ऑटोमोबाइल कंपनियों को बर्बादी से कोई नहीं बचा सकता, जानिए 5 प्रमुख वजहें

By Anshuman Anand  |  First Published Sep 17, 2019, 12:59 PM IST

भारत में ऑटोमोबाइल कंपनियों ने जबरदस्त हंगामा मचा रखा है। आए दिन किसी न किसी बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी के अधिकारी का  बयान आता है कि हम बर्बाद हो रहे हैं, देश में आर्थिक मंदी आ चुकी है वगैरह वगैरह..। लेकिन सच यह है कि ऑटो इंडस्ट्री इसलिए तबाह हो रही है क्योंकि ऑटोमोबाइल कंपनियां अपनी पुरानी पड़ चुकी तकनीक में बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं।  इसलिए उनका बर्बाद होना तय है। उनकी जगह लेने के लिए इलेक्ट्रोनिक वाहन तैयार खड़े हैं। आने वाले तीन से चार सालों में बदलाव की यह प्रक्रिया साफ दिखने लगेगी। आने वाले समय में हो सकता है कि आपको एक मोटरसायकिल या स्कूटर की कीमत में इलेक्ट्रोनिक कार मिल जाए। जिसकी जिंदगी वर्तमान गाड़ियों से बहुत ज्यादा हो और उसे चलाने के लिए आपको मेहनत भी नहीं करनी पड़े। ऐसे में कोई भी क्यों पुरानी तकनीक वाली भारी भरकम पेट्रोल और डीजल गाड़ियां खरीदना चाहेगा-
 

नई दिल्ली: ऑटो सेक्टर में हाहाकार मचा हुआ है। देश भर की ऑटो फैक्ट्रियों में लगातार छंटनी हो रही है। जिसकी वजह से सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। ऑटो सेक्टर के दिग्गजों ने इस सेक्टर में आई मंदी को आर्थिक मंदी का नतीजा करार दिया है। लेकिन यह उनका दुष्प्रचार मात्र है। ऑटो सेक्टर की बदहाली का कारण यह है कि वह बदलाव के लिए तैयार नहीं है, जिसका खमियाजा उसे भुगतना पड़ रहा है। 

1.खुद को अपग्रेड करने के लिए तैयार नहीं हैं ऑटोमोबाइल कंपनियां

तकनीक में बदलाव का असर ऑटो इंडस्ट्री पर भी दिखने लगा है। जिस उबर कंपनी की स्थापना ही 2009 में हुई। वह इन दस सालों यानी साल 2019 तक पूरी दुनिया के टैक्सी कारोबार पर कब्जा जमा चुकी है। क्योंकि मोबाइल ऐप के जरिए टैक्सी बुक कराना ग्राहकों के लिए बेहद सुविधाजनक है। आज दुनिया भर में सभी कंपनियों की जितनी टैक्सी बुकिंग होती है, उससे ज़्यादा अकेली ऊबर की होती है । 

इलेक्ट्रोनिक वाहन, ड्राईवरविहीन कारें और ओला-ऊबर जैसे सॉफ्टवेयर आधारित तकनीक अगले पांच सालों में ऑटोमोबाइल क्षेत्र की तकनीक को बदल देंगे। जो पुरानी और प्रतिष्ठित ऑटोमोबाइल कंपनियां इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर रही हैं उनका नष्ट होना तय है। ऑटो इंडस्ट्री में जो हंगामा फिलहाल दिखाई दे रहा है। वह इसी बदलाव की आहट है। 

2. पूरी तैयारी में जुटी है इलेक्ट्रोनिक कंपनियां
आज दुनिया की 12 बड़ी फैक्ट्रियां लिथियम आयन बैटरियां बनाने में जुटी हुई हैं। सिंगापुर का पूरा ट्रांसपोर्ट कारोबार ड्राईवर विहीन हो चुका है।  हालांकि अभी यह तकनीक महंगी है। लेकिन जैसे ही इस बडे़ स्तर पर उत्पादन शुरु होगा, यह बेहद सस्ती हो जाएगी। एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक पूरी दुनिया के कार बाजार पर चालक विहीन इलेक्ट्रोनिक वाहनों का कब्जा हो जाएगा। 

