कश्मीर पर पाकिस्तान के इतना छाती कूटने के बावजूद इन वजहों से खामोश हैं मुस्लिम देश

By Anshuman Anand  |  First Published Aug 16, 2019, 5:29 PM IST

जम्मू कश्मीर पर भारतीय संसद के फैसले के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा बेहाल है तो वह है पाकिस्तान। उसे इस बात की आशंका पहले से भी थी, कि पश्चिमी देश शायद उसका साथ नहीं दें। लेकिन पाकिस्तान का दिल सबसे ज्यादा दिल तब टूटा जब उसके लंगोटिया इस्लामी देशों ने भी भारत के दबाव में उसे अंगूठा दिखा दिया। इसके पीछे वजहें कुछ इस तरह की हैं-
 

नई दिल्ली: भारत सरकार द्वार जम्मू कश्मीर के विभाजन और धारा 370 हटाने पर पाकिस्तान की हायतौबा का खाड़ी देशों पर कोई खास असर नहीं दिख रहा है। मध्यपूर्व की सबसे बड़ी ताकत सऊदी अरब ने संयम बरतने की नसीहत देकर इति कर ली।  कुवैत, कतर, बहरीन और ओमान जैसे देशों ने एक बयान तक जारी करना जरूरी नहीं समझा। लेकिन संयुक्त अरब अमीरात ने तो सबसे आगे निकल कर इसे विवाद मानने से ही इनकार करते हुए इसे भारत का आंतरिक मामला बता दिया। ईरान ने आधिकारिक रुप से कठोर शब्दों का इस्तेमाल करने से परहेज किया लेकिन छुट पुट विरोध प्रदर्शनों की अनुमति दे दी। मात्र तुर्की ही एक ऐसा देश है, जिसने पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया है। लेकिन वह भी बेहद संतुलित और भारत को निशाना बनाने से परहेज करते हुए दिया गया है।  आईए एक नजर डालते हैं कि आखिर क्यों इन देशों ने पाकिस्तान को नाउम्मीद किया-

बेपरवाह है सउदी अरब 
जम्मू कश्मीर पर सऊदी अरब के संक्षिप्त बयान में कहा गया कि 'सउदी रियासत मौजूदा स्थिति पर नजर रख रही है, इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों के मुताबिक शांतिपूर्ण समाधान की भी मांग की गई है'।

दरअसल सउदी अरब कश्मीर पर ईरान और तुर्की के साथ नहीं दिखाई देना चाहता। क्योंकि इन दोनों से उसकी दुश्मनी जग जाहिर है। इसके अलावा सउदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ भारत के बेहद अच्छे ताल्लुकात हैं।

सऊदी अरब में करीब 27 लाख भारतीय रहते हैं और भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक यह इराक के बाद भारत को तेल की सप्लाई देने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। सऊदी अरब से तेल के निर्यात की हिस्सेदारी बीते साल दोनें देशों के बीच हुए 27.5 अरब डॉलर के कारोबार में सबसे बड़ी थी।

कश्मीर पर सउदी अरब की निर्लिप्तता का एहसास इसी बात से हो जाता है कि कश्मीर में कर्फ्यू के आठवें दिन भारत- सऊदी के बीच एक बड़ा व्यापारिक समझौता हुआ। वहां की सरकारी कंपनी आरामको ने भारत के रिलायंस ऑयल एंड केमिकल्स में 15 अरब डॉलर की खरीदारी की है। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पहले ही भारत में 2021 तक 100 अरब डॉलर के निवेश की निश्चय कर चुके हैं.

भारत के समर्थन में आया संयुक्त अरब अमीरात
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने कश्मीर पर अपनी आधिकारिक नीति के तौर पर खुलकर भारत का समर्थन करने का फैसला किया है। उसने इसे पूरी तरह भारत का आर्थिक मामला करार दिया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यूएई की आबादी में एक तिहाई लोग भारत के हैं। 

 2018 में यूएई और भारत का आपसी कारोबार 50 अरब डॉलर से ऊपर चला गया। आज  भारत यूएई का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार बन चुका है। यूएई में भारत का निवेश 55 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है और भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक दुबई के रियल स्टेट बाजार में सबसे बड़े विदेशी निवेशक भारतीय हैं। 

यही वजह है कि दुबई के पोर्ट ऑपरेटर डीपी वर्ल्ड ने कश्मीर घाटी में एक लॉजिस्टिक हब तैयार करने की योजना बनाई है।  भारत सरकार ने जब जम्मू कश्मीर को लेकर अपने फैसलों का एलान किया तो यूएई ने अपने रणनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने की तैयारी कर ली। 

