नाग पंचमी के दूसरे दिन लखनऊ के अहिमामऊ में महिलाओं का दंगल होता है जिसे हापा कहते हैं। हापा की यह परंपरा 200 साल पुरानी है। यहां महिलाएं ही प्रतिभागी होती है और महिलाएं ही दर्शक। पुरुषों का इस दंगल में प्रवेश वर्जित है। पितृसत्ता को पटखनी देने के लिए इस रस्म की शुरुआत हुई थी जिसे आज तक गांव की महिलाएं निभा रही हैं।
लखनऊ.दंगल का नाम सुनते ही आपके मन में सबसे पहले पुरुषों की तस्वीर सामने आती होगी। तेल मालिश करके अखाड़े में उतरते पुरुष एक दूसरे को पटखनी देते ऐसा ही सोचते हैं ना आप, तो चलिए हम आपको एक ऐसे दंगल में ले चलते हैं जहां महिलाएं कुश्ती लड़ती हैं वह भी पारंपरिक वेशभूषा साड़ी में।
200 साल पुरानी प्रथा है
लखनऊ के अहिमामऊ में नाग पंचमी के दूसरे दिन महिलाओं का दंगल होता है। इस दंगल की प्रथा 200 साल से ज्यादा पुरानी है जिसमें गांव की महिलाएं भाग लेती हैं इसमें 80 साल की बुजुर्ग भी भाग लेती हैं और 20 साल की लड़की भी। इसी गांव की 97 साल की बुजुर्ग आरती माय नेशन हिंदी से बताते हुए कहती हैं नवाबों के जमाने में बेगमें हमारे गांव में आकर आराम करती थी। उस जमाने में कव्वाली नाच गाना और बेतबाज़ी हुआ करती थी। धीरे-धीरे पुरानी रवायत खत्म हो गई कुश्ती जंगल की रसम शुरू हो गई।
पुरुषों का दंगल में प्रवेश वर्जित है
वीना ने बताया इस पूरे आयोजन की सर्वे सर्वा सिर्फ महिलाएं होती हैं इस दंगल को हापा भी कहते हैं। दंगल शुरू होने से पहले देवी पूजन के साथ सुहाग कजरी और भक्ति रस में डूबे लोकगीत गाए जाते हैं। ढोलक की थाप के बीच कुश्ती पर इनाम रखा जाता है। प्रतिभागी भी महिलाएं होती हैं और दर्शक भी महिलाएं होती हैं। पुरुषों का इस दंगल में आना सख्त मना होता है। दंगल में खास बात यह होती है कि हारने और जीतने वाले दोनों प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाता है।
पुरुषों को देख महिलाएं बन जाती है पुलिस
रामकली रहती हैं कि हापा महिलाओं का दंगल है इसलिए यहां पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित है। ना तो 10 साल का लड़का आ सकता है ना हीं 50 साल का अधेड़। हालांकि यह दंगल देखने के लिए पुरुष दीवारों से छुपे चिपके रहते हैं। कोई पेड़ पर चढ़कर चुपके से देखा है तो कोई दीवारों की आड़ से जैसे ही महिलाओं की नजर इन पुरुषों पर पड़ती है फौरन किसी पुलिस कर्मी की तरह इन पुरुषों को महिलाएं खदेड़ने का काम करती हैं।
पितृसत्ता को समाप्त करने के लिए पैदा हुई यह रस्म
राधा कहती हैं आज लोग महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं यह दंगल पितृसत्ता से दबी कुछ भी महिलाओं की स्थिति सुधारने के उद्देश्य से शुरू हुआ था। सबसे अहम बात कि इस दंगल में गांव की महिलाएं ही शिरकत करती हैं जो कम पढ़ी-लिखी होती हैं लेकिन तजुर्बेकार होती हैं। अपने अधिकारों को लेकर सजग होती हैं। इस दंगल के कारण ही गांव में पुरुषों का वर्चस्व टूट रहा है हमारे गांव में महिलाओं पर हुकूमत नहीं चलती।
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