अगले कुछ घंटों में नए साल-2019 का आगाज होने वाला है। लेकिन ये साल- 2018, यादों में कई ऐसी घटनाएं अपने पीछे छोड़ गया है जो भारतीय राजनीति में आने वाले सालों में इतिहास बनेंगे। केन्द्र में सरकार बनाने के बाद और फिर लगातार विधानसभा चुनावों को जीत रही भाजपा के इस विजय अभियान में सबसे पहले कर्नाटक ने ब्रेक लगाया तो फिर तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसे सत्ता खोनी पड़ी। भाजपा को मध्य और उत्तर भारत में 15-15 साल से गढ़ रहे दो राज्यों में हार मिली। जबकि कांग्रेस को चार राज्यों में सरकार बनाने में सफलता मिली। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद ये उनकी सबसे बड़ी जीत थी। वहीं राममंदिर को लेकर अयोध्या और दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद ने बड़ी रैली की, तो सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चली। जबकि राफेल के मुद्दे पर केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट तो अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाफ्टर घोटाले के मुख्य विचौलिए क्रिश्चियन मिशेल को भारत लाने में मोदी सरकार सफल हुई। कुछ मिलाकर साल-2018 अपने राजनैतिक उथल-पुथल और बड़े फैसलों के लिए जाना जाएगा।
साल के अंत में तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा के सहयोगियों ने उसे छोड़ना शुरू कर दिया और इससे एनडीए कमजोर पड़ा है। साल 2018 के अंत में टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और आरएलएसपी के उपेन्द्र कुशवाहा ने एनडीए का दामन छोड़कर कांग्रेस की ओर रूख किया। वहीं बीजेपी के ही अन्य सहयोगी दल जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना, यूपी में अपना दल और बिहार में लोजपा भी बीजेपी को कड़े तेवर दिखाते रहे।
2018 में राहुल गांधी देश के सबसे चर्चित राजनेता के तौर पर देश में उभरे। हालांकि कुछ लोगों ने लोकसभा में राहुल के भाषण और उनकी कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाए। लोकसभा में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गले मिलना काफी चर्चा में रहा। राहुल के नेतृत्व में सबसे पहले कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाई तो फिर तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाई। हालांकि राहुल की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठाए गए। क्योंकि कई राज्यों में कांग्रेस को सत्ता खोनी पड़ी थी। हालांकि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष ने राहुल गांधी को प्रधाननमंत्री के तौर पर अस्वीकार कर दिया।
इस साल की शुरूआत में भाजपा को सबसे बड़ी सफलता मिली। जबकि पूर्वोत्तर राज्यों के त्रिपुरा में उसे विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत मिली। त्रिपुरा को वामदलों का गढ़ कहा जाता था और वहां पर उनकी 25 साल से सरकार चल रही थी। लेकिन भाजपा ने वामदलों के इस किले को ढहा दिया। भाजपा ने राज्य की 60 में से 36 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बना डाली।
पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में जीत हासिल करने वाली भाजपा को इस साल फरवरी में हुए मेघालय और नगालैंड विधानसभा चुनावों में भी बड़ी सफलता हासिल मिली। भाजपा ने त्रिपुरा की तरफ यहां पर अकेले दम पर सरकार नहीं बनायी। लेकिन अपने सहयोगी दलों के साथ दोनों राज्यों में सत्ता हासिल की। इसे एक तरह से कांग्रेस के लिए बढ़ा झटका माना गया। क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों में हमेशा ही कांग्रेस की सरकार रही। नगालैंड में भाजपा ने एनडीपीपी के साथ तो मेघालय में भाजपा ने एनपीपी और यूडीपी के साथ मिलकर सरकार बनायी।
देश के अन्नदाता ने पहली बार राजधानी में बड़ी तादात में अपनी ताकत दिखायी। जबकि इससे पहले भाजपा की केन्द्र सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का ऐलान किया था। किसानों ने दिल्ली को चारों तरफ से घेरा और केन्द्र सरकार पर अपनी मांगों के लिए दबाव बनाया। किसानों के आंदोलन से राजधानीवासी घरों में रहने के लिए मजबूर हो गए