यूएई के भारत में राजदूत अहमद अल बन्ना ने कहा है कि कश्मीर में बदलाव , "सामाजिक न्याय और सुरक्षा बेहतर होगी...और साथ ही स्थिरता और शांति आएगी।"

इस्लामिक जगत के बड़े हिस्से ने साधी चुप्पी
तेल से मालामाल और वक्त बेवक्त पाकिस्तान के काम आने वाले कुवैत, कतर, बहरीन ओमान जैसे कई देशों ने अप्रत्याशित रुप से पाकिस्तान के अरण्य रोदन पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए चुप्पी साध रखी है। वहीं मलेशिया ने पहले तो गर्म तेवर दिखाए। लेकिन बाद में उसने भी मुंह बंद कर लिया। 

तुर्की से पाकिस्तान को थोढ़ी ढांढस बंधाई
 तुर्की ने कश्मीर पाकिस्तान के समर्थन का संकेत मात्र दिया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोगन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच टेलिफोन पर हुई चर्चा के बाद ऐसा बताया जा रहा है कि तुर्की ने कश्मीरियों के आत्मनिर्णय संबंधित कुछ बयान जारी किया है। लेकिन यह भी अपुष्ट सूत्रों से प्राप्त खबर है। 


लेकिन अगर तुर्की भारत के विरोध में आगे आता है तो इसकी वजह भी अर्थव्यवस्था है। क्योंकि तुर्की और भारत के बीच सालाना कारोबार 7 अरब डॉलर से भी कम का है। 

ईरान ने मात्र सांकेतिक विरोध की दी अनुमति
कश्मीर मुद्दे पर ईरान ने सरकारी तौर पर किसी तरह का कोई खास विरोध नहीं जताया है। ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी और विदेश मंत्रालय ने बहुत सावधानी से बयान जारी कर भारत पाकिस्तान के बीच बातचीत और शांति की मांग की। 

हांलाकि ईरान ने सांकेतिक विरोध जताने की अनुमति दी थी, जिसमें करीब 60 छात्रों ने तेहरान में भारतीय दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था। इसके अलावा एक वरिष्ठ मौलवी ने शुक्रवार की नमाज के बाद नमाजियों के सामने भारत के इस कदम को बुरा करा दिया था। लेकिन इससे ज्यादा कुछ और नहीं हुआ। 

टूट चुका है पाकिस्तान का दिल
कश्मीर पर मुस्लिम देशों के इस रवैये से पाकिस्तान का दिल टूट गया है। लेकिन वह क्या करे खाड़ी देशों के साथ भारत का सालाना कारोबार 100 अरब डॉलर से ज्यादा का है। खाड़ी के देशों में 70 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं जिनका अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है। चाहे डॉक्टर हों, इंजीनियर, टीचर, ड्राइवर, निर्माण में जुटे लोग या फिर मजदूर। इसके विपरीत पाकिस्तानी लोगों की नीयत हमेशा संदिग्ध मानी जाती है। 

पाकिस्तान पहले रहता था कामयाब
लेकिन पाकिस्तान पहले की ही तरह इस बार भी जम्मू कश्मीर की स्थिति में बदलाव को मुसलमानों की जमीन पर हमले के रुप में प्रस्तुत कर रहा है। कश्मीर को मजहबी मामलों से जोड़कर इसे इस्लामी जगत का मुद्दा बना दिया जाता है। लेकिन ऐसा दरअसल है नहीं। कश्मीर में मुसलमान सिर्फ घाटी में बहुसंख्यक हैं। 

लेकिन पाकिस्तानी प्रोपगैंडा की वजह से लद्दाख सहित पूरे जम्मू कश्मीर की छवि मुस्लिम रियासत जिसपर भारत कथित रुप से जबरदस्ती काबिज होना चाहता है। पाकिस्तान के इसी दुष्प्रचार की वजह से मुसलमान मुल्कों जैसे  सऊदी अरब, ईरान और तुर्की की कश्मीर में दिलचस्पी रहती है।  

लेकिन इस बार पाकिस्तान के सारे हथकंडे हुए फेल 
अब तक ये सभी देश खुद को पूरी दुनिया के मुसलमानों का सरपरस्त बताने की होड़ में कश्मीर पर कोई भी बयानबाजी करने के लिए तैयार रहते थे। लेकिन मोदी सरकार की कूटनीति और आर्थिक नीति में फंसकर आज यह सब कश्मीर मामले पर खुले रुप से कोई भी बयान देने से बच रहे हैं। 

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