पाकिस्तान को लोग आतंकिस्तान कहते हैं। वह दुनिया के कई देशों में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता है। मगर उसकी विडंबना यह है कि वह एक ऐसा शातिर शिकारी है जो आतंक का जाल बुनते बुनते अपने ही जाल में फंस गया है। एक तरफ पाकिस्तान राज्य प्रायोजित आतंकवाद को लेकर सारी दुनिया में बदनाम है, मगर हकीकत यह है कि पाकिस्तान आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार भी है। पाकिस्तान ने जो आतंकवाद का भस्मासुर पैदा किया है वह उसी को भस्म कर रहा है। मगर आज आतंकी संगठन इतने ताकतवर हो गए है कि उनके सफाये के सरकार के अभियान नाकाम साबित हो रहे हैं। कुछ साल पहले वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ट्रेवल एंड टूरिज्म की रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तान विश्व के असुरक्षित देशों में चौथे नंबर पर है। ऐसा होना स्वाभाविक था क्योंकि वह भले ही आतंकवादियों के लिए स्वर्ग बन चुका हो मगर वहां के नागरिकों की जिंदगी नर्क हो चुकी है।
पाकिस्तान आज आंतकवाद का खुला बाजार बन चुका है। वहां हर तरह के आतंकी संगठन हैं- सांप्रदायिक आतंकी संगठन हैं तो अपराष्ट्रीयताओं पर आधारित आतंकी संगठन, भारत विरोधी आतंकी संगठन है तो ईरान और अफगानिस्तान में आतंकवाद फैलानेवाले संगठन भी हैं और अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी संगठन तो हैं ही। पाकिस्तान में आतंकवादी समूहों की जो फसल लहलहा रही है उसे मुख्यरूप से छह श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
1. सांप्रदायिक आतंकवादी संगठन
इस्लाम के विभिन्न संप्रदायों से प्रेरित संगठन जैसे सिपह –ए- सहाबा, लश्कर- ए- झंगवी और शिया तहरिक –ए- जफरिया आदि जो पाकिस्तान में शिया सुन्नी युद्ध में लगे रहते हैं जिसमें अबतक हजारों लोग मारे जा चुके हैं।
1979 की ईरानी क्रांति के बाद तहरीक–ए-निफज–ए-फिकह–ए-फाफेरिया(टीएनएफ) स्थापित हुआ उसका मकसद शिया अल्पसंख्यकों के अधिकारों की ऱक्षा करना था। इसकी प्रतिक्रिया में आठवें दशक में सिपह-ए-सहाबा(एसएसपी) नामक उग्रवादी सुन्नी सांप्रदायिक संगठन की स्थापना हुई। यह संगठन मांग करने लगा कि शियाओं को भी गैर मुस्लिम घोषित किया जाए। सुन्नियों की तादाद ज्यादा होने के कारण वे और उनकी बंदूके शियाओं पर बहुत भारी पड़ी और बाद में तो केवल सुन्नियों की तरफ से एकतरफा हिंसा होने लगी जो आज तक जारी है । सुन्नी आतंकवादी संगठनों ने शियाओं का सामूहिक हत्याकांड करना शुरू कर दिया। सुन्नी उग्रवादी शियाओं के इमामबाड़ों में घुस जाते और फायरिंग शुरू कर देते। सुन्नी उग्रवादियों के हौसले तब और भी बढ़ गए जब पड़ोसी पाकिस्तान में सुन्नी उग्रवादी तालिबान सत्ता में आ गए। 2005 में शिया विरोधी हिंसा फिर भड़क उठी और इस बार वह ज्यादा विकराल थी। पहले गनमैन शिया मस्जिदों में घुसकर फायरिंग करते थे अब आत्मघाती हमलों के जरिये यह काम किया जाने लगा जिससे मरनेवालों की तादाद काफी बढ़ गई। जाए। सिपह-ए-सहाबा से ही एक गुट ने एक आतंकी संगठन लश्कर-ए-झंगवी की स्थापना की जिसका एकमात्र मकसद शियाओं को काफिर या गैरमुस्लिम बताकर उनकी हत्याएं करना था।इसके जवाब में शियाओं ने भी एक नया संगठन बनाया सिपाह –ए- मोहम्मद। पाकिस्तान में दरअसल दस के आसपास संगठन ऐसे हैं जो सांप्रदायिक आतंकवाद में सक्रिय रहते हैं।
