Bhagat Singh's birth anniversary: जब 'हुकूमत' को लगा भगत सिंह को डर, जानिए वो किस्से

By Anshika TiwariFirst Published Sep 28, 2023, 10:48 AM IST
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Bhagat Singh's birth anniversary: भारत को अंग्रेजों की हुकूमत से आजाद कराने के लए भगत फांस पर चढ़ गए और आखिरी वक्त तक देश के लिए नारे लगाते रहे। 28 सितंबर 1907 को भगत सिंह की जन्म हुआ था। आज हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्से बताने जा रहे हैं।

नेशनल डेस्क। हिंदुस्तान की आजादी में उन शौर्यवीरो और बलिदानियों का जर्रा-जर्रा बसा है जिन्होंने गुलामी से देश को बाहर निकालने के लिए प्राणों की आहूति दे दी। स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय वीरों ने लोहा मनवाया। कुछ बापू के अहिंसा के रास्ते आजादी पाने के पक्षधर रहे तो कुछ फिरंगियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने के लिए खड़े हो गए। उन्ही में से एक थे भगत सिंह, जिन्हें आज बच्चा-बच्चा याद करता है। 28 सितंबर 1907 को जन्में भगत ने अंग्रेजों को नाच नचा दिया था और ये बता दिया था कि हर भारतीय आजादी लेकर रहेंगे। 

आज भगत सिंह की जयंती पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें जानिए और समझिए की उनके रगों में खून की जगह देशभक्ति की भावना कैसे दौड़ रही थी। 

सेंट्रल असेंबली बम धमाका

शहीद भगत सिंह आजादी की लड़ाई को घर-घर पहुंचाना चाहते थे इसलिए उन्होंने बड़ा निर्णय लिया और 8 अप्रैल को सेंट्रेल असेंबली में बम धमाका किय। इस घटना के अंग्रेजों के होश फाख्ता हो गए थे। वहीं भारत के हर घर तक इस धमाके की गूंज पहुंची। हालांकि बाद में भगत सिंह औऱ बटुकेश्वर दत्त को बम फेंकने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और 10 साल की सजा सुनाई गई। 

जेल में आंदोलन

जेल जाने के बाद भी भगत सिंह की देशभक्ति की भावना ठंडी नहीं पड़ी। उन्होंने सलाखों के पीछे से आंदोलन जारी रखा। इस दौरान वह लेख लिखने लगे और अपने विचारों को जाहिर किया। भगत हिंदू, पंजाबी, अंग्रेजी,बंग्ला और उर्दू के जानकार थे। ऐसे में उन्होंने आजादी की लौ को जलाए रखा। वह जब भी अदालत जाते तो आजादी की मांग को लेकर लोगों में जोश भरते। अगले दिन अखबारों के पन्ने में भगत सिंह की खबरें देख आजादी के लिए हर नागरिक शहीद होने के लिए तैयार हो जाता।

भगत सिंह को फांसी की सजा

जेल में रहकर भी भगत सिंह लगातार देश के लोगों में आजादी की लौ जला रहे थे। ये देखकर अंग्रेज परेशान हो गए और इसी बीच कैद दौरान भगत सिंह के साथ राजगुरु और सुखदेव को अदालत ने फांसी की सजा का फरमान सुनाया। उन्हें 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन जैसे ही ये बात फैली तो लोग आक्रेश से भर गए और अंग्रेजों ने फांसी का वक्त बदलते हुए गुपचुप तरीके से एक दिन पहले फांसी देने का फैसला किया। 

अंग्रेजों के खिलाफ विरोध के स्वर

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने के अंग्रेजों के फैसले के खिलाफ देशभर में विरोध होने लगा था। अंग्रेजों को माहौल बिगड़ने का डर सता रहा था। इसलिए उन्होंने गुपचुप तरीके से तय समय से एक दिन पहले यानी 23 मार्च 1931 को लगभग 7.30 बजे फांसी दे दी। इस दौरान कोई भी मजिस्ट्रेट निगरानी करने को तैयार नहीं था। फांसी के साथ भगत सिंह हमेशा के लिए शांत हो गए लेकिन उनकी आजादी पाने की लौ अब लोगों में आग का रूप ले चुकी थी। आज भी बच्चा भगत सिंह के त्याग और बलिदान से प्रेरित होकर वतन के लिए जान न्यौछावर करने के लिए तैयार है। 

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