भारत में गठबंधन की राजनीति का इतिहास

 |  First Published Jul 4, 2018, 3:02 PM IST

2014 से पहले दो दशक से भी ज्यादा समय तक भारत में गठबंधन की राजनीति का दौर चला कुछ सरकारों ने तो अपना कार्यकाल पूरा किया लेकिन कुछ समय से पहले गिर गईं

कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी पार्टी है और इसका गठन 1885 में हुआ था। आजादी के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी केंद्र से लेकर देश के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। जवाहरलाल नेहरु की मौत के बाद कांग्रेस पार्टी में दरार आनी शुरू हो गई और पार्टी 1969 में दो हिस्सों में बट गई। कांग्रस के विभाजन के बाद कांग्रेस (ओ) जिसका नेतृत्व कर रहे थे के. कामराज और कांग्रेस (आर) का नेतृत्व इन्दिरा गांधी कर रही थीं। 1 9 6 9 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस (आर) ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में जीत दर्ज की लेकिन उसे 78 सींटों का नुकसान उठाना पड़ा।
1971 के चुनाव में विपक्षी इन्दिरा गांधी का मुकाबला करने के लिए जनसंघ, कांग्रेस(ओ),  स्वतंत्र पार्टी और एसएसपी ने राष्ट्रीय डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीएफ) का गठन किया। इसे स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास का पहला पूर्ण गठबंधन कहा जा सकता है लेकिन इंन्दिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस(आर), जो कांग्रेस (आई) बन गया था, ने विपक्ष को बुरी तरह से पछाड़ते हुए 352 सींटे प्राप्त की और एनडीएफ को विपक्ष में बैठना पड़ा लेकिन 1975 से 1977 तक देश में इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया जो उनके लिये घातक सिद्ध हुआ।
आपात काल हटने के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कांग्रेस(ओ), भारतीय जनसंघ,  भारतीय लोक दल समेत लगभग पूरा विपक्ष चुनाव मैदान में उतरा। विपक्ष की एकता के सामने इस बार इन्दिरा गांधी की एक नहीं चली और कांग्रेस(आई) को हार का सामना करना पड़ा। चुनाव बाद बनी जनता पार्टी ने 520 में से 330 सीटों पर जीत दर्ज की और मोरारजी देसाइ प्रधानमंत्री बने।
बाद में जनता पार्टी के अंदर ही विवाद शुरू हो गया जिसके कारण स्वतंत्रता सेनानी और इन्दिरा गांधी को रायबरेली से लोकसभा चुनाव में हराने वाले राजनरायण जनता पार्टी से अलग हो गये। राजनरायण ने अलग होने के बाद जनता धर्मनिरपेक्ष पार्टी बना ली। 1979 में संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ जिसे सरकार साबित नहीं कर पाई और सरकार गिर गई। गठबंधन सरकार की विफलता ने एक बार फिर से कांग्रेस को मौका दे दिया और कांग्रेस ने 1980 और 1984 में भारी जीत दर्ज की। 1984 इन्दिरा गांधी की हत्या से उठी सहानभूति की लहर ने विपक्ष का सफाया करते हुए कांग्रेस ने 401 सीटों पर जीत दर्ज की।
1 9 8 9 के चुनाव में, वीपी सिंह ने तेलुगू देशम पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और असम गण परिषद जैसे क्षेत्रीय दलों को एक साथ लाकर राष्ट्रीय मोर्चा बनाया। इस गठबंधन को वाम मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी से बाहर से समर्थन मिला। यह राष्ट्रीय मोर्चा कांग्रेस के खिलाफ जीता।
1991 में हुए चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला लेकिन कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बाद में अजीत सिंह ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने बाहर से समर्थन दिया जिससे कांग्रेस की सरकार बनी।
1 99 6 में हुए चुनाव में बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 187 सीटें हासिल की लेकिन बहुमत से दूर रही। सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते 16 मई 1996 अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का मौका मिला लेकिन संसद में बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण 13 दिन बाद 27 मई 1996 को सरकार गिर गई।
बाद में देवगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल, समाजवादी पार्टी, द्रमुक, टीडीपी, एजेपी, वाम मोर्चा(4 दलों), तमिल मनीला कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई। कांग्रस ने इसे बाहर से समर्थन दिया। उसके बाद कांग्रेस ने सीबीआई जांच का बहाना बनाकर कांग्रेस ने देवगौड़ा की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उसके बाद आइके गुजराल प्रधानमंत्री बने लेकिन कांग्रेस ने डीएमके को सरकार से बाहर करने की मांग की लेकिन जब मांग पूरी नहीं हुई तो उसने संयुक्त मोर्चे सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
 
1998 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जनता दल (यूनाइटेड), एआईएडीएमके , समता पार्टी, बिजू जनता दल, शिरोमणि अकाली दल, राष्ट्रवादी तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, पट्टाली मक्कल काची, लोक शक्ति, मारुमालार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, हरियाणा विकास पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय लोक दल, मिजो राष्ट्रीय मोर्चा, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, मणिपुर राज्य कांग्रेस पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी अपनी 16 अन्य दलों को साथ चुनाव के मैदान में उतरी। इस चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की जीत हुई और और अटल बिहारी के नेतृत्व में सरकार बनी लेकिन यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी और एआईएडीएमके ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी।

1999 में हुए 13 वें लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 16 दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का गठन किया। इस चुनाव में एनडीए ने 29 9 सीटें जीत कर सरकार बनाई। बाद में एनडीए नेशन कांफ्रेंस, मिजो नेशनल फ्रंट, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट सहित कुछ अन्य दलों के जुड़ने के बाद गठबंधन दलों की संख्या 24 हो गई। इस गठबंधन की सरकार ने भारत में पहली बार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। 

2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और राष्ट्रीय जनता दल को साथ लेकर संयुक्त मोर्चे का गठन किया। इस चुनाव में  एनडीए को 181 सीटें मिलीं और विपक्षी दलों को 218 सीटें मिलीं। तब वाम मोर्चा, समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन दिया। हालांकि इन दलों का समर्थन बाहर से था, ये सरकार में शामिल नहीं हुए।

2008 में वाम मोर्चा ने भारत और अमेरिका के मध्य हो रहे नागरिक परमाणु समझौते का विरोध करते हुए यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया । हालांकि उस समय यूपीए ने विश्वास मत हासिल कर लिया और सरकार बच गई।

 2009 के चुनावों में हुए चुनाव में यूपीए को 262 सीटें मिली अकेले कांग्रेस ने 206 सीटें जीती थीं। कांग्रेस के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार गठबंधन की सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।

2014 के चुनावों में एनडीए ने बीजेपी की अगुवाई में 336 सीटें जीतीं अकेले बीजेपी ने 282 सीटें जीतीं। इस चुनाव में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई और वह 44 सीटों पर सिमट कर रह गई। यूपीए को सिर्फ 59 सीटें पर जीत मिली। कांग्रेस की सीटें कम होने के कारण इस समय लोकसभा में कोई भी विपक्षी दल नहीं है। इससे पहले 1950 से लेकर 1977तक कोई विपक्षी दल नहीं था। अब देखने वाली बात होगी की 2019 में होने वाले लोकसभा चुनवा परिणाम क्या होता है।

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