2. उपराष्ट्रीयताओं के संगठन
एक तरफ सांप्रदायिक आतंकी संगठन हैं तो दूसरी तरफ बलोच जैसे उपराष्ट्रीयताओं की लड़ाई लड़ने वाले संगठन। इनमें सबसे सक्रिय है बलोच लिबरेशन आर्मी। हाल ही में उसके कमांडर असलम बलोच ने कहा कि वे पाकिस्तान और चीन के विरूद्ध बलोचिस्तान में संघर्ष जारी रखेंगे। यहां पर चीन का दखल बढ़ रहा है, जो कि पाकिस्तान के खिलाफ उनकी लड़ाई के लिए बड़ा खतरा है। बलोच लिबरेशन आर्मी ने ही हाल ही में लाहौर स्थित चीनी दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी ली थी। बलोच नेताओं का आरोप है, 'पिछले 15-20 साल से, बलोचिस्तान में पाकिस्तान का दखल तेजी से बढ़ा है। सीपीईसी के नाम पर चीन बलोचों के संसाधनों को लूट रहा है। इसी मेगा प्रोजेक्ट के दम पर बलोचिस्तान और सिंध में चीन और पाकिस्तान दोनों हीं अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा रहे हैं। बता दें कि बलोच लिबरेशन आर्मी ने चीनी-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के काम में लगे चीनी कर्मचारियों पर कई बार हमले किए हैं।
पाकिस्तान अपने तीन पडोसी देशों अफगानिस्तान,ईरान और भारत के खिलाफ राज्य प्रायोजित आतंक को अंजाम देता है।
3. भारत विरोधी संगठन
इनमें मुख्य रूप से जैशे मोहम्मद ,लश्करे –ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहीदीन जैसे संगठन आते हैं, जो कश्मीर की कथित आजादी और भारत के विरोध में लड़ते हैं। इन्हें राज्य द्वारा प्रायोजित आतंकी संगठन कहा जा सकता है।उन्हें पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का पूरा समर्थन हासिल होता है और ये उन्हीं के इशारे पर काम करते हैं। उनका मकसद कश्मीर और भारत में तबाही फैलाना है। उन्हीं के कारण उड़ी, पठानकोट, गुरूदासपुर, मुंबई, संसद, कश्मीर विधानसभा आदि हमले भारत में हुए हैं।
4. अफगान तालिबान
तालिबान आंदोलन खासकर उसका कंधार स्थित नेतृत्व जो मुल्ला उमर के इर्दगिर्द केंद्रित था उसने क्वोटा में डेरा जमाया हुआ था । उससे जुड़े संगठन भी पाकिस्तान में हैं। हक्कानी नेटवर्क जैसा आतंकी संगठन है। हक्कानी नेटवर्क के सदस्य कई सालों से पाकिस्तान में पनाह पा रहे हैं। उनका मुख्य मकसद है, अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय प्रभाव से निकालना और सत्ता अपने हाथ में ले लेना। हक्कानी तालिबान का ही एक स्वायत्त धड़ा है। इसके अलावा वह अकेले भी काम कर सकता है क्योंकि उसके अल कायदा और अरब देशों से संपर्क हैं। तालिबान हक्कानी पर निर्भर है क्योंकि उसके मुकाबले हक्कानी के बाद बंदूकधारी ज्यादा हैं। उसके पास 10000 आतंकवादी हैं। जलालुद्दीन हक्कानी ने 1980 के दौरान अफगानिस्तान में रूस (सोवियत संघ) के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए पाकिस्तान और अमेरिका की मदद से हक्कानी नेटवर्क की स्थापना की थी।
