इस घटना ने यह साबित कर दिया कि कश्मीरी अलगाववादियों पर और सख्ती है जरुरी

By Anshuman AnandFirst Published Aug 19, 2019, 6:20 PM IST
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जम्मू कश्मीर में एक मामूली घटना हुई। लेकिन इसका दुष्परिणाम बेहद ज्यादा हो सकता था। यह घटना इस बात का संकेत है कि कश्मीर में अभी भी सैयद अली शाह गिलानी जैसे अलगाववादियों का रसूख कायम है। जिसे खत्म करने के लिए और सख्ती की जरुरत है। 
 

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर में अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के घर पर इंटरनेट अभी भी चल रहा था। यह घटना इस बात का संकेत दे ती है कि अलगाववादी नेताओं का रसूख अभी भी कश्मीर घाटी में कायम है और इसे खत्म करने के लिए अभी और मशक्कत करने की जरूरत है। 

 जम्मू कश्मीर में शांति और व्यवस्था बरकरार रखने के लिए धारा 144 लगाई गई थी और किसी तरह की अफवाह या झूठी खबर फैलने से रोकने के लिए इंटरनेट को बैन किया गया था लेकिन यह सामने आया है कि इंटरनेट पर प्रतिबंध के 8 दिन बाद भी सैयद अली शाह गिलानी के घर पर इंटरनेट चल रहा था

 यह मामला तब खुला जब गिलानी ने ट्वीट किया।  जिससे पता चला कि उनका इंटरनेट अभी एक्टिव है।  बाद में जब जांच की गई तो पता चला कि यह बीएसएनल के दो अधिकारियों की लापरवाही है, जिन्होंने सैयद अली शाह गिलानी के प्रभाव में आकर इंटरनेट सेवा बंद नहीं की। 

जब उनसे पूछताछ की गई तो इन दोनों अधिकारियों ने कहा कि उन्हें लगता था कि बुजुर्ग सैयद अली शाह गिलानी इंटरनेट चलाने में सक्षम नहीं है। लेकिन वह दोनों साफ तौर पर गलतबयानी कर रहे थे।  क्योंकि सैयद अली शाह गिलानी अक्सर ट्विट पर अपने घातक अलगाववादी विचार जाहिर करते रहते हैं।  जिससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वह इंटरनेट का इस्तेमाल करने में सिद्धहस्त हैं। 

 सैयद अली शाह गिलानी और उनके जैसे अलगाववादी नेता कश्मीर घाटी में शांति नहीं चाहते हैं। ऐसे में सैयद अली शाह गिलानी का इंटरनेट चालू रहना काफी खतरनाक हो सकता था। क्योंकि इसके जरिए आम लोगों को अफवाहें फैलाकर भड़काया जा सकता था। 

 जम्मू कश्मीर के विभाजन और धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर घाटी में अफवाहों का बाजार गर्म करने की भरपूर कोशिश की गई।  लेकिन सुरक्षा बलों की मुस्तैदी और भारत सरकार की त्वरित कार्रवाईयों की वजह से कोई भी अप्रिय घटना सामने नहीं आई। 

 लेकिन सैयद अली शाह गिलानी की इंटरनेट सेवा जारी रहना इस बात का साफ संकेत देती है कि कश्मीर में नौकरशाही पर अभी भी अलगाववादियों का प्रभाव बाकी है जिसे पूरी तरह खत्म करने के लिए अभी भी सख्ती की बहुत ज्यादा जरूरत है। 

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