साल 2018 के अंत में भाजपा के लिए तीन राज्यों से बुरी खबर आयी। भाजपा ने तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो गयी और कांग्रेस को सरकार मिली। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी-कांग्रेस के बीच चली कांटे की टक्कर में आखिरकार कांग्रेस को जीत मिली, वहीं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बीजेपी का पूरी तरह सुपड़ा साफ कर दिया। एमपी, छत्तीसगढ़ के साथ राजस्थान में भी भाजपा को बड़ी हार हाथ लगी।
इस साल हुए ज्यादातर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। चाहे यूपी हो या फिर राजस्थान। सभी उपचुनाव में पार्टी को हार मिली। हालांकि इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार थी। यूपी की तीन लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को हार मिली जबकि राज्य में भाजपा की सरकार थी। लेकिन राज्य में इन तीन लोकसभा सीटों से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को गोरखपुर सीट में हार मिली जबकि यहां से योगी आदित्यनाथ लोकसभा सांसद थे। जबकि राजस्थान में अलवर और अजमेर के उपचुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। वहीं महाराष्ट्र की गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीट भी बीजेपी के हाथों से फिसल गई। वहीं कर्नाटक की बेल्लारी लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत दर्ज की।
इस साल सर्वोच्च न्यायालय अपने फैसलों के लिए खासा चर्चा में रहा। खासतौर से अयोध्या और धारा 377 के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पूर्व मुख्य न्यायाधीश सबसे चर्चित चेहरों में से एक रहे हैं। दीपक मिश्रा ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी। तो पदोन्नति में आरक्षण का रास्ता भी साफ किया। इसके साथ इच्छामृत्यु को कानूनी वैधता देते हुए कहा कि इंसान को गरिमा के साथ मरने का हक है। उनके कार्यकाल में दिए गए यह फैसले हमेशा याद किए जाएंगे। इस सबके अलावा जस्टिस मिश्रा का कार्यकाल विवादों से भी भरा रहा। उनके साथी जजों ने उन पर रोस्टर में भेदभाव के आरोप लगाते हुए प्रेस कांफ्रेंस की।
असम के एक गुमनाम इलाके से कर्ज लेकर दौड़ने निकलीं हिमा दास को यकीन नहीं था कि वह देश की चहेती खिलाड़ी बन जाएंगी। लेकिन हिमा दास इस साल के सबसे चर्चित चेहरों में रहीं हैं। हिमा दास को आज देश में जुनून, कामयाबी और भरोसेमंद प्रदर्शन का पर्याय माना जाता है। हिमा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल को जीता और देश का मान बढ़ाया।
भारतीय राजनीति के अजातशत्रु कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने इसी साल अंतिम सांस ली। वह कई दिनों से बीमार थे। उन्हें राजनीति में रहते हुए ‘अजातशत्रु’ की संज्ञा मिली, यह उनके विराट व्यक्तित्व ही था कि पूरी दुनिया ने उनके जाने का शोक मनाया। कई देशों का राष्ट्राध्यक्ष ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
राफेल डील को लेकर पूरे साल कांग्रेस आक्रामक रही। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसने राफेल डील पर केन्द्र सरकार को घेरा। हालांकि भाजपा की केन्द्र सरकार पहले से कह रही थी कि इस मामले में उसकी कोई भूमिका नही है और न ही कोई घोटाला नहीं हुआ है। लेकिन कांग्रेस नेताओं ने इसे राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाया। बाद में कुछ एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की तो कोर्ट ने केन्द्र सरकार की दलील सुनने के बाद उसे क्लीन चिट दे दी। इसके बाद कांग्रेस ने जेपीसी की मांग की। लेकिन कांग्रेस के ज्यादातर सहयोगी जेपीसी के पक्ष में नहीं थे। लिहाजा लोकसभा में कांग्रेस अकेले पड़ गई।
जम्मू कश्मीर में पीडीपी की अगुवाई वाली महबूबा मुफ्ती सरकार को समर्थन दे रहे भाजपा ने अचानक समर्थन वापस लेकर सबको चौंका दिया और इसके कारण महबूबा सरकार गिर गयी। इन दोनों दलों ने राज्य में 27 महीने तक सरकार चलाई। हालांकि समर्थन वापसी को लेकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए। बाद में राज्यपाल ने विधानसभा को भंग कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। राज्य में पहली बार भाजपा ने सरकार बनायी। हालांकि उसे पीडीपी से समझौते करने पड़े लेकिन पार्टी पर दबाव बढ़ने पर उसने महबूबा सरकार से समर्थन वापस लिया।