2001 में तालिबान को सत्ता से उखाड़ने के बाद से अमेरिका तालिबान के साथ-साथ हक्कानी नेटवर्क को भी खत्म करने की कोशिश में है। तब से इस संगठन के लड़ाकों ने अमेरिका और अमेरिका समर्थिक अफगान सरकार के सुरक्षाबलों पर कई आतंकी हमले किए हैं। माना जाता है कि इस आतंकी संगठन का संचालन पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों से होता है और बीते सालों में अमेरिका कई बार पाकिस्तान पर इस संगठन को मदद देने का आरोप लगाता रहा है।
इसके अलावा गुलबुद्दीनन हिकमतयार के अफगानी संगठन हिज्व-इ- इस्लामी के करीब 1000 से ज्यादा आतंकवादी हैं।
5. ईरान विरोधी आतंकी संगठन
उसने भी पाक पर आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया है सिस्तान-बलूचिस्तान क्रॉस बॉर्डर इलाके में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड की बस पर हुए हमले में 27 जवान मारे गए। पाकिस्तान के तथाकथित जैश-उल-अदल आतंकवादी समूह ने इस हमले की जिम्मेदारी ली।
ईरान ने पाकिस्तान को बुरे परिणाम भुगतने की धमकी दी है। पाकिस्तान ने ईरान से कहा, वे पहले हमले का सबूत दें कि उसमें हमारा हाथ है। रिवोल्यूशनरी गार्ड के ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद पपौर का कहना था, आत्मघाती हमलावर पाकिस्तानी थे। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉ. वाएल अव्वाद के मुताबिक पाकिस्तान वहां पर सुन्नी आतंकी संगठनों को एक्टिव कर रहा है। ईरान के पास इन सारे ग्रुप की जानकारी है।
6. अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन-
अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठन अल कायदा और उसके सहयोगी संगठन तथा कुख्यात आईएसआईएस भी पाकिस्तान में सक्रिय है । आईएसआईएस तो अबतक पाकिस्तान में तीन बड़े आतंकी हमले करा चुका है।11 सितंबर का दुस्साहस अलकायदा को बहुत भारी नुक्सान उठाना पड़ा। उसके बाद अमेरिका ने अगले छह माह में संगठन के अफगानिस्तान स्थित बुनियादी ढांचे को खत्म कर दिया । उसका नेतृत्व या तो मारा गया या गिरफ्तार हो गया। ओसामा बिन लादेन को भी छुप कर ही अपने आखिरी दिन गुजारने पड़े। आखिरकार वह भी पाकिस्तान में मारा गया। इसके बाद संगठन की बागडोर ओसामा के सबसे विश्वस्त सहयोगी और और नंबर -2 अयमान अल जवाहिरी के हाथों में आई। अमेरिका को भी शायद अल जवाहिरी के पाकिस्तान में होने और यहां तक कि उसके ठिकाने के बारे में भी पता था। 2004-2005 में अल काईदा ज्यादा गंभीरता से पाकिस्तान के बारे में सोचने लगा। उसने आम पाकिस्तानी जनता के लिए अल काय दा के दरवाजे खुले रखने के लिए उसने चंदुल्ला संगठन शुरू किया। था। इसके पीछे अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान में वहां की गतिविधियों पर नजर रखनेवाले जिहादी तैयार हों। अलकाय दा अब जान गया था कि आतंकवादी तैयार करने के लिए पाकिस्तान अत्यंत ऊपजाऊ जमीन है। 1979 के बाद अफगानिस्तान और कश्मीर में लड़ने के लिए छह लाख युवा पाकिस्तान में प्रशिक्षित किए गए। इनमें से कम से कम एक लाख किसी न किसी आतंकी समूह के सदस्य हैं और दस लाख युवाओं ने अलग अलग धार्मिक उग्रवादी शिक्षा संस्थाओं में अपने अपने नाम दर्ज कराए हुए थे। पाकिस्तान की धार्मिक राजनीतिक दलों के सैकड़ों और हजारों समर्थक हैं। फिर सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध में जिहादियों का इस्तेमाल करनेवाली सेना थी जिसे धार्मिक उग्रवाद से जरा भी परहेज नहीं था। 1979 से 2001 के बीच में पाकिस्तानी सेना में धार्मिक उग्रवादी ताकतें गहरे तक पैठ कर चुकी थीं। अल कायदा ऐसी शक्तियों को अपनी तरफ मोड़ने के लिए जंदुल्ला का इस्तेमाल करना चाहती थी।
