में इंडोनेशिया के पैरा एशियन खेलो में कांस्य पदक और 2019 में स्विजरलैंड के बासेल में वर्ल्ड पैरालंपिर बैडमिंटन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल भी जीत चुके हैं।