मनरेगा मजदूर से एशियन गेम्स मेडलिस्ट तक...पिता लेबर खुद भी मजदूरी-वेटर बनें: ये है राम बाबू की सक्‍सेस स्‍टोरी

By Rajkumar UpadhyayaFirst Published Oct 6, 2023, 10:01 AM IST
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एशियन गेम्स 2023 में यूपी के सोनभद्र के रहने वाले रामबाबू ने 35 किमी पैदल चाल की मिश्रित टीम स्पर्धा में मंजू रानी के साथ कांस्य पदक जीता है। कोविड महामारी के दौरान रामबाबू ने मनरेगा में मजदूरी की। हालात कैसे भी हों, राम बाबू ने कभी उनके आगे घुटने नहीं टेके। हमेशा उनकी नजरें अपने लक्ष्य पर टिकी रहीं।

सोनभद्र। एशियन गेम्स 2023 में यूपी के सोनभद्र के रहने वाले रामबाबू ने 35 किमी पैदल चाल की मिश्रित टीम स्पर्धा में मंजू रानी के साथ कांस्य पदक जीता है। कोविड महामारी के दौरान रामबाबू ने मनरेगा में मजदूरी की। लॉकडाउन के कठिन समय में तालाब खोदने का काम किया। वाराणसी के एक होटल में वेटर, कुरियर पैकेजिंग कंम्पनी में 4 महीने बोरे सिलने का काम भी किया। हालात कैसे भी हों, राम बाबू ने कभी उनके आगे घुटने नहीं टेके। हमेशा उनकी नजरें अपने लक्ष्य पर टिकी रहीं। राष्ट्रीय खेलों में 35 किमी की पुरुष 'रेस वॉक' में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ कर गोल्ड मेडल जीता। फिर पुणे में कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग शुरु हुई और अब एशियन गेम्स 2023 में भारत का परचम लहराया है। आइए डिटेल में जानते हैं, जमीन से उठकर शिखर तक पहुंचने वाले भारतीय युवा (एशियन गेम्स मेडलिस्ट) राम बाबू की इंस्पिरेशन स्टोरी।

2012 में लंदन ओलम्पिक देखकर धावक बनने का निर्णय

उत्‍तर प्रदेश के सोनभ्रद जिला स्थित बहुअरा के भैरवागांधी गांव के रहने वाले रामबाबू के पिता छोटेलाल मजदूर किसान हैं। खपरैल का कच्चा मकान है, जिसमें परिवार रहता है। प्राथमिक विद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा हुई। फिर रामबाबू का चयन नवोदय विद्यालय में हुआ। बचपन से ही खेलों में इतनी दिलचस्पी थी कि साल 2012 में लंदन ओलंपिक देखा तो धावक बनने का फैसला किया। गांव में संसाधनों का अभाव था तो पगडंडी पर ही दौड़ लगाना शुरु कर दिया। फिर प्रैक्टिस के लिए वाराणसी गए। 

 

राम बाबू कोरोना में मनरेगा मजदूर बनें, भोपाल में ली ट्रेनिंग

वाराणसी में प्रैक्टिस के दौरान खुराक के लिए जरुरी पैसे तक नहीं थे। राम बाबू ने एक स्थानीय होटल में वेटर की नौकरी शुरु की। उसी दरम्यान कोरोना महामारी की वजह से होटल बंद हो गया तो घर लौटें। गांव पहुंचे तो परिवार का पेट पालने के लिए मनरेगा के तहत तालाब की खुदाई में जुट गएं। कोरोना महामारी के बाद स्थितियां सामान्य हुईं तो राम बाबू ने भोपाल का रूख किया। पूर्व ओलंपियन बसंत बहादुर राणा से ट्रेनिंग लेनी शुरु की और 35 किमी पैदल चाल की राष्ट्रीय ओपन चैंपियनशिप में शामिल हुएं। उसमें स्वर्ण पदक हासिल किया और राष्ट्रीय कैंप में जगह बनाई। 

राम बाबू ने बनाया नया नेशनल रिकॉर्ड, खुद का रिकॉर्ड भी तोड़ा

राम बाबू पिछले वर्ष गुजरात में हुए राष्ट्रीय खेलों की पैदल चाल स्पर्धा से चर्चा में आए। उन्होंने 35 किमी की दूरी को महज 2 घंटे 36 मिनट 34 सेकेंड में पूरी कर नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया और स्वर्ण पदक हासिल किया। यह राष्ट्रीय रिकॉर्ड राम बाबू ने हरियाणा के मोहम्मद जुनैद को हराकर कायम किया था। आपको बता दें कि इससे पहले मोहम्मद जुनैद के नाम ही यह रिकॉर्ड दर्ज था। जिसे राम बाबू ने तोड़ा और 15 फरवरी को रांची में आयोजित राष्ट्रीय पैदल चाल चैंपियनशिप में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। महज 2 घंटे 31 मिनट 36 सेकेंड का समय लेकर एक नया रिकॉर्ड बनाया। स्लोवाकिया में 25 मार्च को अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में शामिल हुए और 35 किमी की दूरी 2 घंटे 29 मिनट 56 सेकेंड में तय की।

 

​पिता खेती मजदूरी, मां ने खोवा बनाकर बेचा, राम बाबू को भेजते रहें पैसे

राम बाबू की सफलता के पीछे उनके परिवार का बड़ा सपोर्ट रहा। पिता छोटेलाल खेती मजदूरी करके बेटे को पैसे भेजते रहें ताकि बेटा अपना सपना पूरा कर सके। माता मीना देवी भी गांव के आसपास पशु पालने वालों से दूध इकट्ठा करती थीं और उनका खोवा बनाकर मधुपुर मंडी में बेचने का काम करती थी। माता-पिता ने दिन रात एक करके बेटे का सपना साकार करने में मदद की। राम बाबू की तीन बहनों में से दो की शादी हो चुकी है। छोटी बहन सुमन प्रयागराज से इंजीनियरिंग कर रही है।

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