अल कायदा के जाल में सबसे पहले " लश्कर-ए- झंगवी ' संगठन फंसा। यह कट्टर शिया विरोधी आतंकवादी संगठन था। अल कायदा नेता लादेन ने पाकिस्तान में आतंकी संगठनों का जाल फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
7. पाकिस्तानी तालिबान
दूसरी तरफ तहरीके तालिबान जैसा पाकिस्तान आतंकी संगठन भी है जो पाकिस्तान के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता है। वह अबतक कई दिल दहला देने वाला हमले कर चुका है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जिसे कभी-कभी सिर्फ़ टी-टी-पी (TTP) या पाकिस्तानी तालिबान भी कहते हैं। वर्ष 2008 में अल कायदा ने पाकिस्तान की सारी तालिबानी ताकतों को" तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के परचम तले इकट्ठ किया।यह पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा के पास स्थित संघीय प्रशासित कबायली क्षेत्र से उभरने वाले चरमपंथी उग्रवादी गुटों का एक संगठन है। यह अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान से अलग है हालांकि उनकी विचारधाराओं से काफ़ी हद तक सहमत है। इनका ध्येय पाकिस्तान में शरिया पर आधारित एक कट्टरपंथी इस्लामी अमीरात को क़ायम करना है। इसकी स्थापना दिसंबर 2007 को हुई जब बैतुल्लाह महसूद के नेतृत्व में 13 गुटों ने एक तहरीक (अभियान) में शामिल होने का निर्णय लिया। इस संगठन ने बेनजीर की हत्या की भी जिम्मेदारी ली थी।
पाकिस्तान की इस आतंक की फैक्टरी में मदरसे के छात्र कच्चे माल की भूमिका निभाते हैं। क्राइसिस ग्रुप के मुताबिक पाकिस्तान का पंजाब प्रांत जिहादियों का हॉर्टलैंड बन गया है। पाकिस्तान के मदरसों में धार्मिक अतिवाद की शिक्षा दी जाती है। पाक में संचालित मदरसे आतंक की नर्सरी बन चुके हैं।
तेजी से फैल रहे मदरसों को लेकर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि पाक मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे या तो मौलवी बनेंगे अथवा आतंकवादी। ‘मदरसों मे करीब 25 लाख बच्चे पढ़ते हैं लेकिन वे क्या बनेंगे : क्या वे मौलवी बनेंगे अथवा आतंकवादी बनेंगे।’ उन्होंने कहा कि देश में इतने छात्रों को नियुक्त करने के लिए नई मस्जिदें खोलना असंभव है। पाकिस्तान में कुल 20 हजार से अधिक मदरसे रजिस्टर्ड हैं जबकि हजारों मदरसे आज भी बिना किसी रजिस्ट्रेशन के ही संचालित हो रहे हैं। कुछ मदरसे तो ऐसे हैं जो सिर्फ एक छोटे से कमरे में ही चल रहे हैं। पाक में संचालित अधिकांश मदरसे देवबंदी हैं,।कुछ विश्लेषक कहते हैं इन छात्रो के लिए नई मस्जिदें खोलना असंभव है इसलिए आतंकवादी बन जाते हैं। इसलिए आतंक की फसल फलती फूलती ही जा रही है। आतंकवाद के शेर की सवारी बहुत आनंद देती है मगर बहुत महंगी भी पड़ती है जब भी उतरने की कोशिश करोगे शेर शिकार कर लेगा। पाकिस्तान पिछले कई दशकों से ऐसी ही सवारी कर रहा है और उसकी भारी कीमत चुका रहा है।पाकिस्तान अपने आतंकवाद के जाल में फंस चुका है।