सरकार को मजबूरी में वर्तमान कारों को प्रतिबंधित करना होगा, क्योंकि इनसे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाएगा। यह भी संभव है कि 2030 तक प्राईवेट गाड़ियां ना के बराबर रह जाएं। सड़क पर सिर्फ टेस्ला, ऊबर, गूगल जैसी कंपनियों की ही चालक विहीन कारें दिखाई दें। जो आपके एक इशारे पर आपको सुरक्षित आपके गंतव्य तक ले जाने में सक्षम होंगी। 

सड़कों पर 80 फीसदी ट्रैफिक खत्म हो जाएगा और पेट्रोल डीजल की खपत में भारी कमी आएगी। जिसकी वजह से पेट्रोलियम की जरुरत सिर्फ भारी उद्योगों को ही रह जाएगी। पेट्रोलियम  पदार्थों पर निर्भरता कम होने से वैश्विक राजनीति में भी बदलाव आएगा। 

3. बेहद सस्ते इलेक्ट्रोनिक वाहन लाने की तैयारी
बिजली से चलने वाली गाड़ी तेल से चलने वाली गाड़ी से 100 गुनी सस्ती होगी और उनका जीवन भी आज की कार से 100 गुणा ज़्यादा होगा। क्योंकि आने वाले समय में यानी आज से सिर्फ 5 या 10 साल बाद गाड़ी चलाना इतना सस्ता हो जाएगा कि वाहनों में सिर्फ टायर घिसेगा । बाकी सभी तरह खर्च तकरीबन शून्य ही होगा ।

टेस्ला और गूगल जिन इलेक्ट्रोनिक वाहनों पर काम कर रहे हैं उनके बिजली चलित इंजन की वारण्टी 15 लाख किलोमीटर तक होगी क्योंकि इंजन का कुछ बिगड़ेगा ही नही।
  डीज़ल पेट्रोल वाले  इंजन में जहां 2000 उपकरण होते हैं, वही इलेक्ट्रिक इंजन में सिर्फ 18 किस्म के उपकरण होते हैं । इसीलिए उसकी लाइफ बहुत ज़्यादा होती है ।

डीज़ल पेट्रोल से चलने वाले इंजन सिर्फ 16 से 20% उर्जा का उपयोग करते हैं। जबकि इलेक्ट्रोनिक उर्जा वाले वाहन 95 फीसदी उर्जा का उपयोग करते हैं। यही वजह है कि डीजल पेट्रोल वाली गाड़ियां तकनीक की दौड़ में इलेक्ट्रोनिक वाहनों से हार कर बाजार से बाहर हो जाएंगे 

चालक विहीन गाड़ियों में छत पर एक उपकरण लगता है जिसे लाइडर(LIDAR) कहते हैं। इसे एक तरह से गाड़ी की आंख और दिमाग माना जाता है। साल 2012 में जिस लाइडर की कीमत 70 हजार डॉलर थी, आज उसकी कीमत मात्र 250 डॉलर है। जो कि साल 2020 तक मात्र 5 डॉलर का रह जाएगा। क्योंकि इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगेगा। 

आने वाले वक्त में इलेक्ट्रोनिक वाहनों की कीमत 1000 गुना तक सस्ती हो जाएगी। जो इलेक्ट्रोनिक कारें आज 6 से 7 लाख की मिल रही हैं। उनकी कीमतें बहुत ज्यादा कम हो जाएंगी। आने वाले समय में हो सकता है कि आपको एक मोटरसायकिल या स्कूटर की कीमत में इलेक्ट्रोनिक कार मिल जाए। जिसकी जिंदगी वर्तमान गाड़ियों से बहुत ज्यादा हो और उसे चलाने के लिए आपको मेहनत भी नहीं करनी पड़े। ऐसे में कोई भी क्यों पुरानी तकनीक वाली भारी भरकम पेट्रोल और डीजल गाड़ियां खरीदेगा। 

4. प्राकृतिक उर्जा पर बढ़ जाएगी दुनिया की निर्भरता
एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक पूरी दुनिया सौर उर्जा पर निर्भर हो जाएगी। पनबिजली, थर्मल और परमाणु बिजली बेहद महंगी होने के कारण बाजार से बाहर हो जाएगी। भारत जैसे देशों में सौर उर्जा के जबरदस्त उत्पादन की वजह से और लिथियम-आयन बैटरियों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के कारण सौर उर्जा 100 गुना तक सस्ती हो जाएगी। 

इसकी वजह से पेट्रोलियम पदार्थों पर दुनिया की निर्भरता खत्म हो जाएगी। इसकी वजह से तेल उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्था बदहाल हो जाएगी और वैश्विक राजनीति का स्वरुप बदल जाएगा। 

5.विशेषज्ञ लगा चुके हैं इस स्थिति का अनुमान 
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टोनी शेबा, जो प्रसिद्ध किताब 'क्लीन डिसरप्शन ऑफ एनर्जी एंड ट्रांसपोर्टेशन (Clean Disruption of Energy and Transportation)' के लेखक हैं, उन्होंने ऑटो इंडस्ट्री की तबाही की भविष्यवाणी काफी पहले से ही कर दी थी। 

प्रोफेसर शेबा बताते हैं कि सन् 1900 में न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर सिर्फ घोड़ागाड़ी दिखाई देती थी। लेकिन उन्हीं सड़कों पर अगले कुछ सालों यानी साल सन् 1913 में सिर्फ कारें दिखाई देने लगीं। यानी की सिर्फ 13 सालों में कारों ने घोड़ागाड़ी को बाजार से बाहर कर दिया। 

ऐसा नही था की सरकार ने घोड़ा गाड़ी का साथ नही दिया या फिर कार निर्माताओं के पक्ष में ही नीतियां बनाई। वजह यह थी कि  घोड़ागाड़ी तकनीक की लड़ाई हार गई। 

वह दूसरा उदाहरण देते हैं कि साल 2000 कोडक कंपनी के इतिहास का सबसे कामयाब साल था। इस साल उन्होंने रिकॉर्ड 1.4 बिलियन डॉलर मुनाफा कमाया। लेकिन सिर्फ 4 साल बाद यानी सन् 2004 में कोडक कंपनी दिवालिया हो गयी । 
क्योंकि अगले चार सालों में डिजिटल फोटोग्राफी की तकनीक ने कोडक को बाजार से बाहर कर दिया। 

इस प्रक्रिया को व्यापार और वाणिज्य की भाषा में डिसरप्शन(Disruption)कहते हैं। जिसमें उच्च श्रेणी की तकनीक निम्न श्रेणी की तकनीक को बाजार से बाहर कर देती है। 

आज का युग सूचना क्रांति का युग है। 20वीं सदी में जब कोई नया आविष्कार और नया प्रोडक्ट बाज़ार में आता था तो उसे पकड़ बनाने में 10 - 20 साल लगते थे। आज 21वीं सदी में ये प्रक्रिया दो से चार सालों में ही पूरी हो जाती है ।

उदाहरण के तौर पर 1950 से 1965 तक रंगीन टेलीविजन की बाजार में हिस्सेदारी  सिर्फ 2 फीसदी थी । लेकिन अगले 15 सालों में यानी 1965 से 1980 के बीच यह बढ़कर 80फीसदी हो गयी। जिसके बाद अगले चार सालों में रंगीन टीवी ने ब्लैक एंड ह्वाइट टेलीविजन को पूरी तरह बाजार से बाहर कर दिया। यानी नई तकनीक ने पुरानी तकनीक को समाप्त कर दिया। 

जिन लोगों का जन्म 70 या 80 के दशक में हुआ होगा उन्हें अब तक याद होगा कि कैसे मोबाइल ने लैंडलाइन और पीसीओ का कारोबार ध्वस्त कर दिया। हालांकि अब मोबाइल के क्षेत्र में भी क्रांति आ चुकी है।

यह तकनीक में बदलाव का ही असर है कि वोडाफोन, आइडिया जैसी पुरानी मोबाइल कंपनियां जियो को टक्कर नहीं दे पा रही हैं। 

प्रोफेसर टोनी शेबा के मुताबिक सन् 2020 दुनिया एक और बदलाव की प्रक्रिया से गुजरेगी और इसका सबसे ज्यादा असर ऑटो इंडस्ट्री पर दिखाई देगा। यह होगी इलेक्ट्रोनिक वाहनों की क्रांति। जो कि पूरी दुनिया पर जबरदस्त असर डालेगी। 


 

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